दिल्ली में जनवरी 2022 के बाद दोबारा कोरोना के मामलों में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी देखने को मिली है. स्थिति चिंताजनक इसलिए है क्योंकि आंकड़े सात हजार पार कर चुके हैं. राजधानी में भी कोरोना की रफ्तार फिर से बढ़ती नजर आ रही है. संक्रमण दर 3 परसेंट के ऊपर दर्ज किया गया है. डॉक्टरों का कहना है कि का कहना है कि कोरोना अभी गया नहीं है , यह हमारे बीच ही है. इसलिए केंद्र सरकार ने भी महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक में राज्य सरकारों को कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जाहिर करते हुए टेस्टिंग बढ़ाने और जीनोम सिक्वेसिंग के निर्देश दिए हैं.
नए वेरिएंट के बारे में अभी पूरी जानकारी नहीं
डॉक्टरों का कहना है कि नए वेरिएंट के बारे में अभी पूरी तरह से जानकारी नहीं मिल पाई है इसलिए लापरवाही खतरनाक साबित हो सकती है. वेरिएंट तो आते रहेंगे लेकिन हमें सतर्क और सावधान रहना बेहद जरूरी है. इसी कारण से जीनोम सीक्वेंसिंग को तेज करने के निर्देश दिए गए हैं. आईएलबीएस के वीसी डॉ एस के सरीन ने बताया कि वेरिएंट के बढ़ते प्रभाव को देखने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग बेहद जरूरी है.
अभी फिलहाल जितने भी मामले आ रहे हैं वो 100 प्रतिशत ओमिक्रॉन से संक्रमित है. ओमिक्रॉन के करीब 100 sub lineage हो गए हैं. इनमें BA.2 वैरिएंट के फैमिली में देखा जाए तो ba.2.38 के 43 प्रतिशत वाले हैं और ba.2.37 के .19 प्रतिशत मामले हैं. हम फिलहाल अपनी लैब में रोज लगभग 41 सैंपल्स की जीनोम सीक्वेंसिंग कर रहे हैं.
योयो phenomenon
वायरस जिस तरह से बढ़ रहा है उसे योयो phenomenon कहते हैं. यानी वायरस में अलग अलग स्टेजेस पर उतार चढ़ाव देखने को मिलता है. उदाहरण के तौर पर जैसी इम्यूनिटी बढ़ेगी तो वायरस के नंबर कम हो जाएंगे, इम्यूनिटी कम होगी तो वायरस के नंबर बढ़ जाएंगे. हमें यह मानकर चलना है कि यह लड़ाई इम्यूनिटी, वायरस और अटैक रेट के बीच की है. और इसलिए जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चलेगा कि वायरस अपने आप को कितनी तेजी से बदल रहा है या फिर कोई नया वेरिएंट तो नहीं है.
इससे यह भी पता चलेगा कि दिल्ली का वेरिएंट महाराष्ट्र या गुजरात से कितना अलग है. या फिर क्या महाराष्ट्र और दिल्ली वाला वेरिएंट साथ मिलकर कोई नया वेरिएंट भी बना सकते हैं. वैसे देखा जाए तो सबसे अच्छी बात यह है कि दिल्ली में सारे सेमल्स का जीनोम सीक्वेंसिंग किया जा रहा है. इससे वायरस की क्षमता और बदलाव दोनों पर ही ध्यान दिया जा रहा है.
बचने के लिए लें बूस्टर डोज
वैसे देखा जाए तो ओमिक्रोन और उसके फैमिली वेरिएंट से इंफेक्शन की गंभीरता उतनी चिंताजनक नहीं है. इसका इलाज दवाइयों के जरिए संभव है. लेकिन जैसे ही हम नॉर्म्लसी की ओर बढ़ रहे हैं वैसे ही लोग लापरवाह होते नजर आ रहे हैं. इसके पीछे ओवरक्राउडिंग, खराब हायजीन और घटती इम्यूनिटी प्रमुख वजहें हैं. जिसने वैक्सीन भी ली है उसकी इम्यूनिटी 6 महीने के बाद में धीरे धीरे घटने लगती है. वो लोग जिन्होंने एक dose ली उनकी इम्यूनिटी और भी कम हो जाती है. हालांकि, जब तक डेल्टा जैसे खतरनाक म्यूटेशंस नहीं होते, केस बढ़ने पर भी इन्फेक्शन से उतना खतरा नहीं है. हालांकि हमें लापरवाही नहीं करनी चाहिए. बूस्टर डोज ली जानी चाहिए.