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स्टडी का खुलासा...वर्कप्लेस में काम के दौरान इमोशन्स शेयर करने से बूस्ट होती है प्रोडक्टिविटी

LinkedIn की एक स्टडी के अनुसार काम के दौरान अपने साथियों से इमोशन्स शेयर करने वाले लोगों की बढ़ोतरी हुई है. अब लोग अपनी बातों को खुलकर कह रहे हैं और इनमें से कई लोगों ने बॉस के सामने रोने की बात भी स्वीकार की.

Sharing emotion boost productivity (Representative Image/ Unsplash) Sharing emotion boost productivity (Representative Image/ Unsplash)
हाइलाइट्स
  • बूस्ट होती है प्रोडक्टिविटी

  • महिलाओं को अधिक आंका जाता है

LinkedIn की एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि भारत में 10 में से 9 (87 फीसदी) प्रोफेशनल वर्कर्स  काम करने के दौरान इमोशन्स को शेयर करते है जोकि उनके अंदर की फीलिंग्स को बूस्ट करता है और उन्हें अधिक प्रोडक्टिव बनाता है. 

महामारी के बाद ऐसे लोगों में हुआ इजाफा

शोध से पता चला है कि भारत में चार में से तीन (76 प्रतिशत) प्रोफेशनल लोग महामारी के बाद से काम के दौरान अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में अधिक सहज महसूस करते हैं. यह बदलाव लिंक्डइन पर भी देखने को मिला, जिसने मंच पर सार्वजनिक बातचीत में 28 प्रतिशत की वृद्धि देखी है. रिपोर्ट के अनुसार लगभग दो-तिहाई (63 प्रतिशत) ने अपने बॉस के सामने रोने की बात स्वीकार की जबकि एक तिहाई (32 प्रतिशत) ने एक से अधिक मौकों पर ऐसा किया.

लिंक्डइन के इंडिया कंट्री मैनेजर आशुतोष गुप्ता ने कहा, "पिछले दो साल काफी उथल-पुथल भरे रहे हैं, लेकिन लोगों को यह एहसास भी हुआ है कि वे काम पर एक-दूसरे के साथ अधिक सहज और स्पष्टवादी हो सकते हैं."

महिलाओं को अधिक आंका जाता है
हालांकि, भारत में 10 में से सात (70 प्रतिशत) प्रोफेशनल्स का मानना ​​है कि काम पर भावनाओं को साझा करना अच्छी बात नहीं है. इस कारण भारत में एक चौथाई से अधिक प्रोफेशनल लोग इमोशन्स शेयर करने के मामले में अपने आपको कमजोर (27 प्रतिशत), गैर-पेशेवर (25 प्रतिशत) और जज किए जाने (25 प्रतिशत) को लेकर डरते हैं. भारत में पांच में से चार (79 प्रतिशत) प्रोफेशनल इस बात से सहमत हैं कि महिलाओं को अक्सर पुरुषों की तुलना में अधिक आंका जाता है जब भी वो काम पर अपनी भावनाओं को साझा करती हैं.

हालांकि Gen Z और मिलेनियल्स खुद को व्यक्त करने और काम पर खुलने के लिए पहले से कहीं अधिक सहज महसूस करने के तरीके का नेतृत्व कर रहे हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि इसकी तुलना में केवल 20 प्रतिशत बूमर्स (58-60 वर्ष की आयु) काम पर खुद को व्यक्त करने के मामले में सहज महसूस करते हैं.

बूस्ट होती है प्रोडक्टिविटी
भारत में तीन-चौथाई से अधिक प्रोफेशनल इस बात से सहमत हैं कि काम के दौरान हंसी-मजाक करना ऑफिस के वातावरण के लिए अच्छा है, लेकिन आधे से अधिक (56 प्रतिशत) इसे 'गैर-पेशेवर' मानते हैं. इन मिली-जुली भावनाओं के बावजूद भारत में 10 में से 9 पेशेवर इस बात से सहमत हैं कि ह्यूमर काम में सबसे कम इस्तेमाल किया जाने वाला और कम आंका गया भाव है. वास्तव में पांच में से तीन प्रोफेशनल लोग वर्कप्लेस पर ह्यूमर पसंद करते हैं. रिपोर्ट के अनुसार देश के दूसरे हिस्सों के मुकाबले दक्षिण भारत के प्रोफेशनल लोग काम के दौरान सबसे ज्यादा हंसी मजाक करते हैं.