लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के दंत संकाय विभाग के डॉक्टरों ने कमाल करके दिखाया है. एक 32 वर्षीय व्यक्ति दाहिना कान नहीं था तो डॉक्टरों ने एकदम असली कान जैसा कृत्रिम कान बनाकर ट्रांसप्लांट किया है. सिलिकॉन से तैयार कृत्रिम कान को ट्रांसप्लांट करने के लिए पहले बांए कान का 3D इमेज बनाया गया ताकि दोनो कान एक जैसे लगे और इस प्रत्यारोपण में डॉक्टरों ने सफलता भी हासिल कर ली है.
खास बात है कि कान को बार-बार चिपकाने के लिए एडहेसिव लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि सिर की हड्डी में पेंच लगाकर इसे चुंबक से फिट कर दिया गया है ताकि कान में स्थिरता और जड़ता बनी रहे. केजीएमयू के डॉक्टरों का दावा है कि मैग्नेट से चिपकने वाला और 3D प्रिंट के जरिए बना कृत्रिम कान एकदम असली कान जैसा लगता है. यह कारनामा केजीएमयू और उत्तर भारत के किसी अस्पताल में पहली बार किया गया है.
जन्म से नहीं था मरीज का कान
डॉ. सौम्येंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि मरीज को यह समस्या जन्म से थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नॉर्मल चेहरे की अपेक्षा में यह चेहरा कम ग्रोथ वाला था. इसी के चलते विकृतियों हो गईं. इस तरह के मामलों में खासकर कान में विकृतियों को देखा जाता है. कई बार कान ही नहीं होता है या फिर होता है तो बहुत छोटा सा और ऐसे मरीजों को समाज में बहुत दिक्कत होती है. वे जल्दी किसी को फेस नहीं कर पाते हैं.
हालांकि, डॉक्टर का कहना है कि उनको सुनने में दिक्कत नहीं होती लेकिन अगर कान ना हो तो विकृति पैदा होती है. डॉ सौम्येंद्र ने बताया कि ऐसे लोग चश्मा भी नहीं लगा पाते हैं क्योंकि इनके पास कान ही नहीं होता है और ऐसा ही एक मरीज उनके पास आया था.
3D प्रिंट की मदद से बनाया गया कान
डॉ विक्रम ने बताया कि अमूमन कान के पास वाली हड्डी में सिलिकॉन का प्रयोग करके ऐडहेसिव की मदद से पेंच को चिपकाया जाता है लेकिन यह ऐडहेसिव प्रक्रिया मरीजों में दिक्कत पैदा करती है. क्योंकि उन्हें रोज इसे नहाते वक्त निकालना पड़ता है,जिसके चलते असली कान की नेचुरल फीलिंग नहीं आ पाती है और ऐसे में मरीज को हमेशा अहसास होता रहता है कि यह कान उसके शरीर का हिस्सा नहीं है. इसीलिए डॉक्टरों ने इंप्लांट करके कान को फिक्स कर दिया.
इस कान को फिक्स करने के लिए उन्होंने मैग्नेट का इस्तेमाल किया जिससे कान एकदम जकड़ गए और मरीज को लगने लगा कि यह नकली कान उसके ही शरीर का हिस्सा है. इसके लिए उन्होंने एक और विधि अपनाई. सबसे पहले मरीज के दूसरे नॉर्मल कान की एक डिजिटल इमेज बनाई गई और उसी डिजिटल इमेज को फ्लिप कर दिया गया. इसे मिरर इमेज भी कहते हैं और इसी मिरर इमेज को फ्लिप करके उसका 3D प्रिंट निकाल लिया गया है.
इस 3D प्रिंट को कृत्रिम कान बनाने में इस्तेमाल किया गया. क्योंकि कान के आकार की रूप रेखा को बनाना बहुत ही कठिन है इसलिए 3D प्रिंट करके कान बनाया गया और यह मरीज के नॉर्मल कान जैसा ही था.
(सत्यम मिश्रा की रिपोर्ट)