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COVID Vaccination : 200 से ज्यादा कोविड वैक्सीन की डोज लेने के बाद भी इम्यून सिस्टम पर नहीं पड़ा कोई असर, वैज्ञानिक भी हुए हैरान

जर्मनी के रहने वाले एक 63 साल के व्यक्ति ने दावा किया है कि उसने कोरोना वैक्सीन की 200 से ज्यादा डोज लगवाई है. यह जानने के बाद वैज्ञानिक इस व्यक्ति के इम्यून सिस्टम की जांच कर रहे हैं.

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द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज जर्नल (Lancet Infestious Disease) में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चलता है कि हाइपरवैक्सीनेशन (Hypervaccination) का प्रतिरक्षा प्रणाली पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. शोधकर्ताओं ने जर्मनी में एक व्यक्ति की जांच की है, जो दावा करता है कि उसे कोविड-19 के खिलाफ 217 टीके लगे हैं. जांच में पाया गया कि उसका इम्यून सिस्टम पूरी तरह से फंक्शनल था.

कुछ वैज्ञानिकों का मानना था कि एंटीजन की आदत पड़ने के बाद प्रतिरक्षा कोशिकाएं कम प्रभावी हो जाएंगी. हालांकि ऐसा कुछ नहीं हुआ. हालांकि, लैंसेट जर्नल में प्रकाशित केस स्टडी में पाया गया कि व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह कार्यात्मक है. व्यक्ति जो दावा कर रहा है कि उसने निजी कारणों से 217 टीके लगवाए, उनमें से 134 की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है.

हाइपरवैक्सिनेशन क्या है?
हाइपरवैक्सिनेशन का मतलब है जरूरत से अधिक टीके प्राप्त करना, जो व्यक्तियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए संभावित जोखिम पैदा करता है. एक तरफ जहां टीके बीमारियों को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं वहीं अत्यधिक टीकाकरण से प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं जैसे एलर्जिक रिएक्शन, ऑटोइम्यून विकार और न्यूरोलॉजिकल कॉम्पलिकेशन शामिल हैं.

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इसके अलावा, अत्यधिक टीकाकरण स्वास्थ्य देखभाल के संसाधनों पर दबाव डाल सकता है और टीकाकरण कार्यक्रमों में भरोसे को कम कर सकता है. अनावश्यक टीकाकरण से बचने के लिए व्यक्तिगत स्वास्थ्य जोखिमों और लाभों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन आवश्यक है. सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रयासों को हाइपरवैक्सीनेशन से जुड़ी प्रतिकूल घटनाओं के जोखिम को कम करते हुए बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एविडेंस-बेस्ड टीकाकरण कार्यक्रम और संचार को प्राथमिकता देनी चाहिए.

जर्मनी में फ्रेडरिक-अलेक्जेंडर यूनिवर्सिटी एर्लांगेन-नर्नबर्ग (FAU) के किलियन शॉबर ने कहा, "हमें अखबार के लेखों के माध्यम से उनके मामले के बारे में पता चला." इसके बाद हमने उनसे बात की और उन्हें कुछ टेस्ट करवाने के लिए बुलाया. वह इसके लिए राजी हो गए.

क्या था मकसद
शोधकर्ता यह विश्लेषण करना चाहते थे कि यदि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली एक विशिष्ट एंटीजन के बहुत बार संपर्क में आती है तो क्या होता है. शॉबर ने बताया, "एचआईवी या हेपेटाइटिस बी जैसे पुराने संक्रमण में ऐसा हो सकता है, ज्यादा वैक्सीनेशन से वह दोबारा हो सकता है." साइंटिस्ट अभी इस मामले में स्टडी कर रहे हैं कि क्या होता है जब एंटीबॉडी बार-बार एक ही तरह के एंटीजन के संपर्क में आता है?

वैक्सीनेशन से क्या होता है?
वैक्सीनेशन में आम तौर पर रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया या वायरस के कुछ हिस्से या ऐसा ढांचा होता है, जिसे इंसान के सेल्स खुद बना सकें. इन एंटीजन की वजह से शरीर की इम्यूनिटी सिस्टम असली बीमारी पैदा करने वाले जीव को पहचानना सीख लेता है. फिर ये एंटीबॉडी बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया या वायरस से अधिक तेजी और मजबूती से लड़ सकता है.

क्या निकला निष्कर्ष
शख्स के ब्लड सैंपल लिए गए. इसके साथ ही उसके कुछ पुराने ब्लड सैंपल भी जमा किए जिन्हें बीते सालों में फ्रीज कर रखा गया था. डॉक्टर ने बताया, 'हम इन नमूनों का उपयोग यह निर्धारित करने में सक्षम थे कि प्रतिरक्षा प्रणाली टीकाकरण पर कैसे प्रतिक्रिया करती है. परिणामों से पता चला कि व्यक्ति के पास SARS-CoV-2 के खिलाफ बड़ी संख्या में टी-प्रभावक कोशिकाएं हैं. शोधकर्ताओं ने कहा, ये शरीर के अपने सैनिकों के रूप में कार्य करते हैं जो वायरस से लड़ते हैं.