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Marburg: रवांडा में मारबर्ग वायरस से 8 लोगों की मौत... नाक, मुंह और आंखों से आने लगता है खून... क्या Corona के बाद यह Virus ला सकता है दूसरी महामारी, जानिए इसके लक्षण और कैसे फैलता है यह

Symptoms of Marburg virus: मारबर्ग वायरस चमगादड़ों की वजह से होता है. यह जानवर से इंसानों में आने के बाद एक व्यक्ति से दूसरे में फैल रहा है. मारवर्ग वायरस कोविड से कई गुना खतरनाक है. इस वायरस से डेथ रेट करीब 70 से 90 फीसदी है जबकि कोविड में यह 2 फीसदी था. 

Marburg virus (Photo: Getty Images) Marburg virus (Photo: Getty Images)
हाइलाइट्स
  • मारबर्ग वायरस के संक्रमण से आता है तेज बुखार 

  • नाक, मुंह और आंखों से शुरू हो जाती है ब्लीडिंग 

कोरोना वायरस (Corona Virus) का खतरा अब तक पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. कई देशों में इसके मामले अभी भी देखे जा रहे हैं. इस वायरस का दहशत अभी लोगों के दिलों से हटा भी नहीं है कि एक और वायरस ने दस्तक दे दी है. इसका नाम मारबर्ग वायरस (Marburg  Virus) है.

मारबर्ग वायरस इतना खतरनाक है कि इसकी चपेट में आने वाले 100 में से 88 लोगों तक की जान चली जाती है. मारबर्ग वायरस ने अफ्रीकी देश रवांडा में 8 लोगों की जान ले ली है. दर्जनों लोग इससे संक्रमित हैं. स्वास्थ्य विशेज्ञ यह अध्ययन कर रहे हैं कि क्या कोरोना के बाद मारबर्ग वायरस दूसरी महामारी ला सकता है. आइए जानते हैं आखिर मारबर्ग वायरस क्या है, इसके लक्षण क्या हैं, यह कैसे फैलता है और इससे बचने के उपाय क्या हैं?

क्या है मारबर्ग वायरस
Marburg  Virus फिलोविरिडे परिवार का एक रक्तस्रावी बुखार वायरस है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार मारबर्ग तेजी से संक्रमित करने वाला वायरस है. इसमें बुखार और ब्लीडिंग के साथ ही इंसान की मौत हो सकती है. यह वायरस इबोला वायरस के समान परिवार का हिस्सा है. WHO ने इसे जोखिम समूह 4 रोगजनक (Risk Group 4 Pathogen) के रूप में रेट किया है. अमेरिका स्थित एनआईएच/नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज ने इसे श्रेणी ए प्रायोरिटी पैथोजन के रूप में रैंक किया है. सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने इसे कैटेगरी ए बायोटेरोरिज्म एजेंट के रूप में सूचीबद्ध किया है. ऑस्ट्रेलिया समूह द्वारा मारबर्ग वायरस को निर्यात नियंत्रण के लिए एक जैविक एजेंट के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है. 

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सबसे पहले कब हुई पहचान
मारबर्ग वायरस की पहचान सबसे पहले साल 1967 में की गई थी. उस समय जर्मनी के फ्रेंकफर्ट में मारबर्ग वायरस का मरीज मिला था. उसी समय बेलग्रेड और सर्बिया में भी मारबर्ग के मरीज पाए गाए थे. माना जाता है कि यह वायरस शुरू में बंदर से फैला. दरअसल, यूगांडा से अनुसंधान (Research) अफ्रीकन ग्रीन मंकी को लाया गया था. वहीं पर लेबोरेटरी से इसी बंदर से यह वायरस फैला. धीरे-धीरे यह कई अफ्रीकी देशों में फैल गया. हालांकि इस वायरस का प्रकोप कुछ सालों के लिए थम गया था लेकिन फिर साल 2008 में यूगांडा आए एक यात्री में इसके लक्षण दिखे. आपको मालूम हो कि साल 2012 में मारबर्ग वायरस से यूगांडा में 15 लोगों की, कांगो में 128 की और सबसे अधिक अंगोला में 227 लोगों की जानें जा चुकी हैं. 

कैसे फैलता है मारबर्ग वायरस
मारबर्ग वायरस चमगादड़ (Fruit Bat) की एक प्रजाति के संपर्क में आने से फैलता है. जब इस वायरस से पीड़ित व्यक्ति से कोई दूसरा आदमी संपर्क में आता है तो वह भी संक्रमित हो सकता है. संक्रमित व्यक्ति के किसी भी तरह के फ्लूड या कटे हुई स्किन, ब्लड आदि के संपर्क में आने से दूसरे व्यक्ति को हो सकता है. यदि संक्रमित व्यक्ति का ब्लड कहीं गिर जाता है और फिर उससे कोई सट जाता है तो इससे भी यह बीमारी हो सकती है. यह वायरस ज्यादातर पीड़ित के शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों की वजह से फैलता है. जैसे संक्रमित व्यक्ति का पसीना, लार, उल्टी, यूरिन या बलगम के संपर्क में आने पर दूसरे व्यक्ति को ये वायरस अपनी चपेट में ले सकता है. यदि कोई व्यक्ति पीड़ित व्यक्ति के बेड या कपड़ों के संपर्क में आता है तो उसे भी मारबर्ग वायरस अपनी चपेट में ले सकता है.

मारबर्ग वायरस के लक्षण
आम वायरल इंफेक्शन की तरह ही मारबर्ग वायरस के लक्षण शुरू में दिखते हैं. जब यह वायरस किसी को संक्रमित करता है तो पहले फेज तक पहुंचने में पांच से 7 दिन का समय लगता है. इस वायरस से पीड़ित होने पर ठंड लगती है और तेज बुखार आता है. सिर में, ज्वाइंट में और मांसपेशियों में दर्द रहता है. गले में खराश की समस्या होती है. स्किन पर दाने निकलने लगते हैं. एक-दो दिनों के बाद ऐसा लगता है कि ये सारे लक्षण कम हो गए हैं लेकिन जल्द ही दूसरा फेज शुरू हो जाता है. 

इसमें छाती और पेट में बहुत दर्द होने लगता है. डायरिया और उल्टी होने लगती है. तेजी से पीड़ित व्यक्ति का वजन कम होने लगता है. स्टूल से खून आने लगता है. नाक, मुंह, आंखें और वेजाइना से खून निकलने लगता है. यदि तुरंत सही तरह से अस्पताल में इलाज नहीं किया गया तो मरीज की मौत तक हो सकती है. मारबर्ग का बुखार ब्लड पर असर करता है. इसकी वजह से इंटरनल ब्लीडिंग होने लगती है. इसी वजह से इस बुखार को खतरनाक माना जाता है. चिकित्सक बताते हैं कि यह वायरस खुद में बदलाव करता रहता है. म्यूटेशन के कारण इसके स्ट्रेन आते रहते हैं. यही कारण है कि हर बार ही ये वायरस जानलेवा साबित होता है.

मारबर्ग वायरस से बचने के उपाय 
मारबर्ग वायरस की अभी कोई दवा या वैक्सीन उपलब्ध नहीं है. मरीज का इलाज लक्षणों के आधार पर किया जाता है. ब्लीडिंग रोकने के लिए दवाइयां दी जाती हैं. मरीज की गंभीर स्थिति होने पर इम्यून थेरेपी का भी उपयोग किया जाता है. दर्द की दवा दी जाती है. जरूरत होने पर मरीज को ऑक्सीजन दी जाती है. मारबर्ग वायरस से संक्रमित व्यक्ति ठीक भी हो जाते हैं तो भी इसका असर कई दिनों तक रहता है. जैसे मसल्स में दर्द और हेयर लॉस से लक्षण दिख सकते हैं. मारबर्ग वायरस से बचने का उपाय एहितायात है. वैसे लोग जो जानवरों को पालते हैं या खदानों में काम करते हैं, वहां से चमगादड़ के माध्यम से मारबर्ग वायरस इंसानों को संक्रमित कर सकता है. 

ऐसे में जरूरी है कि आप इन जगहों पर काम करने के दौरान मास्क, गोगल्ज, एपरन, ग्लव्स का उपयोग जरूर करें. इतना ही नहीं इस संक्रमण से ठीक हुए व्यक्ति के वीर्य में बहुत दिनों तक यह वायरस जिंदा रहता है इसलिए यौन संबंध बनाने से पहले डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है. यदि कोई व्यक्ति मारबर्ग वायरस से संक्रमित हो गया तो उसे अपने शरीर को पूरी तरह हाईड्रेट रखना चाहिए. लिक्विड डाइट और इलेक्ट्रॉलाइट्ज का ज्यादा से ज्यादा कंज्यूम करना चाहिए. इसके अलावा यदि कोई संक्रमित व्यक्ति आपके आसपास है तो उससे दूरी बरतें. संक्रमित व्यक्ति के आसपास होने पर ग्लव्स जरूर पहनें और मास्क लगाएं.पीड़ित व्यक्ति को जल्दी से जल्दी क्वारंटाइन कर इलाज शुरू करवाएं.