प्रिशा ने अपना जन्मदिन अपने असली जन्मदिन के चार महीने पहले मना लिया क्योंकि उसके माता-पिता को उम्मीद नहीं थी कि वो तब कर बचेगी भी या नहीं. प्रिशा को बिलियरी एट्रेसिया (biliary astresia)डिटेक्ट हुआ, ये छोटे बच्चों में एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें लिवर भी फेल हो सकता है. प्रिशा के माता-पिता बिहार के हृदयस्थल, जहानाबाद नामक एक छोटे से शहर में रहते हैं और एक मध्यमवर्गी परिवार से ताल्लुक रखते हैं.
दोस्तों से किया पैसों का इंतजाम
28 वर्षीय प्रिशा की मां,अंजलि ने हिन्दुस्तान टाइम्स के हवाले से कहा, “मेरे बच्चे की त्वचा पीली हो गई थी. उसके छोटे से शरीर को इतने दर्द से गुजरते हुए देखना असहनीय था. हमने उसका नाम प्रिशा रखा था, जिसका अर्थ है भगवान का उपहार. हर रात, मैं इस डर से सोती थी कि वो उपहार मुझसे छीन लिया जाएगा.”असंख्य डॉक्टरों के पास चक्कर लगाने के बाद, माता-पिता समझ गए कि प्रिशा को बचाने का एकमात्र तरीका लिवर प्रत्यारोपण था. विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि वे बच्चे को दिल्ली ले जाएं. जब तक कि पैसों का इंतजाम हुआ और वो दिल्ली आए प्रिशा आठ महीने हो गई थी और उसकी हालात और भी ज्यादा खराब हो गई थी. बीमारी ने उसकी त्वचा और हड्डियों पर असर दिखाना शुरू कर दिया था.
शिक्षक हैं पिता
प्रिशा के पति,असुबी गुंजन एक स्कूल में शिक्षक हैं. उन्होंने प्रिशा के इलाज के लिए दोस्तों से कर्ज लिया और ट्रांसप्लांट की भारी लागत को पूरा करने के लिए अस्पताल की सहायता से एक क्राउडफंडिंग अभियान भी शुरू किया. अंजलि ने कहा, “जब डॉक्टरों ने हमें बताया कि हमारे बच्चे को डोनर की आवश्यकता है, तो मैंने एक सेकंड के लिए भी नहीं सोचा और कहा कि मैं स्क्रीनिंग और परीक्षण से गुजरना चाहता हूं. यह उसके जीने का मौका था, और हम इसे जाने नहीं दे सकते थे. मेरे पति को बहुत भागदौड़ करनी पड़ती थी, पैसों और दवा का इंतजाम करना पड़ता था, इसलिए वो डोनर नहीं हो सकते थे, तो मैंने ये करने की सोची.”
कुछ दिन पहले ही मां का हुआ था सी-सेक्शन
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में ट्रांसप्लांट सर्जरी की गई और मां को बच्ची को गोद में लेने का मौका एक हफ्ते बाद मिला. प्रिशा आईसीयू में थी और उसे संक्रमण से बचाना था. डॉक्टर कभी-कभी वीडियो कॉल करके उसे बच्ची दिखा दिया करते थे. अंजलि ने कहा, ''मैं अपने बच्चे को छूने के लिए तरस गई थी. मैं बहुत रोता थी. लेकिन इस आशा ने कि वह ठीक हो जाएगी और वह जीवन जी पाएगी जिसकी वह हकदार थी, मुझे आगे बढ़ने दिया.”अंजलि का आठ महीने पहले ही सी-सेक्शन हुआ था और वो अभी भी कमजोर थीं. अंजलि के पति को उनकी चिंता जरूर हुई लेकिन अपनी बेटी के लिए उन्होंने सबकुछ सहा. अंजलि ने कहा, "मुझे लगता है कि जब आप मां बनती हैं तो आपके दर्द की दहलीज स्वाभाविक रूप से बढ़ जाती है. यह परमेश्वर है जो आपको यह अद्भुत शक्ति देता है. कुछ जटिलताओं के बावजूद, मैं सर्जरी के बाद तेजी से ठीक हो गई और एक बार फिर से अपनी बेटी के साथ खेलने का इंतजार नहीं कर सकती थी.” अंजलि ने अपने लिवर का 20% हिस्सा दान कर दिया.
क्या है ये बिमारी?
प्रत्यारोपण के बाद प्रिशा के स्वास्थ्य में काफी सुधार हुआ. अपोलो अस्पताल के लिवर ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ, डॉ नीरव गोयल जिन्होंने ट्रांसप्लांट किया था कहते हैं ''प्रिशा का वजन बढ़ना शुरू हो गया है और वह अब एक गोल-मटोल, चंचल बच्ची है. लिवर ट्रांसप्लांट उन बच्चों के लिए जीवन रक्षक हो सकता है जिन्हें बाइलरी एट्रेसिया है. जन्म से ही उनकी पित्त नलिकाएं नहीं बनती हैं जिससे लीवर सिरोसिस हो जाता है. प्रिशा की मां ने अपने निस्वार्थ कार्य से उसकी जान बचाई..”
अंजलि कहती हैं कि उन्होंने कुछ असाधारण नहीं किया है. उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि मां स्वाभाविक रूप से साहसी होती हैं. मेरा बच्चा स्वस्थ है, और हम एक साथ मदर्स डे मनाकर खुश हैं.”अपोलो अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डॉयरेक्टर, डॉ. अनुपम सिब्बल कहते हैं, “प्रिशा हमारी 500वीं लिवर ट्रांसप्लांट पेशेंट थी. अंजलि ने प्रिशा को दो बार जीवनदान दिया. एक बार जब उसने बच्चे को जन्म दिया और दूसरी बार अपने लीवर का एक हिस्सा दान करके. एक माँ के लिए, इससे बड़ा क्षण नहीं हो सकता था.”