एक शीर्ष सरकारी विशेषज्ञ ने गुरुवार को कहा कि भारतीय फार्मा कंपनी जेनोवा ने अपने एमआरएनए प्लेटफॉर्म कोरोनवायरस वैक्सीन कैंडिडेट का एक ओमिक्रॉन-विशिष्ट संस्करण बनाया है और मूल डोज के साथ-साथ इसका भी क्लिनिकल ट्रायल किया जा रहा है. जेनोवा की यह एमआरएनए वैक्सीन पूरी तरह से स्वदेशी है और इसे अमेरिकी एमआरएनए डोज की अल्ट्रा फ्रीजिंग आवश्यकताओं के बजाय सामान्य कोल्ड चेन नेटवर्क में ले जाया और रखा जा सकता है. यह प्लेटफॉर्म सबसे मजबूत कोविड -19 टीकों में से एक साबित हुआ है और इसके माध्यम से विकसित डोज को जल्दी से अपडेट किया जा सकता है.
इंट्रा-डर्मल बनाने की हो रही है कोशिश
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य), वीके पॉल ने गुरुवार को कोविड पर साप्ताहिक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा, “डेवलपर्स ने ओमिक्रॉन के लिए वैक्सीन कैंडिडेट को बदल दिया है, और उस पर भी लगातार काम हो रहा है. इसके अलावा, एक और जबरदस्त फायदा यह है कि वे कोशिश कर रहे हैं कि इसे एक विशेष एप्लीकेटर का उपयोग करके इंट्रा-डर्मल बनाया जाए. हमें बहुत गर्व है कि हमारे पास जेनोवा का यह टीका है, जो पूरी तरह से भारत में बनाया गया है.” उन्होंने कहा कि वैक्सीन उम्मीदवार, नैदानिक परीक्षण के अंतिम चरण में है.
ये वैक्सीन हमारे लिए संपत्ति
“इस मंच पर एक भारतीय वैक्सीन उपलब्ध होना हमारे लिए कोविड और ओमिक्रॉन के मद्देनजर एक संपत्ति है. कल और उसके बाद भी, अन्य बीमारियों के लिए ये टीके मददगार साबित हो सकते हैं," उन्होंने मलेरिया, डेंगू और तपेदिक जैसी बीमारियों का हवाला देते हुए कहा. "ऐसी कई बीमारियां हैं जिनके लिए हम एक किफायती, प्रभावी और परमानेंट वैक्सीन की तलाश में हैं. Sars-CoV-2 महामारी की लड़ाई में एक विकल्प के रूप में, यह उतना ही प्रासंगिक है जितना कि कई अन्य टीके प्रासंगिक हैं,” पॉल ने कहा.
विशेषज्ञ एफिकेसी डेटा का कर रहे इंतजार
विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन कितनी कारगर है, यह जानने के लिए डेटा देखने की जरूरत है. सीएमसी-वेल्लोर के वरिष्ठ वैक्सीन विशेषज्ञ और फैकल्टी गगनदीप कांग ने कहा, " हम एफिकेसी डेटा देखने के बाद ही, जो कहा जा रहा है उस पर विश्वास करेंगे." पुणे स्थित जेनोवा बायोफार्मास्युटिकल्स लिमिटेड सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग- जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (डीबीटी-बीआईआरएसी) के सहयोग से वैक्सीन बना रही है. पॉल ने यह भी कहा कि इस महामारी के दौरान कई नवाचार देखने को मिले हैं जो भविष्य के अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में मदद करेंगे.