भारत में 5.7 करोड़ से ज्यादा भारतीय कई तरह की फंगस बीमारियों से पीड़ित हैं. जबकि 10 फीसदी घातक फंगस संक्रमण से प्रभावित हो सकते हैं. भारत में फंगल रोग अक्सर होते हैं, लेकिन इसकी घटना और व्यापकता स्पष्ट नहीं है. यह समीक्षा देश में विभिन्न फंगल संक्रमणों की आवृत्ति या बोझ को परिभाषित करने वाली पहली समीक्षा है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, एम्स कल्याणी, पश्चिम बंगाल और पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के साथ-साथ मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, यूके के शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 57,250,826 (5.7 करोड़ से अधिक) या भारत की जनसंख्या का 4.4 प्रतिशत लोग इससे प्रभावित हैं.
फंगल इन्फेक्शन से प्रभावित हैं लोग
लेख के प्रमुख लेखक एम्स दिल्ली के अनिमेष रे ने कहा, "फंगल रोगों के कारण कुल बोझ बहुत बड़ा है, लेकिन इसकी सराहना नहीं की गई है." रे ने कहा, "जबकि भारत में एक साल में 30 लाख से कम लोगों टीबी से प्रभावित होते हैं, वहीं फंगल रोग से प्रभावित भारतीयों की संख्या कई गुना अधिक है."जर्नल ओपन फोरम इंफेक्शियस डिजीज (Open Forum Infectious Diseases) में प्रकाशित समीक्षा में पाया गया कि वैजाइनल थ्रश या योनि का यीस्ट इंफेक्शन बार-बार होने वाले हमलों से प्रजनन आयु की लगभग 2.4 करोड़ महिलाओं को प्रभावित करता है.
हेयर फंगल इंफेक्शन जिसे टिनिया कैपिटिस (tinea capitis)के रूप में जाना जाता है से स्कूली उम्र के बच्चों एक समान संख्या में प्रभावित होते हैं. अध्ययन के अनुसार, यह एक दर्दनाक स्कैल्प इंफेक्शन है जो बालों के झड़ने का कारण बनता है.
कई लोगों को फेफड़े में एलर्जी
अन्य 1,738,400 (17 लाख से अधिक) लोगों को क्रॉनिक एस्परगिलोसिस था जोकि एक तरह का रेसपिरेटरी इंफेक्शन है यह एक प्रकार के मोल्ड के कारण होता है. 35 लाख लोग गंभीर एलर्जी फेफड़े के मोल्ड रोग से पीड़ित थे. समीक्षा से पता चलता है कि माना जाता है कि 10 लाख से अधिक लोगों को संभावित रूप से ब्लाइडिंग फंगल इंफेक्शन (blinding fungal eye disease)है, और लगभग दो लाख को म्यूकोर्मिकोसिस था, जिसे "ब्लैक मोल्ड" कहा जाता है.
शोधकर्ताओं ने कहा कि गंभीर फंगल संक्रमण का कुल बोझ भारत में tuberculosis की घटना से 10 गुना अधिक है. यह दर्शता है कि भारत की एक बड़ी आबादी फंगल रोगों से प्रभावित है. द यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर और ग्लोबल एक्शन फॉर फंगल डिजीज के प्रोफेसर डेविड डेनिंग ने कहा कि हाल के वर्षों में प्रमुख डॉगनोस्टिक सुधार हुए हैं. भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं क्षमता के मामले में निजी अस्पतालों के साथ पकड़ बना रही हैं. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर जागरुकता और स्वास्थ्य सुविधाओं पर जोर देने की जरूरत है.