कोरोना ने दुनियाभर में तबाही मचाई थी. अब धीरे-धीरे कोरोना का असर खत्म हो रहा है. ऐसे में लोग खुद को सेहतमंद रखने के लिए नए-नए तरीके अपना रहे हैं. लॉन्ग कोविड के लक्षणों से उबरने के लिए लोग खून साफ करा रहे हैं. इसके महंगे इलाज पर यूरोप में हजारों डॉलर खर्च कर रहे हैं.
क्या है ब्लडवॉशिंग प्रोसेस-
खून साफ करने की प्रक्रिया के तहत पहले इंसान के शरीर से खून निकाला जाता है और फिर उसमें से लिपिड और सूजन वाले प्रोटीन को हटाया जाता है. इसके बाद फिर से ब्लड के बॉडी में डाला जाता है. इस ब्लडवॉशिंग या एफेरेसिस कहते हैं. एफेरेसिस प्रोसेस में रक्तस्राव, क्लॉटिंग, इंफेक्शन और रिएक्शन का खतरा रहता है. जर्मन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी के मुताबिक विपिड की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए ब्लडवॉशिंग आखिरी विकल्प है. इसको लेकर लंबे समय तक कोरोना पीड़ित लोगों पर कोई क्लीनिकल ट्रायल नहीं किया गया है.
इलाज के नाम खर्च कर रहे हैं पूरी कमाई-
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक नीदरलैंड के एक मरीज ने खून साफ कराने के लिए अपने जीवनभर की पूरी कमाई खर्च कर दी. वो खून साफ कराने के लिए साइप्रस गई थी. हालांकि इससे उसको कोई फायदा नहीं हुआ और उसके लक्षणों में कोई सुधार नहीं हुआ.
नवंबर 2020 में एक डच महिला SARS-CoV-2 से पीड़ित थी. वो बहुत ज्यादा थकान अनुभव किया. किचन तक जाने में उसको दो घंटे लग जाते थे. उसने सांस लेने में तकलीफ और सीने में दर्द का अनुभव किया. मेडिकल टेस्ट में कुछ भी असामान्य नहीं पाया गया. इस तरह के लक्षण लंबे समय तक चलने वाले कोरोना के लिए आम है. डच महिला ने नवंबर 2021 में जॉब छोड़ दिया. हालांकि उसने दो बार जॉब पर जाने की नाकाम कोशिश की थी. इसके बाद डच महिला ने लंबे समय तक कोरोना से जूझने वाले एक ग्रुप से जुड़ गई. इस ग्रुप में जर्मनी की एक क्लीनिक में एफेरेसिस प्रोसेस की बात की जा रही थी. डच महिला ने एफेरेसिस प्रोसेस को अपनाने के लिए मार्च 2022 में साइप्रस में लॉन्ग कोविड सेंटर की यात्रा की. इसके लिए महिला ने समंदर के किनारे एक अपार्टमेंट किराए पर लिया. दो महीने के भीतर वो 6 बार एफेरेसिस प्रोसेस से गुजरी और हर बार के लिए उसने 1697 डॉलर खर्च किए. साइप्रस में रहने के दौरान उसने 9 बार हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी कराई. लेकिन महिला को कोई फायदा नहीं हुआ. इस इलाज में डच महिला की सारी कमाई खत्म हो गई.
जर्मनी, स्विटजरलैंड और तुर्की में ऐसे कई क्लीनिक हैं, जो लॉन्ग कोरोना के पीड़ितों के लिए एफेरेसिस का ऑफर देते हैं. जर्मनी के लिपिड सेंटर नॉर्थ राइन ने हजारों मरीजों पर इसका एफेरेसिस का इस्तेमाल किया और इसके अच्छे नतीजों का दावा किया.
एफेरेसिस पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ-
माना जाता है कि एफेरेसिस ब्लड की चिपचिपाहट को कम करता है और लॉन्ग कोविड के मरीजों में माइक्रोक्लॉट्स को हटाकर छोटी रक्त वाहिकाओं में सर्कुलेशन को सुधारता है. इलाज करने वालों का दावा है कि क्लीनिकल ट्रायल के लिए मरीज सालों तक इंतजार नहीं कर सकते हैं. वो इन दिक्कतों से गुजर रहे हैं तो इलाज कराना फायदेमंद है. हालांकि कोई भी रिपोर्ट या रिसर्च ऐसी नहीं है, जो दिखाती हो कि एफेरेसिस से लॉन्ग कोविड के मरीजों के इलाज में मदद मिलती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स स्कूल ऑफ मेडिसिन में वैस्कुलर बायोलॉजी के प्रोफेसर रॉबर्ट एरियंस का कहना है कि जब बीमारी का कारण ही नहीं पता है तो उसका इलाज करना समय से पहले लगता है. एफेरेसिस में जोखिम भी है. इससे ब्रेन हेमरेज का खतरा रहता है. ये उस वक्त और भी मुश्किल भरा है, जब आप अपने घर से दूर दूसरे देश में इलाज करा रहे हों.
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