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Lazarus Syndrome: मौत को छूकर टक से लौट आता है इंसान, दोबारा धड़कने लगता है दिल... जानिए क्या है लजारस सिंड्रोम

Lazarus Syndrome: राजस्थान के झुंझनू में एक व्यक्ति के मौत से लौटने की घटना ने कई लोगों को हैरान किया. इससे सवाल उठा कि क्या कोई व्यक्ति मरने के बाद जिन्दा हो सकता है? इसका जवाब है हां. ऐसा लजारस सिंड्रोम के कारण संभव है.

लज़ारस सिंड्रोम बहुत दुर्लभ है और अब तक इसके सिर्फ 63 मामले दर्ज किए गए हैं. लज़ारस सिंड्रोम बहुत दुर्लभ है और अब तक इसके सिर्फ 63 मामले दर्ज किए गए हैं.

राजस्थान के झुंझुनू में हाल ही में रोहिताश नाम के एक युवक की तबीयत बिगड़ने के बाद मौत हो गई. डॉक्टर ने रोहिताश को मृत घोषित कर उसके शव को घर लौटा दिया. लेकिन जब रोहिताश को चिता पर लेटाया गया तो उसकी आंखें खुल गईं और वह सांस लेने लगा. आनन-फानन में उसे अस्पताल लाया गया, हालांकि कुछ घंटों बाद उसकी मौत हो गई. 

रोहिताश की बीमारी आखिर उसकी मौत की वजह बनी लेकिन इस घटना ने एक सवाल को जन्म दे दिया - क्या कोई इंसान मरने के बाद जिन्दा हो सकता है? इसका जवाब है हां. लेकिन ऐसा होने की संभावनाएं बहुत सीमित हैं. और इस 'चमत्कार' के लिए जिम्मेदार है लज़ारस सिंड्रोम. इस सिंड्रोम के बारे में जानने से पहले हमें जानना होगा कि मौत कितने तरह की होती है. 

दो तरह की होती है मौत 
यानी मौत एक ही तरह की होती है, जिसमें इंसान मर जाता है. जिन्दगी को अलविदा कह देता है. लेकिन डॉक्टरों की भाषा में मौत दो तरह की होती है. पहली, क्लिनिकल मौत और दूसरी बायोलॉजिकल मौत. क्लिनिकल मौत वह होती है जिसमें आपका दिमाग तो काम करता रहता है लेकिन दिल धड़कना बंद कर देता है. 

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फेफड़े सांस लेना बंद कर देते हैं. इसमें ईसीजी के जरिए पता लगाया जाता है कि आप जिन्दा हैं या नहीं. क्लिनिकल मौत होने पर एक व्यक्ति का दिमाग 10 मिनट तक काम करता रह सकता है और उसे सीपीआर (CPR) देकर दोबारा जिन्दा किया जा सकता है. इसकी संभावनाएं कम होती हैं लेकिन ऐसा किया जा सकता है. 

दूसरी मौत होती है बायोलॉजिकल मौत यानी वह स्थिति जब आपका दिमाग भी काम करना बंद कर देता है. इस स्थिति में दिल और फेफड़ों को दोबारा काम करवाने की कोई संभावना नहीं रहती. 

क्या है लजारस सिंड्रोम? 
बाइबिल में लजारस नाम के एक आदमी का जिक्र आता है जिसकी मौत के चार दिन बाद ईसा मसीह ने उसे जिन्दा कर दिया था. सन् 1993 में मेडिकल साइंसदान जे जी ब्रे ने मौत के बाद जिन्दा होने की प्रक्रिया को लजारस सिंड्रोम का नाम दे दिया. लजारस सिंड्रोम में एक इंसान के दिल की धड़कन रुकने के बाद दोबारा लौटती है. 

इस सिंड्रोम का नाम उनके नाम पर रखा गया क्योंकि जब आपके खून का बहाव अचानक से दोबारा शुरू होता है तो ऐसा लगता है जैसे आप मौत को छूकर वापस आ गए हों. यह अलग बात है कि ऐसा होता नहीं है. लजारस सिंड्रोम में आपके दिल की धड़कन रुकने के बाद दोबारा शुरू होती है. फिलहाल डॉक्टरों को यह नहीं मालूम कि ऐसा क्यों होता है, लेकिन इसके कई कारण हो सकते हैं. 

क्यों होता है लजारस सिंड्रोम? 
एयर ट्रैपिंग- लजारस सिंड्रोम के लिए सबसे आम कारण एयर ट्रैपिंग है. अगर आपको क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज (COPD) है तो ऐसा होने की संभावना ज्यादा होती है. जब सीपीआर (हाइपरवेंटिलेशन) के दौरान हवा आपके फेफड़ों में बहुत तेज़ी से धकेली जाती है तो उसे बाहर निकलने का समय नहीं मिलता. इसलिए यह फेफड़ों में जमा हो जाती है. इसे एयर ट्रैपिंग कहते हैं. 

जैसे-जैसे हवा फेफड़ों में जमा होती है, आपकी छाती के अंदर दबाव बढ़ता जाता है. आखिरकार यह हवा इतनी बढ़ जाती है कि आपका खून आपकी छाती की नसों से आपके दिल तक नहीं पहुंच पाता. इससे आपके दिल की धड़कन रुक जाती है. लेकिन जैसे-जैसे फेफड़ों में हवा कम होती है, खून का बहाव शुरू हो जाता है और आम दोबारा 'जिन्दा' हो जाते हैं. 

दवाओं का असर होने में देरी- क्लिनिकल मौत के बाद जब एक व्यक्ति को सीपीआर दिया जाता है तो इन दवाओं को काम करने के लिए आपके दिल तक पहुंचना जरूरी होता है. जब ​​एयर ट्रैपिंग आपके दिल में खून को वापस जाने से रोकती है तो आपके खून में मौजूद कोई भी चीज़ दिल तक नहीं पहुंच पाती. वे दवाएं भी नहीं जो इंजेक्शन के जरिए आपके खून में पहुंचती है. 

एक बार जब एयर ट्रैपिंग ठीक हो जाती है और आपकी छाती में दबाव काफी कम हो जाता है तो खून आपके दिल तक पहुंचने लगता है और अपने साथ दवा भी ले जाता है. अगर दवाएं प्रभावी हैं तो आपका रक्त संचार अपने आप वापस आ जाएगा. 

डिफिब्रिलेशन के बाद कार्डियेक अरेस्ट- सीपीआर के दौरान मरीज दिल को फिर से चालू करने के लिए कई बार डॉक्टर उसे बिजली का झटका देता है. इसके लिए डिफिब्रिलेटर का इस्तेमाल किया जा सकता है. कभी-कभी झटके और उसके प्रभाव के बीच देरी होती है. इसमें ज्यादा समय लगने पर प्रतीत होता है कि आपको होश उस झटके की वजह से नहीं बल्कि अपने आप आया है. 

लजारस सिंड्रोम बहुत ही दुर्लभ घटना है. हेल्थलाइन डॉट कॉम के अनुसार, मेडिकल इतिहास में अब तक ऐसे 63 मामले ही दर्ज किए गए हैं. लेकिन डॉक्टरों की जिम्मेदारी है कि जब तक वे किसी मरीज की मौत सुनिश्चित न कर लें तब तक उसे मृत घोषित न करें. इसके लिए वे दिल की धड़कनें रुकने के बाद 10 मिनट इंतज़ार कर सकते हैं. साथ ही वे ईसीजी से सुनिश्चित कर सकते हैं कि मरीज दुनिया से जा चुका है.