पंजाब के मोगा जिले में, राजिंदर सिंह खोटे को 'मेडिसिन मैन' के नाम से जाना जाता है. राजिंदर पिछले 14 सालों से टीबी, एचआईवी, कैंसर और डायबिटीज से पीड़ित मरीजों की मदद कर रहे हैं. 42 साल के राजिंदर मोगा के निहाल सिंह वाला में न्यायिक परिसर में कंप्यूटर टाइपिंग और कानूनी फॉर्म की दुकान चलाते हैं और जरूरतमंद मरीजों की मदद करते हैं.
अब तक, खोटे ने 40,000 से ज्यादा रोगियों की मदद की है. अपने पिता और पत्नी की देहांत के बाद से, वह अब अपना 80 प्रतिशत समय उन मरीजों को समर्पित करते हैं जिन्हें मदद की जरूरत है. वह 14 सालों से चंडीगढ़ के पांच जिलों के झुग्गी-झोपड़ी इलाकों को दवाएं, भोजन देने के साथ-साथ टीबी, एचआईवी और कैंसर रोगियों की देखभाल भी कर रहे हैं.
इस तरह हुई शुरुआत
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राजिंदर ने बताया कि 14 साल पहले की बात है जब वह एक दिन फल खरीद रहे थे. उन्होंने एक और आदमी को फल खरीदते देखा जिसकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी और उसके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह फल खरीद सके. राजिंदर के मन में कुछ ऐसा आया कि वह खुद को उस आदमी की मदद करने से नहीं रोक पाए और उसके लिए फल खरीदे.
उस आदमी ने राजिंदर को बहुत धन्यवाद दिया और बताया कि वह कैंसर से पीड़ित है और उसके पास फल खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं. वह उनकी दुर्दशा से इतने प्रभावित हुए कि उनके लिए रोजाना फल और दूध भेजने लगे, लेकिन बदकिस्मती से दो महीने बाद उस आदमी का देहांत हो गया. लेकिन राजिंदर ने इस पहल को मुहिम बना दिया.
प्रधान मंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान में योगदान
राजिंदर व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं कर सके. उन्होंने स्कूल छोड़ने के तुरंत बाद अपनी कंप्यूटर टाइपिंग की दुकान शुरू की. इस दुकान को चलाते हुए उन्हें 20 साल हो गए हैं और उन्होंने दुकान से अपनी कमाई का 45 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा गरीब मरीजों की मदद करने और उनके लिए भोजन और दवाओं की व्यवस्था करने में खर्च किया है.
वह अब पंजाब में प्रधान मंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत नि-क्षय मित्र भी हैं और उन्होंने मोगा के पूरे जिले का समर्थन करने के लिए स्वेच्छा से काम किया है. जिस दिन से उन्होंने एक कैंसर रोगी को फल खरीदने में मदद की, उसी दिन से उन्होंने निर्णय लिया कि दवाओं और भोजन की कमी के कारण किसी की मृत्यू नहीं होनी चाहिए. इसलिए, उन्होंने आस-पास के सरकारी और निजी दोनों अस्पतालों का दौरा करना शुरू किया और पाया कि ऐसे बहुत से मरीज हैं जो दवाएं और खाना नहीं खरीद सकते हैं.
हर दिन करते हैं अलग-अलग जिलों का दौरा
राजिंदर ने अब मोगा, बठिंडा, फिरोजपुर, बरनाला और फरीदकोट सहित पांच जिलों की झुग्गियों में लोगों की मदद के लिए एक संगठित प्रणाली स्थापित की है. उन्होंने जिलों को दिन के हिसाब से बांट दिया है.
उन्होंने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “मैं हर दिन सुबह 7 बजे अपने स्कूटर से निकलता हूं और रोजाना 15 सरकारी और निजी अस्पतालों का दौरा करता हूं और रात 8 बजे के आसपास वापस आता हूं. जब मैं अस्पतालों का दौरा करता हूं, तो डॉक्टर मुझे उन मरीजों के नाम, पते और बीमारी बताते हैं, जिन्हें मदद की ज़रूरत होती है, जिसके बाद मैं उन्हें पैक्ड भोजन, बिस्कुट, ब्रेड, दलिया और सूखे दूध के पैकेट के अलावा दवाएं बांटता हूं.”
टीबी मरीजों के देते हैं फूड किट
राजिंदर के पास मोगा के तीन ब्लॉकों के सभी टीबी मरीजों की लिस्ट है जो उन्हें जिला टीबी अधिकारी ने दी है. इस जिले में 400 से अधिक टीबी मरीज हैं. वह उन्हें एक फूड किट देते हैं जिसमें अंडे, काले चने, दलिया, मिक्स दाल, चावल, बिस्किट और चार किलो आटे के अलावा मल्टीविटामिन और प्रोटीन सहित अन्य दवाएं होती हैं. हर एक किट की कीमत लगभग 700 रुपये होती है.
वह करीब 100 एचआईवी मरीजों की देखभाल भी करते हैं. वह उन्हें मल्टी-विटामिन, प्रोटीन, आयरन की गोलियां के अलावा सूखे दूध के पैकेट, दलिया, चावल की किट बनाकर देते हैं. इस तरह हर महीने 100 ऐसी किट देते हैं जिनकी कीमत लगभग 400 रुपये होती है.
वह 300 से ज्यादा गरीब डायबिटीक मरीजों के लिए इंसुलिन इंजेक्शन जैसी दवाएं खरीदते हैं. इसके अलावा, वह शहर के स्लम इलाकों में गर्भवती महिलाओं और छोटे गरीब बच्चों को दूध के पैकेट भी मुहैया कराते हैं.