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Arrhythmogenic cardiomyopathy: इस कारण एक्सरसाइज या खेल के दौरान अचानक कार्डियक अरेस्ट में चला जाता है इंसान, जानलेवा है यह बीमारी

एक्सरसाइज के दौरान अचानक कार्डियक अरेस्ट आने और फिर मौत हो जाने के पीछे का कारण है एक खास तरह की बीमारी, जिसका नाम है- Arrhythmogenic cardiomyopathy.

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हाइलाइट्स
  • एरिथोमोजैनिक कार्डियोमायोपैथी एक हृदय रोग है

  • पुरुष होते हैं अधिक प्रभावित

पिछले कुछ समय से हार्ट अटैक के कारण लोगों की मौत की खबरें लगातार आ रही हैं. खासकर कि एक्सरसाइज करते समय कार्डियक अरेस्ट होना और कुछ देर में इंसान की मौत. एक्टर सिद्धार्थ की जिम सेशन के बाद मौत हुई थी तो वहीं कॉमडियन राजू श्रीवास्तव को जिम के दौरान ही हार्ट अटैक पड़ा था. अब सवाल यह है कि आखिर इसका कारण क्या है? क्या सच में सिर्फ एक्सरसाइज करने से आपको दिल का दौरा पड़ सकता है या इसके पीछे कोई और वजह है?

जी हां, अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि इसका कारण एक खास तरह की दिल की बीमारी है जो अचानक मृत्यू का कारण बन सकती है. खासकर कि युवा एथलीटों में. इसका नाम है एरिथोमोजैनिक कार्डियोमायोपैथी है. 

वैज्ञानिकों ने किया शोध
एरिथोमोजैनिक कार्डियोमायोपैथी एक हृदय रोग यानी दिल की बीमारी है, जो विशेष रूप से युवा एथलीटों को प्रभावित करती है और अचानक मृत्यु का कारण बन सकती है. बेसल विश्वविद्यालय ने हाल ही में आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified) चूहों पर एक एक्सपेरिमेंट किया है. बताया जा रहा है कि अब वैज्ञानिक अचानक होने वाली कार्डियक डेथ को समझने के और करीब आ गए हैं. 

आपको याद दिला दें कि साल 2007 में फुटबॉल टीम सेविला एफसी के 22 वर्षीय एंटोनियो पुएर्ता कार्डियक अरेस्ट में चले गए थे और मैदान पर गिर गए और फिर अस्पताल में उनका निधन हो गया. बाद में पता चला कि उन्हें एरिथोमोजैनिक कार्डियोमायोपैथी बीमारी थी.

पुरुष होते हैं अधिक प्रभावित
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह बीमारी अनुवांशिक है यानी यह आपको अपने परिवार में ही किसी पूर्वज से विरासत में मिलती है. यह बीमारी हर 5,000 व्यक्तियों में से एक को प्रभावित करती है और  इसमें महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं.

बेसल विश्वविद्यालय के बायोमेडिसिन विभाग में सेल आसंजन समूह के एनाटोमिस्ट और प्रमुख वोल्कर स्पिंडलर के मुताबिक, इस बीमारी के कारण कार्डियक मसल्स के सेल्स को नुकसान होता है, कनेक्टिंग टिश्यू जमा होने लगते हैं और कार्डियक मसल्स के बीच में फैट जमने लगता है. और इसके कारण एक्सरसाइज के दौरान अचानक कार्डियक मौत हो सकती है. 

जीन म्यूटेशन एक बड़ा कारण 
वैज्ञानिकों की माने तो यह बीमारी अब सिर्फ हेरेडिटी नहीं बल्कि जीन म्यूटेशन के कारण भी हो सकती है. चिंता की बात यह है कि अगर बीमारी शुरुआत में ही पता चल जाए तब भी इसका अभी तक कोई इलाज नहीं है लेकिन आप अपने लक्षणों को काबू में कर सकते हैं.  

बायोमेडिसिन विभाग में मायोकार्डियल रिसर्च ग्रुप के प्रमुख कार्डियोलॉजिस्ट गैब्रिएला कस्टर के मुताबिक, इस बीमारी के मरीजों को सलाह दी जाती है कि वे किसी भी प्रतिस्पर्धी खेल से बचें और बीटा-ब्लॉकर्स जैसी दवाएं लें. साथ ही, जहां उपयुक्त हो वहां कैथेटर एब्लेशन किया जा सकता है या एक इम्प्लांटेबल डिफिब्रिलेटर का उपयोग किया जा सकता है. हालांकि, कभी-कभी हार्ट ट्रांसप्लांट ही एकमात्र विकल्प होता है.

कमजोर हो जाती हैं कार्डियक मसल्स की सेल्स 
वैज्ञानिकों की स्टडी का मुख्य कारण था कि कई बार म्यूटेशन उन स्ट्रक्चर को  प्रभावित करते हैं जिन्हें डेस्मोसोम (Desmosomes) के रूप में जाना जाता है. ये दिल की मसल्स की सेल्स की सतह पर प्रोटीन क्लस्टर होते हैं जिनके कारण सेल्स एक-दूसरे से मजबूती से जुड़ी होती हैं. लेकिन म्यूटेशन के कारण यह जुड़ाव कम हो जाता है और इससे दिल की मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं. 

इस परिकल्पना का परीक्षण करने के लिए, स्पिंडलर की टीम ने चूहों के जीनोम में उन्हीं म्यूटेशन को शुरू किया जो कि इस बीमारी से जूझ रहे मरीजों में होती हैं. इन जानवरों के कार्डियक फ़ंक्शन की जांच की गई और रिजल्ट में पाया कि इन जेनेटीकली मॉडिफाइड जानवरों में भी एरिथोमोजैनिक कार्डियोमायोपैथी जैसी दिल की बीमारी दिखी. 

इलाज के रास्ते ढूंढ रहे हैं वैज्ञानिक
वैज्ञानिकों ने पाया कि इस बीमारी के मरीज के दिल की मसल्स, सामान्य और स्वस्थ मसल्स से अलग हैं और उनकी सेल्स की सतह पर एक प्रोटीन है जिसके कारण मसल्स कमजोर हो रही हैं. इस प्रक्रिया में वैज्ञानिकों ने समझा कि अगर मरीज को कोई ऐसी दवा दी जाए जिससे मसल्स के कमजोर होने का रोका जा सके तो लोगों को अचानक होने वाली कार्डियक मौतों से बचाया जा सकेगा. 

हालांकि, अभी वैज्ञानिकों को एक लंबा रास्ता तय करना है क्योंकि इंसानों पर कुछ भी अप्लाई करने से पहले बहुत सी रिसर्च और टेस्ट करने होंगे. लेकिन इस स्टडी के जरिए वैज्ञानिक इस बीमारी को विस्तार से समझ सकेंगे.