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Children's Mental Health: जरूरत से ज्यादा फोन चलाने के कारण कई मानसिक बीमारियों के निशाने पर आ रहे हैं भारतीय बच्चे, जानिए क्या कर सकते हैं मां-बाप

बीते कुछ सालों में टेक्नोलॉजी के उद्भव ने जिन्दगी को आसान तो बनाया ही है, लेकिन यह कई चिंताओं का कारण भी बना है. इनमें से एक है बच्चों का बढ़ता हुआ स्क्रीन टाइम. बच्चों का जरूरत से ज्यादा फोन चलाना अब स्क्रीन 'एडिक्शन' में बदलता जा रहा है जो कई दिमागी बीमारियों को जन्म दे रहा है.

डब्ल्यूएचओ ने इस समस्या से निपटने के लिए उपाय बताए हैं. (Photo/Meta AI) डब्ल्यूएचओ ने इस समस्या से निपटने के लिए उपाय बताए हैं. (Photo/Meta AI)
हाइलाइट्स
  • पांच साल से कम उम्र के बच्चों में देखने को मिला धीमा विकास

  • डब्ल्यूएचओ ने बताए प्रैक्टिकल उपाय

छोटे बच्चों का जरूरत से ज्यादा फोन चलाना माता-पिता से लेकर डॉक्टरों तक के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. कई विशेषज्ञ इसे एक लत के तौर पर देखने लगे हैं. साइकोलॉजिस्ट डॉ एरिक सिगमैन अपने रिसर्च पेपर में इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चों का कई तरह की 'स्क्रीन' एक्टिविटीज में समस्या के स्तर तक समय बिताना एक तरह की लत बन गया है. किसी दूसरे नशे की तरह ही यह लत भी न सिर्फ दिमाग के विकास को बाधित कर रही है, बल्कि कई मानसिक बीमारियों की जड़ भी है. 

बच्चों के दिमाग का धीमा हो रहा विकास
माता-पिता की देखरेख के बिना लंबे समय तक फोन चलाने का एक बड़ा नुकसान यह है कि बच्चों के दिमाग के विकास की गति धीमी हो सकती है. प्लस वन (PLUS One) नाम के जर्नल में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार, जरूरत से ज्यादा स्क्रीन टाइम के कारण पांच साल से कम उम्र के बच्चों में धीमा विकास देखने को मिला है. खास तौर पर दो साल से कम उम्र के बच्चों की बात करने की क्षमता में धीमा विकास देखा गया. 

डॉ स्वाति छाबड़ा इंडियाटुडे.इन (Indiatoday.in) को बताती हैं कि जहां स्क्रीन टाइम बच्चों में बढ़ती हुई मानसिक परेशानियों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार नहीं है, वहीं यह कई बच्चों के धीमे मानसिक विकास के लिए जिम्मेदार है. डॉ छाबड़ा कहती हैं, "सात से आठ साल के कई बच्चे आंखें मिलाने से कतराते हैं. इन्हें ऑटिज़्म है, जिसे कई बार स्क्रीन एडिक्शन से जोड़ा जाता है. बच्चे जो स्क्रीन पर देखते हैं उसी की नकल करने लगते हैं. तीन साल से कम उम्र के बच्चों का जरूरत से ज्यादा स्क्रीन के साथ समय बिताना एक बड़ा रिस्क है."

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बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि अत्यधिक स्क्रीन टाइम याद्दाश्त और ध्यान से जुड़ी मानसिक बीमारियों को जन्म दे सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दो साल से कम उम्र के बच्चों को स्क्रीन देखते हुए समय नहीं बिताना चाहिए. डॉ. छाबड़ा ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे स्क्रीन टाइम 'भाषा विलंब' को बढ़ा रहा है, जिसमें एक बच्चा चीजों को समझता है लेकिन शब्दों का उपयोग किए बिना इशारों से अपनी जरूरतों को व्यक्त कर सकता है. 

सालुब्रिटास के वरिष्ठ सलाहकार न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. कदम नागपाल ने बताया कि स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से बच्चे की स्लीप साइकिल बिगड़ जाती है, जिससे उनके सोने-जागने का चक्र प्रभावित होता है. वह कहते हैं, "सोने-जागने का यह चक्र याददाश्त और ध्यान संबंधी समस्याओं का कारण बन सकता है. रात में स्क्रीन से निकलने वाली रोशनी दिमाग में डोपामाइन नाम के केमिकल को भी प्रभावित कर सकती है. यह दिमाग को अच्छा महसूस करवाता है. ऐसे में डोपामाइन रिलीज़ होने से बच्चे का बार-बार वीडियो देखने का दिल हो सकता है." 

इसके अलावा किसी गैजेट को जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने पर बच्चे को मिरगी, माइग्रेन, चिड़चिड़ेपन और अकेलेपन जैसी परेशानियां हो सकती हैं. मूल रूप से जरूरत से ज्यादा गैजेट इस्तेमाल करने वाला बच्चा खेल-कूद जैसी शारीरिक गतिविधियों से दूर रहता है जो लंबे समय में कई तरह के विकास को प्रभावित कर सकता है. 

माता-पिता क्या करें?
डॉ छाबड़ा कहती हैं कि स्क्रीन टाइम को कम करने का सबसे आसान तरीका है बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में व्यस्त रखना. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, शारीरिक गतिविधि बढ़ाना और छोटे बच्चों की नींद पूरी होने देना उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है. इससे बच्चे मोटापे से भी बच सकते हैं और बाद में ये आदतें दूसरी बीमारियों को रोकने में भी मददगार साबित होती हैं. बचपन में मोटापे और शारीरिक गतिविधि के डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञ डॉ. जुआना विलुम्सन कहते हैं, "हमें बच्चों के लिए खेलों को वापस लाने की जरूरत है." 

बच्चों का स्क्रीन टाइम कम करने के लिए 24-घंटे की साइकिल का पैटर्न समझना बेहद जरूरी है. 

लंबे समय तक संयमित या गतिहीन स्क्रीन टाइम को सक्रिय खेलों से बदला जाए. साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि छोटे बच्चे जरूरत के हिसाब से नींद ले रहे हैं. बच्चों की देखभाल करने वाले इंसान को उनके साथ ऐसी गतिविधियों में समय बिताना चाहिए जिनमें स्क्रीन की जरूरत नहीं होती. जैसे पढ़ना, कहानी सुनाना, खेल-कूद वगैरह. ये बच्चे के विकास के लिए बहुत जरूरी है.