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Smartphone Screentime: क्या आपका स्मार्टफोन कर रहा है आपके दिमाग को 'फ्राई'... स्क्रीनटाइम बढ़ने का पड़ता है गहरा असर

डॉ. वेंडी सुजुकी का कहना है कि स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के लगातार इस्तेमाल से हमारे मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ रहा है. लगातार स्क्रीन देखने से हमारे दिमाग की क्षमता कम हो रही है.

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आज शायद ही कोई हो जो स्मार्टफोन इस्तेमाल करता हो. आज जितना समय हम किताब पढ़ने या लोगों के साथ डिस्कशन में नहीं बिताते हैं जितना समय स्क्रीन पर जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि यह हद से ज्यादा स्क्रीन देखना या स्क्रीन का एडिक्शन आपके दिमाग को प्रभावित कर सकता है. पॉपुलर पॉडकास्ट द डायरी ऑफ़ अ सीईओ में बात करते हुए डॉ. वेंडी सुजुकी ने बताया कि स्क्रीन की लत आपके मस्तिष्क (Brain) के विकास और प्लास्टिसिटी की क्षमता को सीमित कर देती है. यह आपकी जिंदगी में खुशी की संभावना को सीमित कर सकती है. आपको असल जिंदगी में लोगों से मिलकर जो खुशी मिलती है वह कभी भी वर्चुअल लाइक्स से नहीं मिल सकती है. 

स्मार्टफोन हमारे दिमाग को 'फ्राई' कर रहा है, इससे मतलब आपके फोन के बहुत ज्यादा इस्तेमाल के बढ़ते नकारात्मक प्रभाव से है. स्मार्टफोन पर बढ़ती निर्भरता हमारे न्यूरल पाथवेज को रिवायर करती है और इससे हमारे दिमाग की ग्रोथ की क्षमता कम हो रही है. स्क्रीन टाइम बढ़ने से, खासकर सोशल मीडिया के इस्तेमाल से चिंता और अवसाद बढ़ रहा है.

डॉ. सुजुकी न्यूरोसाइंटिस्ट हैं और उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया पर लगातार नोटिफिकेशन, लाइक्स और नई रील्स आदि हमारे दिमाग में डोपामिन को रीलीज करते हैं. इससे यूजर्स इस स्टिमुलेशन के आदि हो जाते हैं और हमें लगाताक स्मार्टफोन या सोशल मीडिया चेक करने की लत लग जाती है. जब बच्चों को स्मार्टफोन मिलने लगे और वे सोशल मीडिया पर प्रतिदिन सात घंटे से अधिक समय बिताने लगते हैं तो चिंता और अवसाद बढ़ने लगता है. 

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स्मार्टफ़ोन का स्मार्ट तरीके से इस्तेमाल करें 
डॉ. सुज़ुकी ने पॉडकास्ट में बताया कि कैसे लोग इस लत से बच सकते हैं. उन्होंने बार-बार फोन चेक करने जैसे आदतन व्यवहार को रीसेट करने में मदद के लिए अपने स्मार्टफोन से लंबे समय तक ब्रेक लेकर डिजिटल डिटॉक्स करने की सलाह दी. उन्होंने कहा, इससे आपको अपना समय बिताने के स्वस्थ तरीके मिल सकते हैं. 

एक्सरसाइज से चिंता और अवसाद का स्तर कम हो जाता है. दस मिनट की वॉक आपकी चिंता और अवसाद के स्तर को काफी हद तक कम कर सकती है. वह ब्रीदिंग एक्सरसाइज की भी सलाह देती हैं. इससे रिलेक्सेशन मिलता है. इसके अलावा, वे लोगों को मेडिटेशन करने की भी सलाह देती हैं. साथ ही, लोगों को ह्यूमन कनेक्शन पर फोकस करना चाहिए. लोगों के साथ समय बिताएं, बातचीत करें. खुद को मीनिंगफुल डिस्कशन में इनवॉल्व करें और सोशल मीडिया से ब्रेक लेते रहें.