scorecardresearch

Depression and Suicidal Thoughts in Students: सुसाइड के विचारों में बदल रहा है छात्रों का डिप्रेशन, स्टडी में हुआ खुलासा

हाल ही में, International Journal of Scientific Research and Engineering Development में पब्लिश एक रिसर्च पेपर, 'A Study of Depression and Suicidal Ideation Among College Students' में सामने आया है कि डिप्रेशन से घिरे छात्रों को आत्महत्या करने के विचार ज्यादा आते हैं.

Depression in Students Depression in Students
हाइलाइट्स
  • दिल्ली-NCR के छात्रों पर रिसर्च 

  • विषय का पड़ता है असर 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2022 के बीच भारत में कुल 7,62,648 आत्महत्याएं हुईं, जिनमें से छात्र आत्महत्याएं 59,239 यानी 7.76% थीं. यह स्थिति हर किसी के लिए चिंताजनक है. क्योंकि जिन बच्चों को हम देश का भविष्य कहते हैं वे खुद अपनी जान दे रहे हैं. छात्रों की आंखों में भविष्य के सुंदर सपने और मन में इन सपनों को पूरा करने की लगन होनी चाहिए तो फिर ऐसा क्या होता है कि नौबत सुसाइड तक आ जाती है? 

जब भी कोई छात्र आत्महत्या करता है तो अक्सर यही सवाल पूछा जाता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसने इतनी बड़ा कदम उठाया. क्या यह सिर्फ एक क्षण का आक्रोश होता है या फिर समय के साथ हालातों से परेशान होकर मन में बढ़ती हुई निराशा और अवसाद के चलते बच्चे ये कदम उठाते हैं. सुसाइड की खबरें अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ जाती हैं जिनमें से कुछ को हल करने की कोशिश हाल ही में पब्लिश हुए एक रिसर्च पेपर, 'A Study of Depression and Suicidal Ideation Among College Students' में की गई है.

IGNOU से साइकोलॉजी में मास्टर्स करने वाले शोधार्थी अमित रायकवार ने अपने इस रिसर्च पेपर में बताया है कि कैसे छात्रों में बढ़ता डिप्रेशन उन्हें आत्महत्या के विचारों तक ले जाता है. उनकी इस स्टडी को International Journal of Scientific Research and Engineering Development में पब्लिश किया गया है. 

सम्बंधित ख़बरें

दिल्ली-NCR के छात्रों पर रिसर्च 
इस स्टडी के लिए दिल्ली-NCR के कॉलेजों में पढ़ने वाले 200 छात्रों पर रिसर्च की गई. ये छात्र साइंस और सोशल साइंस स्ट्रीम से हैं. छात्रों में डिप्रेशन के लक्षणों का पता लगाने के लिए Beck Depression Inventory और आत्महत्या के विचारों का परीक्षण करने के लिए Suicidal Ideations Scale का इस्तेमाल किया गया है. आपको बता दें कि सुसाइडल आइडिएशन का मतलब है किसी को आत्महत्या के ख्याल आना. अगर कोई बार-बार आत्महत्या करने के बारे में सोचता है तो इस स्थिति को मनोविज्ञान की भाषा में Suicidal Ideation कहा जाता है. 

हालांकि, हैरत की बात यह है कि जो लोग अवसाद से घिरे होते हैं उनमें आत्महत्या करने की दर ज्यादा देखी गई है. डिप्रेशन से जूझ रहे बच्चों या लोगों को अगर समय पर कंसल्टेशन या मेडिकल थेरेपी न मिले तो वे इस तरह के भयानक कदम उठा सकते हैं. और छात्रों में डिप्रेशन होने के बहुत से कारण हो सकते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा कॉमन है पढ़ाई का स्ट्रेस. क्योंकि आज भी भारतीय समाज में बच्चों की काबिलियत को पढ़ाई में उनके स्तर से आंका जाता है. बच्चों के स्कूल-कॉलेज में नंबर कम आने को पैरेंट्स अक्सर अपना अपमान समझने लगते हैं और उन्हें पता ही नहीं चलता कि उन्होंने अपने बच्चों पर कितना प्रेशर बना दिया है कि वे अवसाद का शिकार होने लगे हैं. 

विषय का पड़ता है असर 
इस स्टडी में साइंस से 100 छात्रों और सोशल साइंस के 100 छात्रों ने हिस्सा लिया था और इस स्टडी के रिजल्ट से पता चला कि अलग-अलग स्ट्रीम पढ़ने वाले छात्र अलग-अलग तरह का प्रेशर और स्ट्रेस अनुभव करते हैं. सोशल साइंस और साइंस के छात्रों की अलग-अलग तुलना की जाए तो साइंस स्ट्रीम के बच्चों में डिप्रेशन का लेवल ज्यादा होता है और इसके कई कारण हो सकते हैं जैसे साइंस स्ट्रीम में छात्रों के बीच रैंक लाने की स्पर्धा या प्रतियोगी परीक्षाएं पास करने का प्रेशर या फिर माता-पिता का प्रेशर आदि. एक वजह यह भी हो सकती है कि कॉलेज में पहुंचकर छात्रों के लिए माहौल एकदम बदल जाता है. स्कूल में जिन छात्रों ने कभी बहुत ज्यादा प्रतिस्पर्धा नहीं देखी उनके लिए कॉलेज में कंप्टीशन से डील करना मुश्किल हो जाता है. 

इस स्टडी में यह भी खुलासा हुआ कि जिन छात्रों में डिप्रेशन के लक्षण थे उनमें सुसाइड करने के विचार भी ज्यादा थे. इस स्टडी से समझ में आता है कि अगर छात्रों को स्कूल-कॉलेज में सही समय पर काउंसलिंग मिले तो सुसाइड्स को रोका जा सकता है. क्योंकि बहुत बार आम लोगों को एक-दूसरे की मन की स्थिति का अंदाजा नहीं हो पाता है लेकिन एक एक्सपर्ट आपकी बातों के आधार पर यह अंदाजा लगा सकता है कि आपके मन में कहीं निराशा तो नहीं है.  

कैसे करें छात्रों की मदद 
हर साल बढ़ रही छात्रों की सुसाइड रेट और इस तरह की स्टडीज के रिजल्ट्स से यह जाहिर है कि यह समस्या बढ़ती जा रही है और इसका एक ही समाधान है सही समय पर सही कम्यूनिकेशन. जी हां, आज जहां हमारी जिंदगी फोन, इंटरनेट तक सीमित होती जा रही है ऐसे में बहुत ज्यादा जरूरी है कि इस मुद्दे पर बात की जाए. एक-दूसरे की तरफ मदद का हाथ बढ़ाया जाए ताकि कोई भी अपने मन के डर, निराशा या अवसाद जाहिर करने से कतराए नहीं. बहुत से लोगों के जाने के बाद उनके आसपास के लोगों को पता चलता है कि वे डिप्रेशन का शिकार थे. इसलिए एक-दूसरे से बात करते रहना, हौसला बढ़ाना और मदद करने की बहुत ज्यादा जरूरत है. 

अगर आपसे कोई कहता है कि उनका अपनी जान लेने का मन कर रहा है या फिर उन्हें कुछ दिनों से अच्छा फील नहीं हो रहा है और वे डिप्रेस फील कर रहे हैं तो बात को हंसी में टालने की बजाय उनकी मदद करने की कोशिश करें. अगर किसी के मन में आत्महत्या का ख्याल आता है तो भारत सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 पर संपर्क करें. आप टेलिमानस हेल्पलाइन नंबर 1800914416 पर कॉल कर सकते हैं. यहां आपकी पहचान कभी भी उजागर नहीं की जाएगा और एक्सपर्ट्स आपकी स्थिति से निकलने में मदद करेंगे.