आमतौर पर देखा जाता है कि बढ़ती उम्र के साथ-साथ लोगों के शरीर के जोड़ों में दिक्कत होने लगती है. जोड़ों में दर्द होता है. इसके पीछे दो कारण मुख्य रूप से होते हैं. इसमें शरीर में कैल्शियम और Vitamin D की कमी शामिल है. लेकिन सप्लीमेंट के नाम पर आज हर कोई विटामिन को ले रहा है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या वाकई सभी को सप्लीमेंट लेने की जरूरत है?
यूनाटेड एंडोक्राइन सोसाइटी की नई क्लीनिकल प्रैक्टिस गाइडलाइन कुछ और ही कहती हैं. इसके अनुसार 75 वर्ष से नीचे के स्वस्थ व्यस्कों के लिए डॉक्टरों ने विटामिन डी की डेली डोज़ तय कर रखी है. इससे ज्यादा विटामिन डी लेने का उन्हें कोई फायदा नहीं होता है. गाइडलाइन में 75 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिए तय की गई डोज़ से ज्यादा मात्रा में विटामिन डी को लेना 'गैरजरूरी' बताया है.
डॉक्टरों ने कितनी तय की है डेली डोज़?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक 1-70 साल के बीच के लोगों के लिए विटामिन डी की डेली डोज़ 600IU है. वहीं 70 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए यह डोज़ 800IU प्रतिदिन रखी गई है.
क्या कहना है इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिन (IOM)?
IOM का कहना है कि गाइडलाइन कुछ विशेष लोगों के लिए विटामिन डी की मात्रा को डेली डोज़ से ऊपर रखती है. इसमें बच्चे, गर्भवती महिलाएं और 75 वर्ष से ऊपर के व्यस्क शामिल हैं. विटामिन डी को कई बीमारियों के साथ जोड़ा जाता है. लेकिन इसको सप्लीमेंट के तौर पर लेते हुए बीमारी के खतरे को कम करना हमेशा से डिबेट का विषय बना रहा है.
क्या सामने आया क्लीनिकल ट्रायल में?
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के डॉक्टर ने कहा कि विटामिन डी का सप्लीमेंट केवल कुछ ही लोगों को फायदा पहुंचा सकता है. जिसमें बच्चे, गर्भवती महिलाएं और 75 वर्ष से ऊपर के व्यस्क आते हैं. इसके अलावा किसी और को हम सप्लीमेंट लेने की सलाह नहीं देंगे.
स्टडी में सामने आई प्रमुख बातें
-75 वर्ष से नीचे के स्वस्थ व्यस्कों को सप्लीमेंट की जरूरत नहीं. वे IOM की तय की गई डोज़ ही लें.
-18 वर्ष से कम के बच्चों को ज्यादा डोज़ देकर रेस्पेरिट्री इंफेक्शन से बचाया जा सकता है.
-75 वर्ष से ज्यादा के लोगों को हाई डोज़ देकर मृत्यु दर के खतरे को कम किया जा सकता है.
-गर्भवती महिलाओं को हाई डोज़ देकर 'स्वस्थ जच्चा-बच्चा' का पालन किया दा सकता है.