कैंसर के इलाज (Cancer Treatment) के बाद भी ये कई मरीजों में दोबारा से फैल सकता है. इस पर अध्ययन के बाद कैंसर रिसर्च और ट्रीटमेंट में एक और सफलता हासिल हुई है. टाटा मेमोरियल सेंटर (TMC) ने कैंसर की पुनरावृत्ति को रोकने का एक किफायती तरीका खोज निकाला है. वर्तमान में, कैंसर के इलाज पर लाखों-करोड़ों खर्च किए जाते हैं. अब टीएमसी के डॉक्टरों ने दावा किया है कि कैंसर के इलाज के लिए एक टैबलेट सिर्फ 100 रुपये में उपलब्ध हो सकती है.
क्या था खतरा?
दरअसल डॉक्टरों ने एक अध्ययन में पाया कि मरने वाली कैंसर कोशिकाएं (dead cells) कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के बाद कोशिका-मुक्त क्रोमैटिन कण (cell-free chromatin particles) छोड़ती हैं जो स्वस्थ कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में बदल सकते हैं. ऐसी दवाओं/एजेंटों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है जो कोशिका-मुक्त क्रोमैटिन कणों, जो कैंसर के ट्रीटमेंट के दौरान पैदा होती हैं, उन्हें निष्क्रिय और नष्ट कर देते हैं.
अध्ययन के अनुसार, मरने वाली कैंसर कोशिकाएं कोशिका-मुक्त क्रोमैटिन कण (cfChPs, या क्रोमोसोम के टुकड़े) छोड़ती हैं जो स्वस्थ कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं में बदल सकती हैं. कुछ सीएफ़सीएचपी हेल्दी क्रोमोसोम्स के साथ जुड़ सकते हैं और नए ट्यूमर का कारण बन सकते हैं.
मंजूरी का है इंतजार
सेल-मुक्त क्रोमैटिन कणों में जेनेटिक मैटेरियल और संबंधित प्रोटीन होते हैं. शारीरिक तरल पदार्थों में उनकी उपस्थिति कैंसर, ऑटोइम्यून विकारों और सूजन स्थितियों सहित विभिन्न बीमारियों के लिए बायोमार्कर के रूप में काम कर सकती है जो रोग निदान और उपचार के ट्रीटमेंट में मदद करती है. इस समस्या का हल खोजने के लिए डॉक्टरों ने चूहों को रेसवेरेट्रॉल और कॉपर के संयुक्त प्रो-ऑक्सिडेंट टैबलेट दी. यह टैबलेट क्रोमोजोन को बेअसर करने में असरदार दिखी.
करीब एक दशक से टाटा के डॉक्टर्स इस पर शोध कर रहे हैं. इस टैबलेट को फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया से मंजूरी का इंतजार है. मंजूरी मिलने के बाद यह जून-जुलाई से बाजार में उपलब्ध होगी. यह टैबलेट कैंसर के इलाज को बेहतर बनाने में काफी हद तक मदद करेगा.