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रूसी वैज्ञानिकों का दावा, स्कूल थियेटर से टीनेजर्स में बढ़ती है पढ़ने और सीखने की क्षमता

रूस के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में साबित किया है कि रंगमंच के जरिए टीनेजर्स की पढ़ने और सीखने की क्षमता में बढ़ोतरी की जा सकती है. वैज्ञानिकों ने मॉस्को के स्कूलों में 13 से 14 साल के बच्चों पर इसका परीक्षण किया. रिसर्चर्स के मुताबिक इसके नतीजे सकारात्मक आए.

Moscow State University of Psychology & Education (Photo/ruseducation.in) Moscow State University of Psychology & Education (Photo/ruseducation.in)
हाइलाइट्स
  • थियेटर बदल सकते हैं बच्चों की दुनिया- वैज्ञानिक

  • टीनेजर्स में बढ़ती है सीखने की क्षमता- वैज्ञानिक

वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही अनोखा रिसर्च किया है. वैज्ञानिकों के शोध के मुताबिक थियेटर पढ़ाने का एक प्रभावी तरीका हो सकता है. मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ साइकोलॉजी एंड एजुकेशन के रिसर्चर्स  ने साबित किया है कि स्कूल थियेटर शिक्षण और सीखने का एक प्रभावी साधन हो सकता है. इतना ही नहीं, शोध से ये भी पता चला है कि टीनएजर्स स्टूडेंट्स में अनुशासन को बनाए रखने में इससे मदद मिलती है.

स्कूल थियेटर की यूनिक तकनीक-
MSUPE के विशेषज्ञों के मुताबिक आमतौर पर स्कूल थियेटर का इस्तेमाल टीचर्स के नियमों के मुताबिक चलता है और स्टूडेंट्स के भागीदारी सिर्फ अभिनय तक सीमित होती है. हालांकि मल्टीमीडिया थियेटर प्रोजेक्ट के तहत एक स्कूल थियेटर के लिए एक यूनिक तकनीक विकिसत की गई है.

स्कूल थियेटर टीनेजर्स के लिए खास-
इस थियेटर की विशेषता ये है कि इसमें टीनेजर्स को कई तरह की गतिविधियों में शामिल किया जाता है. जिसमें कॉन्सेप्ट से लेकर प्ले को परफॉर्म करने तक में टीनेजर्स की भूमिका होती है. इसके तहत स्कूली बच्चे स्क्रिप्ट पर काम करते हैं और इसे कास्ट करते हैं. बच्चे सीन तैयार करते हैं. साउंड, लाइट डिजाइन और स्पेशल इफेक्ट के लिए जिम्मेदार होते हैं. MSUPE के एक रिसर्चर ओल्गा रूबतसोवा ने कहा कि हमारे थियेटर में टीनेजर्स सिर्फ एक्टर नहीं होते हैं. उनको एक्टिंग का तरीका बताया जाता है. वे स्क्रिप्ट लेखक, एक्टर, डायरेक्टर और लाइटिंग स्पेशलिस्ट हैं. हम लोग सिर्फ एक सहयोगी हैं.

मास्को के स्कूल में किया गया प्रयोग-
रिसर्च के एक हिस्से में स्पेशलिस्ट ने नाटकीय गतिविधियों का एक अनूठा कार्यक्रम चलाया. इसमें 45 मिनट के 30 लेशन दिए गए. इस रिसर्च को मास्को के एक माध्यमिक विद्यालय में आयोजित किया गया. इसमें 13 से 14 साल के टीनेजर्स को शामिल किया गया. रिसर्चर्स के मुताबिक इसमें ये साबित हुआ कि रोल-प्लेइंग प्रयोग के सिद्धांत पर आयोजित स्कूल शियेटर टीनेजर्स की शिक्षा के लिए बेहतर है. इस रिसर्च के नतीजे साइकोलॉजिकल साइंस एंड एजुकेशन जर्नल में प्रकाशित हुए थे.
रिसर्चर रूबतसोवा का कहना है कि विभिन्न स्कूलों में इस परियोजना में हिस्सा लेने वाले स्टूडेंट्स में बदलाव आया है. उनमें भागीदारी करने और सीखने की ललक दिखाई दी. उनकी सामूहिक गतिविधियों में सकारात्मक बदलाव हुए. उनकी बदमाशी पर काबू पाया गया.
वैज्ञानिकों के मुताबिक एमएसयूपीआई परियोजना का प्रैक्टिकल महत्व दो पहलुओं से जुड़ा है. इस तकनीक से टीनेजर्स की अर्जेंट समस्याओं को हल करने में मदद मिलती है और उनमें रोल निभाने के लिए प्रेरित करती है. इसके अलावा बुनियादी शिक्षा को देखने का अलग नजरिया देता है. 

थियेटर बदल सकते हैं बच्चों की दुनिया-
रिसर्चर्स का ने बताया कि आज के रूसी शिक्षा में रंगमंच को सीमित कर दिया गया है. इसे सिर्फ रूढ़िवादी तरीका समझा जाता है. इसलिए रिसर्चर्स विभिन्न प्रकार की परियोजना गतिविधियों के मुताबिक नाट्य गतिविधियों के आयोजन का सुझाव देते हैं. उनका मानना है कि इससे नए अवसर खुल सकते हैं.

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