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Russia-Ukraine War के दौरान भी देश नहीं लौटी यह डॉक्टर, यूक्रेन में रहकर लोगों की मदद कर रही है भारत की बेटी

पुणे से ताल्लुक रखने वाली वैभवी नज़रे पिछले सात सालों से यूक्रेन में रहकर अपनी मेडिकल की पढ़ाई कर रही हैं और वहीं पर अस्पताल में बतौर इंटर्न काम करती हैं. युद्ध के दौरान भी वह अपने वतन नहीं लौटीं बल्कि घायलों की देखभाल करती रहीं.

Vaibhavi Nazare (Photo: YouTube/Vijaysai Nazare)) Vaibhavi Nazare (Photo: YouTube/Vijaysai Nazare))

रूस-यूक्रेन के युद्ध को चलते हुए लंबा समय बीत चुका है. युद्ध के कारण बहुत से भारतीय छात्र और अन्य नागरिक यूक्रेन से अपने वतन वापस लौट आए. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी भारतीय बेटी के बारे में जो आज भी यूक्रेन में रहकर काम कर रही है. यह कहानी है पुणे से ताल्लुक रखने वाली वैभवी नज़रे की जो यूक्रेन में डॉक्टर हैं. 

हाल ही में, वैभवी नज़रे को कीव के सेंट्रल सिटी अस्पताल के आपातकालीन विभाग में बुलाया गया. यहां उन्होंने विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा का इलाज किया जिन्हें कुत्ते ने काट लिया था. वैभवी के बारे में जानने के बाद दिमित्रा ने उनके बारे में Instagram पर स्टोरी शेयर की और उनकी सराहना की. 

कौन हैं वैभवी नज़रे 
रिपोर्ट्स के मुताबिक, वैभवी 2017 में यूक्रेन गईं थीं, तब वह 19 साल की थीं. उन्होंने छह साल में जनरल मेडिसिन में अपनी ग्रेजुएशन की, और अब अपने सातवें साल में वह जनरल सर्जरी में पोस्ट-ग्रेजुएशन कर रही हैं. युद्ध और महामारी के दौरान वह कीव के एक अस्पताल में बतौर इंटर्न काम कर रही थीं. युद्ध के समय जब ज्यादातर भारतीय लौट आए तब वैभवी ने वहीं रुककर लोगों की मदद करने की ठानी. 

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यह पहली बार था जब उनके काम की किसी ने इस तरह पब्लिकली उनके काम की तारीफ की. उन्होंने बहुत अच्छा लगा. वैभवी यूक्रेन के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल में एक इंटर्न  के रूप में, घायलों की मदद करती हैं. वह सामान्य नागरिकों के साथ-साथ सेना के जवानों की भई घायल होने पर देखभाल करती हैं और कई बार 24 घंटे ड्यूटी पर रहती हैं. युद्ध शुरू होने पर उन्होंने यूनिवर्सिटी के अंतिम वर्ष में वॉलंटियरिंग शुरू की थी. 

अपनी ड्यूटी को दी प्राथमिकता 
वैभवी ने एक इंटरव्यू में बताया कि जब युद्ध शुरू हुआ तो उनके कई सहकर्मी और सीनियर लोग जा रहे थे, ऐसे में उन्हें एहसास हुआ कि अस्पताल में लोग कम पड़ जायेंगे. यह वह समय है जब लोगों को एक-दूसरे का ख्याल रखने और जो महत्वपूर्ण है उसे प्राथमिकता देने की जरूरत है. उन्होंने सोचा कि अगर यह उनका देश होता, तो हर कोई ऐसा ही करता. अगर कोई कठिन समय का सामना कर रहा है, तो मदद करना हमारा कर्तव्य है. 

जब आक्रमण हुआ, तो वैभवी के डरे हुए माता-पिता ने उसे सुरक्षित भारत वापस लाने के तरीके खोजने की कोशिश की. दूतावास बंद कर दिया गया था, सड़कें अवरुद्ध कर दी गई थीं, पुल तोड़ दिए गए थे, और वे वैभवी की परेशानियों से भी डरे हुए थे. लेकिन जब खुद वैभवी ने उनसे कहा कि वह वापिस नहीं आना चाहती हैं तो उनके माता-पिता और परेशान हो गए. लेकिन बाद में उन्होंने वैभवी की बात को समझा और उनका मनोबल बढ़ाते रहे. 

वैभवी को मिल रहा है सबका साथ 
वैभवी के माता-पिता हर दिन उनसे स्थिति की अपडेट ले रहे हैं और सभी की सुरक्षा के लिए प्रार्थना कर रहे हैं. इंटरनेट ने उन्हें संपर्क में रखा है. वैभवी अब अपने सहकर्मियों, सीनियर डॉक्टरों और अपने दोस्तों की मदद से स्थानीय भाषा भी सीख रही हैं. उनका कहना है कि यहां सभी से उन्हें जो सपोर्ट मिल रहा है, वह उन्हें हर दिन प्रेरित करता है. उनके वर्कप्लेस पर हर कोई पूरे दिल से उन्हें स्वीकार कर चुका है. वह यूक्रेन में भारतीय डॉक्टर नहीं बल्कि सिर्फ एक डॉक्टर हैं. 

साल 2017 में यूक्रेन जाने के बाद, वह 2019 में केवल एक बार अपने परिवार से मिलीं. उनके पिता का कहना है कि उनकी बेटी लंबे समय से यूक्रेन में सर्विसेज दे रही है लेकिन जो सराहना और हौसला अफज़ाई उसे मिलनी चाहिए वह नहीं मिली है. वैभवी के माता-पिता की इच्छा है कि उन्हें सरकार से एक प्रशंसा पत्र मिले, जो देश की अन्य लड़कियों को अपने करियर में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा.