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Inspirational: माहवारी से जुड़े मिथकों को तोड़ लड़कियों की जिंदगी आसान बना रही है यह टीचर, स्कूल में शुरू किया Sanitary Pad Bank

उत्तर प्रदेश के बरेली में एक सरकारी स्कूल की शिक्षक ने ग्रामीण महिलाओं और लड़कियों को माहवारी के बारे में जागरूक करने का अभियान शुरू किया है. उन्होंने स्कूल में सैनिटरी नैपकिन के लिए बैंक भी शुरू किया है.

Rakhi Gangwar, Padwoman (Photo: Twitter) Rakhi Gangwar, Padwoman (Photo: Twitter)

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि शिक्षक समाज के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. शिक्षक ही हैं जो समाज के भविष्य को संवारते हैं और बहुत बार तो कई शिक्षक स्कूली शिक्षा से परे जाकर व्यक्तिगत तौर पर बच्चों की जिंदगी सुधारने का काम करते हैं. आज ऐसी ही एक शिक्षक के बारे में हम आपको बता रहे हैं.  

यह कहानी है 35 वर्षीया राखी गंगवार की जो स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के साथ सामाजिक मुद्दों को भी संबोधित कर रही हैं. उन्होंने लड़कियों को माहवारी के बारे में जागरूक करने का अभियान छेड़ा है और स्कूल में 'पैड बैंक' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य हजारों महिलाओं, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं की मदद करना है. उत्तर प्रदेश में बरेली के बढ़पुरा ब्लॉक स्थित बौरिया गांव के छोटे से प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने वाली राखी व्यक्तिगत तौर पर इस 'मिशन' को आगे बढ़ा रही है.  

बांटती हैं मुफ्त में सैनिटरी पैड 
राखी का लक्ष्य सिर्फ मासिक धर्म स्वच्छता के बारे में जागरूकता फैलाना ही नहीं है बल्कि उन्होंने 'पैड बैंक' की अपनी पहल के माध्यम से महिलाओं और किशोरियों को मुफ्त सैनिटरी पैड उपलब्ध कराने का प्रयास किया है. शुरुआत में, राखी ने बिना किसी बाहरी आर्थिक मदद के अपनी जेब से सैनिटरी नैपकिन खरीदकर इस पहल को फंड किया. हालांकि, जैसे ही उनके अभियान ने जोर पकड़ा, गोरखपुर स्थित सैनिटरी पैड निर्माण फर्म 'नाइन' ने उनका साथ दिया. 

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राखी ने Mother's Day पर अपने अभियान की शुरुआत की, जिसका लक्ष्य अपने छात्रों, विशेषकर गांव की लड़कियों को मासिक धर्म स्वच्छता के महत्व के बारे में शिक्षित करना था. उनका इरादा था कि गांव में पीरियड्स के दैरान लड़कियां और महिलाएं कपड़े की बजाय पैड्स का इस्तेमाल करें. कपड़े के इस्तेमाल से होने वाली बीमारियों से उन्हें बचाने और महिलाओं के बीच Menstrual Health को बढ़ावा देने के लिए, उन्होंने यह पहल की. 

सबसे पहले गांव में किया सर्वे 
राखी की पहल एक सर्वेक्षण से शुरू हुई जिसमें उनके छात्रों की मांओं और अन्य ग्रामीण महिलाओं को शामिल किया गया. प्रश्नों की प्रतिक्रियाओं में मासिक धर्म को लेकर शर्म की व्यापक भावना को उजागर किया गया. राखी को अपनी शादी से पहले बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था. खासकर उनके पिता के निधन के बाद उनके परिवार के पैसे कमाने की जिम्मेदारी भी शामिल थी. इन चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने बीबीए, एमबीए, एमए और बीटीसी में डिग्री हासिल की. इसके बाद, उन्होंने प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका के रूप में सरकारी नौकरी हासिल की, जिससे उनके परिवार को स्थिरता मिली.

राखी का अभियान लगभग 50 ग्रामीण महिलाओं की एक मीटिंग के साथ शुरू हुआ, जहां उन्होंने माहवारी में लापरवाही के कारण होने वाली बीमारियों के बारे में बताया. उन्होंने अपने स्कूल में एक सैनिटरी 'पैड बैंक' की स्थापना की, जिससे गांव की सभी महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड मिलने लगा. आज तक, राखी बरेली और उसके आसपास के 55 गांवों में 20,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं तक पहुंच चुकी है. मासिक धर्म स्वच्छता पर महिलाओं और लड़कियों को शिक्षित करने की उनकी प्रतिबद्धता दृढ़ बनी हुई है.