चीन में हुई एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि आर्टिफिशियल लाइट (Outdoor artificial light) के संपर्क में रहने से स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है. ये रिसर्च चीन के 28,000 से ज्यादा व्यस्कों पर की गई. शोधकर्ताओं ने कहा कि रात में विजिबिलिटी बढ़ाने के लिए आर्टिफिशियल लाइट का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है. इसकी वजह से दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत आबादी प्रकाश-प्रदूषित वातावरण में जी रही है.
6 साल तक की गई रिसर्च
चीन के झेजियांग यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं की टीम ने सैटेलाइट इमेज का इस्तेमाल करके आर्टिफिशियल लाइट संपर्क में आने वाले वयस्कों का आकलन किया. उन्होंने कहा कि स्ट्रोक के मामलों की पुष्टि अस्पताल के मेडिकल रिकॉर्ड और मृत्यु प्रमाण पत्र से की गई है. 6 साल तक की गई रिसर्च के निष्कर्ष से पता चला कि 1,278 लोगों में सेरेब्रोवास्कुलर बीमारी विकसित हुई, जिसमें 777 इस्केमिक (क्लॉटिंग) स्ट्रोक के मामले और 133 हेमोरेजिक (ब्लीडिंग) स्ट्रोक के मामले शामिल थे.
लाइट की वजह से सेरेब्रोवास्कुलर रोग का खतरा
रात में बाहरी रोशनी के संपर्क में रहने वाले लोगों में सेरेब्रोवास्कुलर रोग विकसित होने का जोखिम 43 प्रतिशत बढ़ गया, ये उन लोगों की तुलना में ज्यादा था जो कम रोशनी में रहते थे. अध्ययन से पता चलता है कि रात में आर्टिफिशियल रोशनी सेरेब्रोवास्कुलर बीमारी के लिए जोखिम कारक हो सकती है.
आर्टिफिशियल लाइट का कम करें इस्तेमाल
शोधकर्ताओं ने शहरी इलाकों में रहने वाले लोगों को इसके संभावित हानिकारक प्रभाव से खुद को बचाने के लिए लाइट का कम इस्तेमाल करने पर जोर दिया है. फ्लोरोसेंट, एलईडी के इस्तेमाल से बढ़ाई गई आर्टिफिशियल लाइट के लगातार संपर्क से नींद को बढ़ावा देने वाले हार्मोन मेलाटोनिन का उत्पादन करने की क्षमता कम हो सकती है, इससे शरीर में मौजूद क्लॉक बाधित हो सकती है और नींद खराब हो सकती है.