हमारी दुनिया भले ही डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रही है लेकिन जरूरत से ज्यादा डिजिटल होना हमारी दिमागी सेहत पर अब भारी पड़ने लगा है. आजकल हम मोबाइल (Mobile) और लैपटॉप (Laptop) पर घंटों चिपके रहते हैं.
जागते, खाते-पीते, उठते-बैठते हर समय अपनी आंखों को मोबाइल फोन पर ही टिकाए रहते हैं. ऐसा करने से हम एक गंभीर बीमारी के शिकार हो रहे हैं. जी हां, इस बीमारी का नाम डिजिटल डिमेंशिया (Digital Dementia) है. यह एक भूलने की बीमारी है. आइए डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण और इससे बचाव के उपाय के बारे में जानते हैं.
क्या है डिजिटल डिमेंशिया
डिजिटल डिमेंशिया शब्द का सबसे पहले इस्तेमाल जर्मन न्यूरोसाइंटिस्ट और मनोचिकित्सक मैनफ्रेड स्पिट्जर ने साल 2012 में किया था. कभी कोई जरूरी काम, तो कभी कोई फिल्म या गेम खेलने की वजह से हम घंटों मोबाइल और लैपटॉप से चिपके रहते हैं. प्रेमी-प्रेमिका घंटों मोबाइल पर बातें करते रहते हैं. इससे हमारे फिजिकल और मेंटल दोनों ही हेल्थ पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है.
घंटों मोबाइल फोन से जुड़े रहने से दिमाग के काम करने की क्षमता कम होने लगती है. याददाश्त, एकाग्रता और सीखने की क्षमता कम होने लगती है. हम भुलक्कड़ हो जाते हैं. इसे ही डॉक्टर डिजिटल डिमेंशिया कहते हैं. एक तरह से कहें तो स्मार्टफोन ने हमें दिमागी तौर पर स्मार्ट नहीं बल्कि खोखला करना शुरू कर दिया है.
बच्चों के लिए तो ये डिजिटल डिमेंशिया बेहद खतरनाक
डिजिटल डिमेंशिया मतलब डिजिटल दुनिया में इस कदर खो जाना कि हमारी सोचने-समझने की शक्ति धीरे-धीरे खत्म होने लगती है. बच्चों के लिए तो ये डिजिटल डिमेंशिया बेहद खतरनाक है क्योंकि उनकी याद करने की क्षमता कम होने लगती है. इसके साथ ही एकाग्रता में कमी आने लगती है. फिर उन्हें पढ़ाई बोर सी लगती है. ऐसे में उनकी फिजिकल एक्टिविटी भी जीरो हो जाती है.
...तो हो सकते हैं वैस्कुलर डिमेंशिया के शिकार
इंग्लैंड में साल 2023 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक दिन में चार घंटे से ज्यादा मोबाइल के इस्तेमाल से वैस्कुलर डिमेंशिया और अल्जाइमर का जोखिम बढ़ सकता है. वैस्कुलर डिमेंशिया में दिमाग में पहुचंने वाले खून की सप्लाई तेजी से प्रभावित होती है.जिसका हमारे ब्रेन पर सीधा असर होता है. यह मस्तिष्क कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है और अंततः उन्हें नष्ट कर देता है. आज हाल ये है कि हम जाने-अनजाने मोबाइल की वजह से डिमेंशिया और अल्जाइमर की ओर बढ़ रहे हैं और बीमार होते हमारे दिमाग की खबर तक हमें नहीं है.
डिजिटल डिमेंशिया के लक्षण
1. कनफ्यूजन.
2. छोटी-छोटी बातें भी याद नहीं रहना.
3. एकाग्रता में कमी.
4. हमेशा थकान महसूस होना.
5. ब्रेन फॉग.
6. मोबाइल और लैपटॉप पर कुछ घंटे बिताने के बाद कभी-कभी कुछ भी याद नहीं रहना.
7. डिजिटल डिमेंशिया के ये लक्षण आजकल 20 से 40 साल की उम्र वालों में ज्यादा दिख रहे हैं.
डिजिटल डिमेंशिया से बचने के उपाय
1. मोबाइल का करें सीमित इस्तेमाल: डिजिटल डिमेंशिया से बचने के लिए सबसे जरूरी है कि आप मोबाइल फोन का इस्तेमाल सीमित कर दें. इसके लिए आप मोबाइल के उपयोग के लिए एक टाइम सेट कर लें. मोबाइल के लगातार इस्तेमाल से बचने का एक तरीका नोटिफिकेशन की संख्या कम करना है. यदि कोई नोटिफिकेशन जरूरी नहीं है तो उसे बंद कर दें.
2. ऑफलाइन एक्टिविटीज ज्यादा करें:डिजिटल डिमेंशिया से बचने के लिए ऑनलाइन की जगह ऑफलाइन एक्टिविटीज ज्यादा करें. समय गुजारने के लिए मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल न करें. इसके बजाय किताबें पढ़ें. नई-नई चीजें सीखें और पहेलियां बुझाएं. इससे दिमाग के काम करने की क्षमता बढ़ती है.
3. रोजाना योग या एक्सरसाइज करें: हर दिन एक निश्चित समय पर एक्सरसाइज करें. योग, ध्यान और वॉक जैसी एक्टिविटीज बॉडी एंड माइंड दोनों को फिट रखती हैं.
4. मोबाइल को कुछ देर के लिए छोड़ दें: मोबाइल फोन या लैपटॉप से कुछ देर के लिए ब्रेक लेकर अपने दोस्तों, फैमिली के साथ समय बिताएं. इससे ब्रेन शांत और रिलैक्स होता है.
5. अच्छी डाइट लें: अपने दिमाग को एक्टिव रखने के लिए के लिए विटामिन और मिनरल्स से भरपूर डाइट लें.
6. अच्छी नींद लें: तेज दिमाग के लिए अच्छी नींद जरूरी है. आप 7 से 8 घंटा रोज नींद जरूर लें. इससे दिमाग रिलैक्स रहता है और उसके काम करने की क्षमता भी बढ़ती है.