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नया खुलासा: प्लास्टिक पर सवार होकर पानी में ज्यादा दिन तक जिंदा रहते हैं वायरस, खतरा भी दोगुना

एक रिसर्च में ये खुलासा हुआ है कि बीमारी पैदा करने वाले वायरस पानी के अंदर प्लास्टिक पर सवार होकर ज्यादा दिनों तक जिंदा रहते हैं. ये वैसे वायरस हैं जिनसे फ्लू और रोटावायरस जैसी बीमारियां फैलती हैं

Viruses survive in fresh water by ‘hitchhiking’ Viruses survive in fresh water by ‘hitchhiking’
हाइलाइट्स
  • वायरस माइक्रोप्लास्टिक और मजबूत होते हैं

  • माइक्रोप्लास्टिक उन्हें पानी में तीन दिनों या इससे ज्यादा समय तक जीवित रहने की ताकत देता है

शोधकर्ताओं ने एक रिसर्च में पाया है कि खतरनाक वायरस पानी में प्लास्टिक पर सवार होकर तीन दिनों तक जिंदा रहते हैं और इस दौरान ये संक्रामक भी रह सकते हैं. ये सभी वायरस एंटरिक वायरस हैं जिनकी वजह से दस्त और पेट खराब होता है. रिसर्च में ये वायरस 5 मिमी से कम लंबे छोटे कणों से जुड़कर पानी में जीवित पाए गए, और ये वायरस इस दौरान संक्रामक थे. ये रिसर्च स्टर्लिंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया है. शोधकर्ताओं ने कहा कि इस तरह के वायरस ज्यादा खतरनाक हो सकते हैं. 

स्टर्लिंग विश्वविद्यालय में इस रिसर्च के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर रिचर्ड क्विलियम ने कहा कि "हमने पाया कि वायरस माइक्रोप्लास्टिक से जुड़ सकते हैं और यह उन्हें पानी में तीन दिनों या इससे ज्यादा समय तक जीवित रहने की ताकत देता है. शोधकर्ता प्रोफेसर रिचर्ड ने कहा कि पर्यावरण में वायरस के बरताव को लेकर ये ऐसा पहला शोध है. 

शोधकर्ता प्रोफेसर रिचर्ड क्विलियम ने कहा कि "हमें इस बात का शक था कि पर्यावरण में प्लास्टिक पर 'हिचहाइकिंग' से वायरस अच्छी तरह जीवित रह सकते हैं, लेकिन हमें ये नहीं पता था कि 'हिचहाइकिंग' के बाद वो संक्रामक भी होते हैं. ये हमारे लिए हैरान करने वाला है. बता दें कि इस रिसर्च के बाद वायरस के संक्रामक होने की पुष्ठी हो गई है. इस शोध के बाद ये साफ हो गया कि माइक्रोप्लास्टिक्स पर्यावरण में बीमारी को फैलाने में सक्षम होते हैं. 

प्रोफेसर रिचर्ड क्विलियम ने कहा कि  "अगर सीवेज कचरे को साफ करने वाली मशीने पूरी तरह से सफाई कर देती है तब भी छोड़े गए माइक्रोप्लासिट के जरिए पर्यावरण में बीमारियों के फैलाने की क्षमता रखते हैं. 

रिसर्च में ये पाया गया कि प्लास्टिक के कण इतने छोटे होते हैं कि तैराक इन्हें निगल सकते हैं. कभी-कभी वे समुद्र तट पर ये प्लास्टिक के कण दिखाई देते हैं. इनका आकार मसूर के दाने जैसा होता है और यह दिखने में काफी चमकिले होते हैं जिन्हें नर्डल्स कहा जाता है. ऐसे कणों को समुद्र तट खेल रहे  बच्चे अक्सर उठा कर अपने मुंह में डाल लेते हैं. जिससे सेहत को खतरा हो सकता है. 

रिसर्च में शोधकर्ताओं ने दो तरह के वायरस का परीक्षण किया. एक जिनके चारों तरफ एक लिफाफा पाया गया. यह एक तरह का लिपिड कोटेड प्रोटीन था. इसमें लिपटे वायरस फ्लू फैलाते हैं. और दूसरा एंटरिक वायरस जिसमें रोटावायरस और नोरोवायरस आते हैं. रिसर्च में ये भी पाया गया कि कोटिंग वाले वायरस जल्दी मर जाते हैं लेकिन माइक्रोप्लास्टिक में लिपटे वायरस ज्यादा समय तक जिंदा रहते हैं और ये ज्यादा खतरनाक भी होते हैं.