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हर वक्त नेगेटिव न्यूज और कंटेंट देखने से भी आपकी मेंटल हेल्थ हो सकती है खराब... जानें क्या है doom scrolling... इससे कैसे बच सकते हैं? 

डूमस्क्रॉलिंग शब्द उस आदत को दिखाता है, जिसमें लोग डरावने, दुखी करने वाले, या चौंकाने वाले ऑनलाइन कंटेंट को बार-बार देखते हैं. समय के साथ, इस तरह के कंटेंट को बार-बार देखने से व्यक्ति का दृष्टिकोण प्रभावित हो सकता है, और उन्हें दुनिया पहले से ज्यादा निराशाजनक लगने लगती है.

aDoomScrolling (Photo/Unsplash) aDoomScrolling (Photo/Unsplash)
हाइलाइट्स
  • नेगेटिविटी एक साइकिल है 

  • डूमस्क्रॉलिंग लगती है लत जैसी

आज के दौर में, स्क्रीन हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी हैं. सोशल मीडिया, न्यूज या वीडियो की कभी न खत्म होने वाली फीड्स में हम अपना पूरा दिन गवां देते हैं. ये एक आम बात हो गई है. लेकिन "डूमस्क्रॉलिंग" की आदत आपको काफी प्रभावित कर सकती है. लंबे समय तक नेगेटिव या दुखी करने वाला कंटेंट देखना डूमस्क्रॉलिंग कहलाता है. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) के नए शोध में यह खुलासा हुआ है कि इसका सबसे ज्यादा असर हमारी मेंटल हेल्थ पर पड़ता है. यहां तक कि ये डिप्रेशन को भी बढ़ा सकता है.

ऑनलाइन आदतें मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर रही हैं?  
यह स्टडी नेचर ह्यूमन बिहेवियर नामक पत्रिका में पब्लिश हुई है. इसमें यह बताया गया है कि कैसे हमारी ऑनलाइन आदतें मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं को बढ़ा सकती हैं. शोधकर्ताओं ने 1,000 लोगों पर साइकेलोगिकाल टेस्ट किए और उन्हें 30 मिनट तक इंटरनेट ब्राउज करने के लिए कहा. इसके बाद उनके ब्राउजर हिस्ट्री को चेक किया गया. 

शोध में पाया गया कि जिन लोगों की मेंटल हेल्थ स्वास्थ्य खराब थी, वे ऑनलाइन ज्यादा नेगेटिव कंटेंट देखते थे. लेकिन यह शोध यहीं खत्म नहीं हुआ. यह जानने के लिए कि क्या लोग खराब मेंटल हेल्थ की वजह से नेगेटिव कंटेंट देखते हैं, या ऐसा कंटेंट देखने से उनका मूड और खराब हो जाता है, शोधकर्ताओं ने प्रतिभागियों को अलग-अलग प्रकार की वेबसाइटें दिखाईं.  

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शोध में दोनों ही कारणों का प्रमाण मिला. खराब मेंटल हेल्थ वाले लोग नेगटिव कंटेंट की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं, और ऐसा कंटेंट देखने से उनका मूड और खराब हो जाता है, जिससे एक नेगेटिव साइकिल शुरू हो जाती है. 

डूमस्क्रॉलिंग है मेंटल हेल्थ के लिए एक खतरा
डूमस्क्रॉलिंग शब्द हाल के सालों में काफी प्रचलित हुआ है, खासतौर पर COVID-19 महामारी और आर्थिक मंदी जैसे वैश्विक संकटों के दौरान. यह शब्द उस आदत को दिखाता है, जिसमें लोग डरावने, दुखी करने वाले, या चौंकाने वाले ऑनलाइन कंटेंट को बार-बार देखते हैं.

कई बार यह आदत जानकारी लेने या मनोरंजन के लिए शुरू होती है. लेकिन जैसे ही कंटेंट नेगेटिव डायरेक्शन में जाता है. यह व्यक्ति की चिंता और उदासी को बढ़ा सकता है.

समय के साथ, इस तरह के कंटेंट को बार-बार देखने से व्यक्ति का दृष्टिकोण प्रभावित हो सकता है, और उन्हें दुनिया पहले से ज्यादा निराशाजनक लगने लगती है.

नेगेटिविटी एक साइकिल है 
UCL के अध्ययन में सबसे चिंताजनक बात यह सामने आई कि डूमस्क्रॉलिंग एक साइकिल बन जाती है. धीरे धीरे यह एक फीडबैक लूप बन जाता है, जो काफी चिंताजनक है. आज के डिजिटल युग में एल्गोरिदम यूजर की आदत और पसंद को पढ़ लेता है और फिर उसे वैसा ही कंटेंट परोसता है. अगर कोई व्यक्ति नेगेटिव कंटेंट पर क्लिक करता है या दुखी करने वाली पोस्ट पर रिएक्शन देता है, तो उसे और ज्यादा ऐसा ही कंटेंट दिखाई देता है. ये एक चक्र की तरह होता है. 

डूमस्क्रॉलिंग क्यों लगती है लत जैसी?
डूमस्क्रॉलिंग की लत इसलिए लगती है क्योंकि यह हमारे ब्रेन के के रिवार्ड सिस्टम को हाईजैक कर लेता है. हर नई जानकारी, भले ही नेगेटिव हो, डोपामिन का एक छोटा सा हिट देती है. ये हमारी खुशी से जुड़ा एक न्यूरोट्रांसमीटर होता है. हालांकि इसको रोकना जरूरी है. डूमस्क्रॉलिंग को लेकर जागरूकता बढ़ानी बहुत जरूरी है. अलग-अलग उपायों से आप इससे बच सकते हैं: 

1. स्क्रीन टाइम लिमिट करें: खास प्लेटफार्म पर बिताए समय को लिमिट करने के लिए ऐप्स या फोन सेटिंग्स का उपयोग करें. 

2. अपने फीड को व्यवस्थित करें: केवल उन्हीं अकाउंट्स या विषयों को फॉलो करें जो पॉजिटिव या बैलेंस्ड कंटेंट देते हैं. 

3. ऑफलाइन एक्टिविटी अपनाएं: स्क्रीन टाइम को पढ़ाई, एक्सरसाइज, या किसी हॉबी जैसे ऑफलाइन काम से बदलें।

4. सोच-समझकर खपत करें: खुद से पूछें कि आप क्यों स्क्रॉल कर रहे हैं. क्या आप जानकारी, कनेक्शन, या ध्यान भटकाने के लिए ऐसा कर रहे हैं?

5. टेक्नोलॉजी का सही उपयोग करें: ऐसे ऐप्स का उपयोग करें जो आपकी ऑनलाइन आदतों पर नजर रखते हैं और आपके व्यवहार की जानकारी देते हैं.

स्मार्टफोन और इंटरनेट उपयोगी डिवाइस है, लेकिन इनका प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग कैसे कर रहे हैं. डूमस्क्रॉलिंग एक खतरे से कम नहीं है, जिससे निपटने के लिए जागरूक होना काफी जरूरी है.