आज की डिजिटल दुनिया में इंटरनेट पर जानकारी खोजना आम बात हो गई है. चाहे किसी बीमारी का लक्षण हो या फिर स्वास्थ्य से जुड़ी कोई जानकारी लोग तुरंत ऑनलाइन सर्च करना शुरू कर देते हैं. लेकिन कभी-कभी यह आदत एक मेंटल समस्या का कारण बन जाती है, जिसे साइबरकॉन्ड्रिया (Cyberchondria) कहा जाता है. आइए जानते क्या होता है साइबरकॉन्ड्रिया, इसके लक्षण और इसे कैसे ठीक किया जा सकता है.
क्या होता है साइबरकॉन्ड्रिया ?
साइबरकॉन्ड्रिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें व्यक्ति बार-बार इंटरनेट पर अपनी हेल्थ समस्याओं के बारे में जानकारी ढूंढता है और अक्सर उसे लगता है कि वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है. इसे अभी के समय में हाइपोकॉन्ड्रिया (Hypochondria) भी कहा जा सकता है, जो एक प्रकार की मानसिक स्थिति (Mental Condition) है, जहां व्यक्ति को बिना किसी ठोस सबूत के अपनी सेहत को लेकर बेवजह डर और चिंता होती है.
साइबरकॉन्ड्रिया के लक्षण
साइबरकॉन्ड्रिया के कई लक्षण होते हैं, जो मानसिक और व्यवहार से जुड़ी परेशानियों को दिखाते हैं. जैसे,
1. बार-बार इंटरनेट सर्च करना-
व्यक्ति बार-बार अपनी सेहत से जुड़ी जानकारी गूगल या अन्य प्लेटफॉर्म्स पर सर्च करता रहता है. जैसे अगर उसे सिरदर्द हो रहा है, तो उसे लगने लगेगा कि यह ब्रेन ट्यूमर का लक्षण हो सकता है.
2. बिना कारण चिंता करना-
छोटी-छोटी हेल्थ समस्याओं पर भी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसे कोई बड़ी बीमारी हो सकती है.
3. डॉक्टरों की सलाह पर भरोसा न करना-
डॉक्टर की रिपोर्ट या सलाह के बाद भी व्यक्ति इंटरनेट पर सर्च करना बंद नहीं करता और डॉक्टर की बातों पर उसे विश्वास नहीं होता है.
4. नींद न आना और मानसिक तनाव-
बार-बार बीमारी के बारे में सोचने और जानकारी ढूंढने से व्यक्ति तनाव में आ जाता है और नींद की समस्या का शिकार हो सकता है.
5. रोजमर्रा के जीवन में दखल-
साइबरकॉन्ड्रिया के कारण व्यक्ति का ध्यान अपने काम, पढ़ाई या परिवार से हटकर केवल अपनी सेहत पर ही रह जाता है. जिसके कारण उसके रोजमर्रा के जीवन में बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
6. मामूली लक्षणों को भी बढ़ा-चढ़ाकर देखना-
मामूली सर्दी-खांसी, सिरदर्द या थकान को व्यक्ति गंभीर बीमारी का संकेत मान लेता है.
किन कारणों से होता है साइबरकॉन्ड्रिया ?
1. इंटरनेट की पहुंच-
आज हर किसी के पास स्मार्टफोन है, जिससे स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारी ढूंढना बहुत आसान हो गया है. हालांकि, यह जानकारी अक्सर अधूरी या गलत भी हो सकती है.
2. मानसिक रूप से कमजोर होना-
अगर व्यक्ति पहले से ही मानसिक रूप से कमजोर है या किसी ट्रॉमा से गुजरा है, तो साइबरकॉन्ड्रिया होने की संभावना बढ़ जाती है.
3. स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा सतर्कता-
आजकल लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क हो गए हैं. यह सतर्कता अगर हद से ज्यादा बढ़ जाए, तो यह समस्या बन सकती है.
4. सोशल मीडिया और ऑनलाइन एडवर्टाइजमेंट-
सोशल मीडिया पर बार-बार हेल्थ संबंधी पोस्ट, वीडियो या एडवर्टाइजमेंट देखने से भी व्यक्ति में डर और चिंता बढ़ सकती है.
साइबरकॉन्ड्रिया के नुकसान-
1. मानसिक स्वास्थ्य पर असर-
बार-बार चिंता करने से व्यक्ति डिप्रेशन और एंग्जायटी का शिकार हो सकता है.
2. पैसों का नुकसान-
मामूली बीमारी को बढ़ा-चढ़ा के तनाव लेने और बार-बार जांच करवाने डॉक्टर के पास जाने से पैसे का भी काफी नुकसान हो सकता है.
3. रिश्तों में खटास-
परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने की बजाय व्यक्ति केवल अपनी बीमारी के बारे में सोचता रहता है, और अपने परिवार को बिल्कुल समय नहीं देता जिसके कारण परिवार और दोस्तों से आसानी से रिश्ते में खटास आ सकता है.
4. जीवन का मजा खत्म होना-
व्यक्ति हमेशा बेचैन रहने के कारण अपनी रोजमर्रा की जिंदगी का भी आनंद नहीं ले पाता है.
साइबरकॉन्ड्रिया का क्या है इलाज ?
साइबरकॉन्ड्रिया का इलाज करना मुमकिन है. इसके लिए व्यक्ति को अपनी सोच और आदतों में बदलाव लाना बहुत जरूरी है. जैसे,
1. इंटरनेट का सही इस्तेमाल करें-
हेल्थ से जुड़ी जानकारी के लिए केवल भरोसेमंद वेबसाइट पर जाएं. हर जानकारी को सही मानने की बजाय डॉक्टर से सलाह लेकर ही काम करें.
2. मेंटल हेल्थ पर ध्यान दे-
योग और ध्यान (मेडिटेशन) से तनाव को कम किया जा सकता है. हमेशा अपनी सोच को पॉजिटिव रखें और बीमारी के बारे में बार-बार सोचने से बचें.
3. डॉक्टर पर भरोसा करें-
नियमित जांच कराएं और डॉक्टर की सलाह को माने और इंटरनेट पर मिली जानकारी को डॉक्टर की सलाह से ज्यादा अहमियत कभी न दें.
4. थेरेपी लें-
साइबरकॉन्ड्रिया के इलाज के लिए कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy) फायदेमंद हो सकती है. इसमें व्यक्ति की सोचने और व्यवहार करने की आदतों में बदलाव लाया जाता है.
5. शौक और एक्टिविटी में व्यस्त रहें-
अपना समय अपने किसी पसंदीदा काम में बिताए जिससे आपका दिमाग किसी भी फालतू चीजों के बारे में सोचने से बचे या फिर अपने दोस्तों से मिलने में लगाएं.
6. साइकेट्रिस्ट से मिलें-
अगर समस्या गंभीर हो, तो किसी साइकेट्रिस्ट से जरूर मिलकर सलाह लें.