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Encephalitis Disease: गुजरात में वायरल एन्सेफलाइटिस के कई मामले, क्या हैं इस बीमारी के लक्षण, कैसे करता है संक्रमित?

वायरल एन्सेफलाइटिस एक वायरस के कारण होने वाली दिमाग की सूजन है. वायरल एन्सेफलाइटिस तेज बुखार का कारण बन सकता है और कई मामलों में दिमाग को प्रभावित करता है.

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हाइलाइट्स
  • वायरल इन्सेफेलाइटिस को दिमागी बुखार भी कहते हैं.

  • बच्चों को ये बीमारी ज्यादा होती है

गुजरात में वायरल एन्सेफलाइटिस के कारण 56 लोगों की मौत हो गई है. वायरल एन्सेफलाइटिस तेज बुखार का कारण बन सकता है और कई मामलों में दिमाग को प्रभावित करता है. मानसून के मौसम में भारत के कई हिस्सों में ये बीमारी फैलती है. एन्सेफलाइटिस अधिकतर 15 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है.

स्थानीय स्वास्थ्य अधिकारी एन्सेफलाइटिस के मामलों की निगरानी कर रहे हैं और जिन क्षेत्रों में मामले सामने आए हैं, वहां निगरानी बढ़ा दी गई है. वायरल एन्सेफलाइटिस के मामले सबसे पहले पिछले महीने गुजरात के दो उत्तरी जिलों में सामने आए थे. हालांकि, अब तक दो दर्जन से अधिक जिलों में अधिक मामले दर्ज किए जा चुके हैं. इनमें से कुछ चांदीपुरा वायरस के मामले भी हैं.

दिमागी बुखार है एन्सेफलाइटिस
वायरल एन्सेफलाइटिस एक वायरस के कारण होने वाली दिमाग की सूजन है. इसे दिमागी बुखार भी कहा जाता है. इसके कारण ब्रेन में सूजन आ जाती है जोकि कई तरह के वायरस के कारण हो सकती है. कई बार बॉडी के खुद के इम्यून सिस्टम के ब्रेन टिश्यूज पर अटैक करने के कारण भी ब्रेन में सूजन आ सकती है. इस बीमारी के वायरस मच्छर या किसी कीड़े मकोड़े के काटने के कारण बॉडी में फैल सकते हैं.

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क्या है इस बीमारी के लक्षण
तेज बुखार, सिरदर्द, तेज रोशनी से तकलीफ, गर्दन और कमर अकड़ना, उल्टी, सिर घूमना और गंभीर मामलों में पैरालिसिस और कोमा जैसी स्थिति भी हो सकती है जिसकी वजह से मौत भी हो सकती है. 

कैसे फैलता है ये वायरस

  • किसी संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से हवा के जरिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है.

  • संक्रमित कीड़े (जैसे मच्छर या टिक्स) के जरिए ये वायरस सीधे संक्रमित करता है.

  • दूषित भोजन या पानी से भी ये वायरस फैल सकता है.

  • वायरल एन्सेफलाइटिस के कुछ मामले निष्क्रिय वायरल संक्रमण (जैसे हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस) के फिर से सक्रिय होने के कारण होते हैं.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है. ज्यादातर लोगों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है ताकि लक्षण के आधार पर इसका ट्रीटमेंट किया जा सके. इससे बचाव के लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं. एक साल से कम उम्र के बच्चों और 55 साल से ज्यादा के बुजुर्गों को इसका खतरा ज्यादा रहता है. इसलिए कीड़े-मकोड़े वाली जगह पर जाने से बचें. लंबी बाजू के कपड़े पहनें. हेल्दी डाइट लें.