सूर्यास्त आमतौर पर एक ऐसी चीज है जिसे लोग देखना पसंद करते हैं. दोपहर की चिलचिलाती धूप के बाद हम रोशनी और रोमांटिक शाम का आनंद लेते हैं. यह दिन का वो हिस्सा है जिसका लोग आमतौर पर आनंद लेते हैं. लेकिन कुछ लोगों के लिए यह उतनी खुशी की बात नहीं है. जो लोग अल्जाइमर रोग से पीड़ित हैं, उन्हें दोपहर के बाद या शाम के समय अपने शारीरिक और भावनात्मक रूप में कुछ बदलाव देखने को मिल सकते हैं. इसे सनडाउनिंग सिंड्रोम (Sundowing Syndrome)कहा जाता है.
यह आमतौर पर मनोभ्रंश (dementia) से पीड़ित लोगों को प्रभावित करता है. मेयो क्लिनिक के अनुसार, "सनडाउनिंग" शब्द दोपहर के समय होने वाली और रात तक चलने वाली भ्रम की स्थिति को के बारे में बताता है. सूर्यास्त के बाद इन लोगों के व्यवहार में कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं जैसे भ्रम, चिंता,आक्रामकता या डायरेक्शन न ज्ञात कर पाना आदि. इन्हें सूर्यास्त के बाद भटकाव आदि महसूस होने लगता है जिसको लेकर ये लोग चिंतित महसूस करते हैं.
सनडाउनिंग सिंड्रोम क्या है?
अल्जाइमर और डिमेंशिया सनडाउनिंग सिंड्रोम से संबंधित एक तरीके का न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है. हालांकि यह एक स्वीकार्य घटना है, लेकिन इसे किताबों में चिकित्सकीय रूप से नहीं लिखा गया है. इस सिंड्रोम के बारे में अभी भी कई शोध चल रहे हैं ताकि लक्षणों को ठीक से समझा जा सके और वास्तव में यह किस कारण से होता है. कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, इसका संबंध मरीज की सर्कैडियन रिदम (circadian rhythm) से हो सकता है. सर्कैडियन रिदम एक तरीके का शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक परिवर्तन हैं जिसे शरीर के 24 घंटे के चक्र के बाद गिना जाता हैं. सूर्यास्त का जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. अब तक, जीवनशैली में कुछ बदलाव और दवाएं इस स्थिति को मैनेज करने में मदद कर सकती हैं.
क्या हैं इसके लक्षण
- बेचैनी
- चिड़चिड़ाहट होना
- घबराहट
- गुमराह
जोखिम कारक जो सूर्यास्त को ट्रिगर कर सकते हैं
- थकान
- किसी अपरिचित जगह पर दिन बिताना
- कम रोशनी
- बढ़ी हुई छाया
- बॉडी का इंटरनल क्लॉक बदल जाना
डिमेंशिया क्या है?
Dementia शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें 'de' का मतलब without और 'mentia'का मतलब mind से है. अधिकतर लोग डिमेंशिया को भूलने की बीमारी के नाम से जानते हैं. हालांकि याददाश्त की समस्या इसका एकमात्र लक्षण नहीं है. हम आपको बता दें की डिमेंशिया के अनेक गंभीर और चिंताजनक लक्षण होते हैं, जिसका असर डिमेंशिया से पीड़ित लोगों के जीवन के हर पहलू पर होता है. दैनिक कार्यों में भी व्यक्ति को दिक्कतें होती हैं और ये दिक्कतें उम्र के साथ बढ़ती जाती हैं. ये बीमारी प्राइमरी या सेंकडरी रूप से मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं, जैसे अल्जाइमर रोग या स्ट्रोक.
अल्जाइमर क्या है?
अल्जाइमर रोग एक मस्तिष्क विकार है जो धीरे-धीरे मेमोरी और सोचने के कौशल को नष्ट कर देता है और अंततः, सबसे सरल कार्यों को करने की क्षमता को नष्ट कर देता है. अल्जाइमर रोग में मस्तिष्क की कोशिकाएं खुद ही बनती हैं और खत्म होने लगती हैं जिससे याददाश्त जाने लगती है और मानसिक कार्यों में गिरावट आती है. यह डिमेंशिया का सबसे आम कारण होता है.
अल्जाइमर एसोसिएशन के अनुसार अल्जाइमर डिमेंशिया का सबसे आम कारण है. डिमेंशिया के 60-80% मामले अल्जाइमर रोग के कारण होते हैं. इन दोनों बीमारियों में सबसे बड़ा अंतर ये है कि डिमेंशिया एक सिंड्रोम है और अल्जाइमर एक डिजीज है. सिड्रोंम जिस भी बीमारी से संबंधित होता है, वो उस बीमारी के लक्षणों का समूह होता है. आप इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं कि डिमेंशिया के अंतर्गत अल्जाइमर डिजीज आता है. डिमेंशिया के अंतर्गत आने वाली बीमारियों में अल्जाइमर सबसे आम बीमारी है. अल्जाइमर में डिमेंशिया की कई बीमारियों के लक्षण भी नजर आ सकते हैं.