दुनियाभर में सांस से जुड़ी परेशानियां बढ़ती जा रही हैं. इसके सबसे ज्यादा मामले बच्चों में सामने आ रहे हैं. अब एक नई बीमारी को लेकर बात चल रही है. इसे व्हाइट लंग सिंड्रोम कहा जा रहा है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक कोविड-19 के बाद से सांस से जुड़ी अलग-अलग और खतरनाक बीमारियां सामने आ रही हैं. हालांकि, मेडिकल एक्सपर्ट्स का दावा है कि स्थिति उतनी गंभीर नहीं है जितनी लग रही है.
चीन में बढ़ रहे इसके मामले
उत्तरी चीन में लगातार सांस से जुड़ी कई बीमारियों के मामले सामने आए हैं. हेल्थ अथॉरिटी ने इसे पैथोजन्स, वायरस और बैक्टीरिया, विशेष रूप से माइकोप्लाज्मा निमोनिया की उपस्थिति से जोड़ा है. इस बीच, ओहियो में, बच्चों में निमोनिया के मामले भी बढ़ रहे हैं. ये स्थिति यूरोप में भी ऐसी ही है.
वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से है लिंक
नई दिल्ली के पीएसआरआई अस्पताल में पल्मोनरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप मेडिसिन के चेयरमैन डॉ. जीसी खिलनानी इस बात पर जोर देते हैं कि "व्हाइट लंग सिंड्रोम" शब्द कोई नई या चिंताजनक घटना नहीं है. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए कहा कि व्हाइट लंग सिंड्रोम का लिंक वायरल या बैक्टीरियल इन्फेक्शन से है. इसमें ऐसी ही लक्षण नजर आ रहे हैं.
क्या होता है इस बीमारी में?
दरअसल , व्हाइट लंग सिंड्रोम शब्द फेफड़ों के एक्स-रे या सीटी स्कैन से जुड़ा हुआ है. इसमें फेफड़ों में सूजन या फ्लूइड के जमा होने से सफेद धब्बे जैसा दिखने लगता है. एक्स-रे में दिख रहे ये सफेद धब्बे बैक्टीरिया या वायरल संक्रमण के संकेत होते हैं. यही कारण है कि इसे व्हाइट लंग सिंड्रोम कहा जाता है.
ओहियो के वॉरेन काउंटी में, तीन से 14 साल की उम्र के बच्चों में निमोनिया के 145 मामले सामने आने के बाद ये शब्द "व्हाइट लंग सिंड्रोम" सामने आया है. हालांकि वैज्ञानिक रूप से ये नाम सटीक नहीं है.
क्या हैं इसके संकेत और लक्षण
इसके लक्षणों की बात करें, तो प्रभावित मरीजों में कॉमन रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन के लक्षण दिखाई देते हैं. इसमें खांसी, बुखार, नाक बहना, कफ बनना, सांस लेने में कठिनाई और थकान शामिल हैं. ट्रीटमेंट के रूप में आम तौर पर नेबुलाइजेशन और दवा दी जा सकती है. हालांकि, सबसे पहले इसके लिए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए.