World Leprosy Day: जानिए 30 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है विश्व कुष्ठ दिवस, इसको लेकर क्या फैले हैं भ्रम
आज भारत में वर्ल्ड लेप्रोसी डे मनाया जा रहा है. इस दिन लोगों में कुष्ठ रोग को लेकर लोगों में फैली भ्रांतियों को दूर करने और इसके प्रति जागरूक करने के लिए मनाया जाता है. आइये जानते हैं कि ये इसे भारत में 30 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है और इसको लेकर फैले मिथक क्या है.
World Leprosy Day - नई दिल्ली,
- 30 जनवरी 2023,
- (Updated 30 जनवरी 2023, 1:59 PM IST)
हाइलाइट्स
कुष्ठ रोग को हेन्संस रोग के बारे में भी जाना जाता है
गले लगना, हाथ मिलाना करने से भी इस बीमारी के शिकार नहीं हो सकते हैं
दुनियाभर में हर साल 29 जनवरी को विश्व कुष्ठ दिवस (World Leprosy Day) मनाया जाता है, जबकि वर्ल्ड लेप्रोसी डे को भारत में महात्मा गांधी के पुण्यतिथि 30 जनवरी को मनाया जाता है. इसे हर साल कुष्ठ रोग के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए मनाया जाता है. इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 1954 में राउल फोलेरो ने की थी. उन्होंने इस दिन को गांधी जी को समर्पित किया था. इस जनवरी के आखिरी रविवार (Sunday) को मनाया जाता है. दरअसल महात्मा गांधी कुष्ठ रोगियों के प्रति दया और स्नेह का भाव रखते थे. जिसे ही ध्यान में रखते हुए वर्ल्ड लेप्रोसी डे को भारत में 30 जनवरी को मनाया जाता है.
क्या है कुष्ठ रोग
कुष्ठ रोग को हेन्संस रोग के बारे में भी जाना जाता है. यह बीमारी मायकोबैक्टीरियम लैप्री नामक बैक्टीरिया के कारण होता है. इस बीमारी के होने के चलते स्किन, श्वसन तंत्र, आंखें और तंत्रिकाएं बहुत ज्यादा प्रभावित होती है. इसके साथ ही इस बीमारी के होने पर दिमाग और रीढ़ की हड्डी के बाहर की नसों को प्रभावित होती है. कुष्ठ रोग अनुवांशिक एवं छुआछूत रोग नहीं है. इसका मतलब अगर किसी को ये बीमारी है तो उसके साथ खाना खाने, उठने-बैठने से नहीं फैलता है.
कुष्ठ रोग को लेकर फैले हैं ये भ्रम
- लोगों में ये भ्रांतियां है कि एक बार जिसे ये बीमारी हो जाती है उसका इलाज नहीं किया जा सकता है. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है. इसका इलाज किया जा सकता है. कुष्ठ रोग से ठीक हो चुके लोग सामान्य जीवन जी सकते हैं.
- लोगों में ये भी मिथ फैला हुआ है कि कुष्ठ रोग अत्यधिक संक्रामक बीमारी है. यानी रोगी के छूने भर से ये बीमारी हो सकती है. जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है. ये बीमारी किसी को तभी हो सकती है जब उसके साथ लंबे समय तक संपर्क में रहा जाएं. गले लगना, हाथ मिलाना या संभोग करने से भी इस बीमारी के शिकार नहीं हो सकते हैं. यहां तक की ये बीमारी एक गर्भवती मां अपने उस बच्चे तक को रोगी नहीं बना सकती जिसने अभी तक जन्म भी ना लिया हो.
- लोगों में ऐसी प्रांत हैं कि कुष्ठ रोक कम उम्र में ही हो जाता है. जबकि ऐसा नहीं है ये बीमारी किसी को भी किसी भी उम्र में हो सकती है.
- लोगों को लगता है कि अगर किसी को कुष्ठ रोग हो गया है तो उसे सभी से अलग रखना चाहिए. बल्कि जिन लोगों का इलाज किया जा रहा है वो लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ सामान्य जीवन जी सकते हैं. एंटीबायोटिक्स के साथ इलाज शुरू करने के कुछ दिनों के बाद एक व्यक्ति संक्रमण नहीं होता है.
- लोगों का मानना है कि जिनको कुष्ठ रोग हो जाता है उनकी पैरों और हाथ की उंगलियां काम करनी बंद कर देती है. जबकि किसी को जब कुष्ठ रोग होता है तो उनकी बैक्टीरिया हाथ और पैर की अंगुलियों को सुन्न कर देती है. जो इलाज शुरू होने के साथ ही ठीक भी हो जाती है.