दुनियाभर में लोग अलग-अलग बीमारियों का सामना कर रहे हैं. लेकिन यूके की एले एडम्स जिस बीमारी से जूझ रही हैं वो काफी अलग है. ये बीमारी है फाउलर सिंड्रोम (FS). फाउलर सिंड्रोम बीमारी लोगों के यूरिनरी ब्लैडर से जुड़ी है. इसमें पानी पीने के बावजूद भी पेशाब करने में परेशानी होती है. एले एडम्स ने इंस्टाग्राम पोस्ट पर अपनी बीमारी के बारे में बताया. एले लिखती हैं, “मुझे कोई परेशानी नहीं थी. एक दिन में उठी और मैंने पाया कि मैं पेशाब नहीं कर पा रही हूं. मैं बहुत चिंतित थी. मैं अपने ब्रेकिंग पॉइंट पर थी क्योंकि पेशाब करने जैसा छोटा काम मैं नहीं कर पा रही थी.”
हॉस्पिटल में आई ये बात सामने
एले अपने पोस्ट में बताती हैं कि वे लंदन के सेंट थॉमस अस्पताल में इमरजेंसी रूम में गई, और जांच के बाद, पता चला कि उनके ब्लैडर में एक लीटर पेशाब था, जबकि, आमतौर पर यूरिनरी ब्लैडर में महिलाओं में 500 मिलीलीटर पेशाब और पुरुषों में 700 मिलीलीटर पेशाब रोका जा सकता है. पेशाब करने में मदद करने के लिए, डॉक्टरों ने एले एडम्स को एक इमरजेंसी कैथेटर दिया, ये एक तरह की ट्यूब होती है जो पेशाब निकालने के लिए ब्लैडर में डाली जाती है.
अपने अनुभव को साझा करते हुए, एले ने इंस्टाग्राम पर लिखा: "मैं एक हफ्ते बाद मदद के लिए बेताब एक वॉक-इन यूरोलॉजी क्लिनिक में गई, मैं अभी तक भी पेशाब नहीं कर पा रही थी. मुझे सेल्फ कैथेटराइज करना सिखाया गया और मुझे इसके साथ रहना सीखने को कहा गया. उस दिन एक डॉक्टर ने मुझे बताया कि मैं बस चिंतित थी इसलिए यह परेशानी हो रही है. ये कुछ योग और नॉर्मल रहकर ठीक हो सकती है.
फाउलर सिंड्रोम क्या है?
एले एडम्स के फाउलर सिंड्रोम (एफएस) को ठीक करने में ढाई साल लग गए. फाउलर सिंड्रोम एक दुर्लभ बीमारी है जो ज्यादातर महिलाओं को होती है. इसमें महिलाओं को अपने यूरिनरी ब्लैडर को खाली करने में परेशानी झेलनी पड़ती है. हालांकि, इसको लेकर अभी बहुत रिसर्च नहीं हुई है. एले कहती हैं, "मैंने दवा, फिजियो और एक्यूपंक्चर सब किया. ये सफर काफी मुश्किल रहा. लेकिन इस दौरान भी मैंने अपने टेस्ट में केवल 20% सुधार देखा लेकिन चूंकि मेरे लिए कोई दूसरा ऑप्शन नहीं बचा था, हमने स्थायी बैटरी डालने का निर्णय लिया.”
फाउलर सिंड्रोम क्या है?
फाउलर सिंड्रोम एक पेशाब संबंधी दुर्लभ बीमारी है जो मुख्य रूप से युवा महिलाओं को प्रभावित करती है और इसमें पेशाब करने या यूरिनरी ब्लैडर को ठीक से खाली करने में मुश्किल आती है. इसके लक्षणों में यूरिनरी रिटेंशन, बार-बार पेशाब करने की आवश्यकता और पेट के निचले हिस्से में बेचैनी या दर्द शामिल हो सकते हैं. हालांकि, इसके कारणों के बारे में अभी तक भी साफ नहीं हो पाया है. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें हार्मोन, जेनेटिक डिसऑर्डर या नर्व डिस्फंक्शन बड़ा कारण हो सकते हैं.
कैसे किया जा सकता है इसको ठीक?
फाउलर सिंड्रोम को ठीक करने में कई प्रकार के टेस्ट शामिल हैं. इसमें यूरोडायनामिक स्टडी, इलेक्ट्रोमोग्राफी और सिस्टोस्कोपी शामिल हैं. यूरोडायनामिक स्टडी में ब्लैडर की जांच की जाती है कि वह कैसे काम कर रहा है. जबकि इलेक्ट्रोमोग्राफी में पेल्विक फ्लोर की जांच की जाती है. सिस्टोस्कोपी में यूरेथ्रा और ब्लैडर में की किसी भी तरह की परेशानी या रुकावटों की जांच की जाती है, जिसमें कैमरे के साथ एक पतली ट्यूब को यूरेथ्रा में डाला जाता है.
हालांकि, फाउलर सिंड्रोम का ट्रीटमेंट उसकी स्थिति पर निर्भर करता है. हल्के मामलों में, सेल्फ-कैथीटेराइजेशन और ब्लैडर टेस्ट काफी होता है. जबकि अल्फा-ब्लॉकर्स या एंटीकोलिनर्जिक्स जैसी दवाएं भी दी जा सकती हैं. जबकि गंभीर मामलों में सर्जरी में स्कार टिश्यू को हटाना या ब्लैडर पेसमेकर लगाना शामिल हो सकता है.