scorecardresearch

पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में एडीआर की ज्यादा संभावना, रिसर्च में हुआ वजह का खुलासा

बीमारियों का इलाज हम कैसे कर सकते हैं. इसके जानने के लिए ज्यादातर रिसर्च पुरुष सेल्स और नर जानवरों पर किया गया है. इससे जो दवाएं बनती हैं, उसका इस्तेमाल होने वाली दवाओं को महिलाएं भी इस्तेमाल करती है. लेकिन महिलाओं को बीमारियों का अनुभव अलग तरह से होता है. रिसर्च में सामने आया है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं 50 से 75 फीसदी ज्यादा प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं (एडीआर) का अनुभव करती है.

पुरुषों के मुकाबले महिलाएं 50 से 75 फीसदी ज्यादा एडीआर का अनुभव करती हैं (फाइल) पुरुषों के मुकाबले महिलाएं 50 से 75 फीसदी ज्यादा एडीआर का अनुभव करती हैं (फाइल)
हाइलाइट्स
  • पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में एडीआर की ज्यादा संभावना

  • चूहों में 300 लक्षण पाए गए

वैज्ञानिकों के रिसर्च में खुलासा हुआ है कि महिलाओं में एडीआर का अनुभव होने की ज्यादा संभावना है. पिछली बार इसकी मात्रा को लेकर रिसर्च किया गया था. जिसमें पाया गया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एडीआर का अनुभव 50 से 75 फीसदी ज्यादा होने की आशंका रहती है. एडीआर यानी एडवर्स ड्रग रिएक्शन का मतलब है कि एक दवा प्रति कोई प्रतिक्रिया, जो हानिकारक और अनपेक्षित है. 

महिलाएं ज्यादा एडीआर का अनुभव करती हैं-
महिलाओं में एडीआर का अनुभव ज्यादा क्यों होता है? इसका अब तक पता नहीं लगाया जा सका है. ऐसा माना जाता है कि लिंग से शरीर का वजन अलग होता है. जहां दवा की खुराक में बदलाव के साथ महिलाओं में एडीआर को कम किया जा सकता है. लेकिन चूहों पर एक रिसर्च ने इस मिथक को तोड़ दिया है. रिसर्च में सामने आया है कि पुरुषों और महिलाओं पर दवाओं का असर अलग-अलग होता है. इन लक्षणों में लिंग के मुताबिक अंतर है. जिसकी मदद से एडीआर के असर को कम किया जा सकता है.

महिला और पुरुषों में अंतर-
पिछले रिसर्च में ये साफ हो जा चुका है कि पुरुषों और महिलाओं में सेक्स आधारित जो अंतर हैं, वो शरीर में दवाओं के अवशोषण और वितरण को प्रभाव को दर्शाते हैं. इसलिए सिर्फ शरीर का वजन महिलाओं में एडीआर की व्याख्या के लिए पर्याप्त नहीं है. इसे और समझने के लिए रिसर्चर्स ने विकासवादी जीव विज्ञान में इस्तेमाल होने वाली एक विधि को अपनाया. जिसे एलोमेट्री कहते हैं. जिसके जरिए प्री-क्लीनिकल गुणों जैसे वसा द्रव्यमान, ग्लूकोज, एलडीएल कोलेस्ट्रॉल और शरीर के आकार के बीच संबंध की जांच किया जाता है. इस विधि से निकले निष्कर्ष को नेचर कन्युनिकेशंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया.

रिसर्च से सामने आए कई तथ्य-
इस रिसर्च की सबसे प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. लौरा विल्सन ने कहा कि हमारे रिसर्च में लक्षणों मे कई ऐसे लिंग आधारित अंतर दिखाई दिए. जिसे सिर्फ बॉडी के वजन से समझना नहीं जा सकता है. जैसे आयरन लेवल और बॉडी टेंपरेचर, संग्रहित वसा और हृदय गति की परिवर्तनशीलता. नए रिसर्च से बायोमेडिकल रिसर्च में जेंडर पूर्वाग्रहों को उजागर करता है. इतना ही नहीं, बेहतर तरीके से देखभाल के लिए लिंग आधारित डेटा की आवश्यकता पर जोर दिया. डॉ. विल्सन का कहना है कि ज्यादातर ज्यादातर बायोमेडिकल रिसर्च पुरुषों या नर जानवरों पर किए गए हैं. उन्होंने ये भी कहा कि लेकिन हम लोग जानते हैं पुरुष और महिलाओं को बीमारी का अनुभव अलग-अलग होता है.

ज्यादातर रिसर्च पुरुषों पर हुए हैं-
आज भी ज्यादातर दवाओं को पुरुषों के शरीर पर टेस्ट के बाद अप्रूवल मिला है. रिसर्चर्स ने पहले सुझाव दिया था कि महिलाओं को अधिक दवा दी जा सकती है. जिसका नतीजा एडीआर हो सकता है. उन्होंने लिंग आधारित पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए दवा की खुराक में कमी की जा सकती है. आपको बता दें कि फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने पहले ही महिलाओं के लिए कुछ दवाओं की खुराक में कमी की सिफारिश की है. जबकि कुछ एंटी-फंगल और एंटीहाइपर्टेन्सिव दवाएं वजन एडजस्ट होने पर पॉजिटिव नतीजे दिखाती हैं.

चूहों में 300 लक्षण मिले-
इस रिसर्च में दो मिलियन से अधिक डेटा बिंदुओं को विश्लेषण किया गया है. चूहे में 300 से ज्यादा लक्षणों को पाया गया है. डॉ. विल्सन ने कहा कि इससे ये साफ है कि महिलाएं सिरअफ पुरुषों के छोटे संस्करण नहीं हैं. रिसर्च में ये पता चला है कि लक्षण और बॉडी वेट के बीच का संबंध भिन्न होता है. वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर को जनरलाइज नहीं किया जा सकता. 

महिलाओं के लिए खतरनाक दवाओं को वापस भी लिया गया है-
कई दवाओं को वापस ले लिया गया है, क्योंकि वो महिलाओं के लिए खतरनाक थे. कई महिलाओं ने प्रतिकूल प्रतिक्रिया की वजह से दवाओं को बंद करने की जानकारी दी है. पहले महिलाओं को बायोमेडिकल अनुसंधान से बाहर रखा जाता था. लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार हो रहा है. अब पहले के मुकाबले महिलाओं को शोध में ज्यादा शामिल किया जा रहा है. लेकिन नतीजों का लिंग आधारित विश्लेषण बहुत कम होता है. 

ये भी पढ़ें: