एक नए अध्ययन से पता चला है कि डिप्रेशन (Depression) से जूझ रहे लोगों में दिल की बीमारी (heart disease) विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है. इस स्टडी में ये भी कहा गया है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं डिप्रेशन की वजह से ज्यादा दिल की बीमारी का अनुभव करती हैं. इस स्टडी के निष्कर्ष जेएसीसी: एशिया में प्रकाशित किए गए हैं. टोक्यो यूनिवर्सिटी की तरफ से की गई इस रिसर्च के मुताबिक महिलाओं में सीने में दर्द, स्ट्रोक और हार्ट से जुड़ी बीमारियों का खतरा ज्यादा होता है.
महिलाओं को हृदय रोग का खतरा ज्यादा
शोधकर्ताओं ने 2005 और 2022 के बीच जेएमडीसी के डेटा का विश्लेषण करके डिप्रेशन और दिल की बीमारी के बीच संबंधों की जांच की. रिसर्च में शामिल प्रतिभागियों की औसत आयु 44 साल थी, और 4,125,720 में से 2,370,986 प्रतिभागी पुरुष थे. अध्ययन में पाया गया कि डिप्रेशन से जूझ रहे पुरुषों में हृदय रोग का खतरा 39% बढ़ता है जबकि डिप्रेशन से जूझ रही महिलाओं में ये खतरा 64% तक है.
दिल की बीमारी के विकास में डिप्रेशन की भूमिका
हृदय रोग के जोखिम को कम करने के लिए डिप्रेशन को रोकना जरूरी है. रिसर्च के परिणाम पुरुषों और महिलाओं दिल की बीमारी के जोखिम को कम करने के लिए स्क्रीनिंग, रेफरल और इलाज के जरिए डिप्रेशन को कम करने से संबंधित हैं. रिसर्चर्स को आगे दिल की बीमारी के विकास में डिप्रेशन की भूमिका को जानना चाहिए और इसके रोकथाम के लिए जोर देना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार की मानसिक समस्या से जूझ रहा है तो उसे तुरंत इलाज कराना चाहिए.
महिलाएं डिप्रेशन के प्रभावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील
महिलाएं डिप्रेशन के प्रभावों के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो सकती हैं. इसलिए महिलाओं में पुरुषों की तुलना में दिल की बीमारी विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है. इसके अलावा, महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन का अनुभव ज्यादा होता है, और एस्ट्रोजन का कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव कम होने लगता है, जिससे उनमें हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है. सबसे पहले डिप्रेशन हृदय रोग के विकास के लिए एक जोखिम कारक है और ये अध्ययन उस संबंध पर प्रकाश डालता है.
महिलाओं में डिप्रेशन का होता है ज्यादा असर
डिप्रेशन से ग्रस्त लोगों को व्यायाम करने, हेल्दी डाइट लेने या दवाएं लेने में ज्यादा परेशानी हो सकती है. मानसिक बीमारी से ग्रस्त लोगों को अन्य लोगों की तुलना में कम इलाज मिल पाता है. जैसे-जैसे महिलाएं post-menopause में आगे बढ़ती हैं, उनके एस्ट्रोजेन के कार्डियोप्रोटेक्टिव प्रभाव कम होने लगते हैं और डिप्रेशन से तनाव हार्मोन के साथ मिलकर पुरुषों और महिलाओं के बीच असमानता पैदा करते हैं. सामान्य तौर पर पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन होने की संभावना ज्यादा होती है और यह पैटर्न जीवन भर देखा जाता है.