हिन्दू धर्मग्रंथों में नेत्रदान को महादान की संज्ञा दी गई है. हर साल 10 जून को विश्व नेत्रदान दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों में नेत्रदान के प्रति जागरूकता को फैलाना और लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है.
सिर्फ ट्रांसप्लांट टीश्यू ही लिए जाते हैं
नेत्रदान का मतलब है मृत्यु के बाद किसी को आंखों की रोशनी देना. यह एक तरह से आंखों का दान होता है, जिससे मृत्यु के बाद किसी दूसरे नेत्रहीन व्यक्ति को देखने में मदद मिलती है. जैसा लोग मानते हैं कि यह आंखों का ट्रांसप्लांट होता है, लेकिन ऐसा नहीं होता है. यह एक कोर्निया का दान होता है. इसमें पूरी आंख को नहीं निकाला जाता है यानी आंख की बॉल को नहीं निकाला जाता है, इसमें सिर्फ ट्रांसप्लांट टीश्यू ही लिए जाते हैं. यह किसी भी डोनर की मृत्यु के बाद ही होता है.
ये कर सकते हैं नेत्रदान
अधिकतर मामलों में हर कोई नेत्रदान कर सकता है. इसमें ब्लड ग्रुप, आंखों के रंग, आई साइट, साइज, उम्र, लिंग आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता है. डोनर की उम्र, लिंग, ब्लड ग्रुप को कॉर्नियल टीश्यू लेने वाले व्यक्ति से मैच करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है. जिन रोगियों ने मोतियाबिंद, कालापानी या अन्य आंखों का ऑपरेशन करवाया है, वे भी नेत्रदान कर सकते हैं. नजर का चश्मा पहनने वाले, मधुमेह, अस्थमा, उच्च रक्तचाप और अन्य शारीरिक विकारों जैसे सांस फूलना, हृदय रोग, क्षय रोग आदि के रोगी भी नेत्रदान कर सकते हैं.
कौन नहीं कर सकता नेत्रदान
कई सारे गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकते हैं. जैसे एड्स, हैपेटैटिस, पीलिया, ब्लड केन्सर, रेबीज (कुत्ते का काटा), सेप्टीसिमिया, गैंगरीन, ब्रेन टयूमर, आंख के आगे की काली पुतली (कार्निया) की खराबी हो, जहर आदि से मृत्यु हुई हो या इसी प्रकार के दूसरे संक्रामक रोग हों, तो इन्हें नेत्रदान की मनाही होती है.
नेत्रदान करने की प्रक्रिया
1. परिवार वालों को जितना जल्दी हो सके नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी करवानी चाहिए. आंखों को डोनेट के बाद जल्द से जल्द ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है.
2. यदि समय लगता है तो कॉर्निया को कोल्ड स्टोरेज में रखा जाता है जहां से 7 दिनों के अंदर उसका इस्तेमाल कर लिया जाता है.
3. नेत्रदान सरल और आसान प्रक्रिया है, इसमें महज 10 से 15 मिनट का समय लगता है.
4. मृत्यु के बाद नेत्रदान करने के लिए डोनर के परिवार की ओर से आईबैंक में जाकर फॉर्म भरा जाता है.
5. फॉर्म भरने के बाद पंजीकरण किया जाता है, उसके बाद कार्ड भरा जाता है.
6. ये पंजीकरण आप मृत्यु से पहले भी करवा सकते हैं ताकि मृत्यु के बाद आपकी आंखों को दान किया जा सके.
7. डोनर के परिवार वालों के निकटतम आईबैंक में टीम को सूचित करना होता है इसके बाद टीम कॉर्निया निकालने की प्रक्रिया पूरी करती है.
8. मृत्यु के बाद आंखों को निकालने से चेहरे पर कोई निशान नहीं बनता है.
गुप्त रखी जाती है जानकारी
1. कोई भी व्यक्ति आई डोनर तभी हो सकता है, जब उसकी मृत्यु हो गई हो यानी नेत्रदान केवल मृत्यु के बाद ही किया जाता है.
2. नेत्रदान के लिए उम्र की कोई सीमा तय नहीं होती, कोई भी व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है.
3. नेत्रदान करने वाले डोनर और जिस मरीज को आंखें दी जा रही हैं, उन दोनों की जानकारी गुप्त रखी जाती है.
4. मृत्यु के बाद परिवार का कोई भी सदस्य नेत्रदान कर सकता है.
5. नेत्रदान में किसी भी परिवार को न तो भुगतान करना होगा और न ही उन्हें इसके बदले में कोई पैसे मिलेंगे.