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World Heart Day: दिल से जुड़ी बीमारियों की कैसे करें पहचान, कैसे हो सकता है इलाज और बचाव.... डॉक्टर से जानिए A to Z

World Heart Day: दिल की बीमारियों से भारत में हर साल लाखों लोगों की मौत हो रही है लेकिन इनसे जुड़ी जानकारी लोगों के पास न के बराबर है. इन बीमारियों के लक्षण क्या हैं, इनकी पहचान कैसे की जाए और इनसे कैसे बचें? जीएनटीटीवी डॉट कॉम के साथ डॉ टीएस कलेर ने विस्तृत बातचीत में बताया.

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भारत में हर साल मरने वाल लोगों में एक चौथाई से ज्यादा दिल की बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं. हैरानी की बात है कि भारत में दिल की बीमारियां (Cardiovascular Diseases) एक तरह की महामारी बन गई हैं लेकिन लोगों के पास इससे जुड़ी बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. इसके बरक्स, आमजन ने इन बीमारियों से जुड़े कई मिथक पाले हुए हैं जो कई बार उनके लिए नुकसानदायक साबित हो रहे हैं.

हार्ट हेल्द से जुड़ी एक आम ग़लतफ़हमी यह है कि ये बीमारियां सिर्फ बुजुर्गों को या पुरुषों को प्रभावित करती हैं. लेकिन महिलाओं और युवा व्यक्तियों को भी इसका खतरा हो सकता है. एक और मिथक यह है कि दिल की बीमारियों में लाइफस्टाइल का कोई योगदान नहीं होता. कई लोग मानते हैं कि दिल की बीमारियों को रोकने के लिए अकेले दवा लेना ही काफी है. आइए वर्ल्ड हार्ट डे (World Heart Day) पर दिल की बीमारियों से जुड़े ऐसे ही मिथकों को तोड़ते हुए खुद को करते हैं इनसे लड़ने के लिए तैयार. 

क्या हैं दिल की बीमारियों के लक्षण, कैसे करें पहचान?
दिल की बीमारियों से बचने और उन्हें मैनेज करने के लिए सबसे जरूरी है कि शुरुआती लक्षणों और कारकों की पहचान कर उनकी रोकथाम की जाए. बीएलके मैक्स हॉस्पिटल के हार्ट एंड वास्कुलर इंस्टीट्यूट के चेयरमैन और डिपार्टमेंट हेड पद्मभूषण डॉ टीएस कलेर (TS Kler) दिल की बीमारियों से जुड़े आम लक्षणों पर रोशनी डालते हैं. 

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डॉ कलेर कहते हैं, "दिल की बीमारियां आमतौर पर सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ और घबराहट जैसे लक्षणों के साथ आती हैं. यह दर्द बाहों, गर्दन, जबड़े और पीठ तक भी फैल सकता है. कुछ मामलों में उल्टी और पेट में दर्द जैसे लक्षण भी हो सकते हैं. ऐसा खासकर महिलाओं के साथ होता है. साइलेंट हार्ट अटैक के लक्षण नहीं दिखते, वह भी चिंता का एक विषय हो सकता है. इन लक्षणों को नजरंदाज नहीं करना चाहिए. समय पर इलाज से कई परेशानियों को टाला जा सकता है." 

इन बीमारियों के आंकलन पर वह कहते हैं, "लोग अपनी उम्र, हाई ब्लड प्रेशर, कॉलेस्ट्रोल, डायबिटीज, धूम्रपान की आदत, मोटापे और यहां तक कि अपने परिवार में दिल की बीमारियों के इतिहास से भी अपने ऊपर खतरे का आंकलन कर सकते हैं. एक डॉक्टर से समय-समय पर मिलते रहना जरूरी है, जो आपको लिपिड प्रोफाइल, ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग और ग्लुकोज़ लेवल जैसे टेस्ट करवाने के लिए कह सकता है. 'रिस्क स्कोर कैल्कुलेटर' जैसे टूल भी दिल की बीमारियों की पहचान करने में मददगार हो सकते हैं. 

जांच कितनी जरूरी?
इन बीमारियों की जल्दी पहचान जरूरी है ताकि समय पर दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसी घटनाओं को रोका जा सके. डॉ कलेर कहते हैं कि हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज जैसी बीमारियों की जांच से दिल की बीमारियों का पता लगाने में मदद मिल सकती है. एक बार समय रहते इन बीमारियों का पता लगने पर जीवनशैली में बदलाव करके, दवाओं से और कभी-कभी एंजियोप्लास्टी या सर्जरी जैसी प्रक्रियाओं से भी दिल की बीमारियों को मैनेज करने में मदद मिलती है. 

लाइफस्टाइल में कर सकते हैं ये बदलाव 
ऐसी बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए डॉक्टर कलेर लाइफस्टाइल में कुछ बदलाव करने की सलाह देते हैं. डॉ कलेर कहते हैं "अपने दिल का खयाल रखने के लिए आपको सैचुरेडेट फैट (Saturated Fat), ट्रांस फैट (Trans Fat) और सोडियम वाली चीजें कम खानी हैं. इनकी जगह आपको फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और 'लीन प्रोटीन' से भरपूर चीजें खानी हैं." 

वह कहते हैं, "इसके अलावा आपको नियमित तौर पर हल्का या मध्यम वर्कआउट भी करना है. यानी हर हफ्ते कम से कम 150 घंटे. वजन स्वस्थ बनाए रखना, धूम्रपान छोड़ना, शराब का सेवन सीमित करना और स्ट्रेस मैनेजमेंट भी जरूरी है. ये आदतें ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करती हैं. इससे दिल की बीमारियों का खतरा कम हो जाता है." अगर आपका दिल स्वस्थ भी है तो आप इन आदतों को अपनाकर खुद को भविष्य में किसी तरह की बीमारी से बचा सकते हैं. 

परिवार में रहा दिल की बीमारियों का सिलसिला तो क्या करें?
डॉ कलेर बताते हैं कि अगर आपके परिवार में दिल की बीमारियों का इतिहास रहा है तो आपको खास तौर पर सतर्क रहना चाहिए. ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और ग्लूकोज के स्तर की नियमित जांच जरूरी है. जीवनशैली में बदलाव करना जोखिम से बचने के लिए अहम है. इसके अलावा आपको विरासत में मिली परेशानी को मैनेज करने के लिए परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी चाहिए. डॉक्टर के साथ बचाव रणनीतियों पर चर्चा करना भी जरूरी है.