

मां का प्रेम दुनिया में सबसे पवित्र और निस्वार्थ होता है, और इसे 80 साल की दार्शना जैन ने अपने बेटे के लिए साबित कर दिखाया. उन्होंने अपने 59 वर्षीय बेटे राजेश को अपनी किडनी दान कर न सिर्फ उनकी जिंदगी बचाई, बल्कि मातृत्व के सच्चे मतलब को भी एकबार फिर से सबको बता दिया.
यह घटना दिल्ली के बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की है. आमतौर पर इतनी अधिक उम्र में लोग खुद को संभालने में असमर्थ हो जाते हैं, लेकिन दार्शना जैन ने अपने बेटे के जीवन को बचाने के लिए किसी भी जोखिम की परवाह नहीं की.
छह महीने से जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे राजेश
राजेश पिछले छह महीनों से एंड-स्टेज रीनल डिजीज (गंभीर किडनी रोग) से पीड़ित थे. उनका शरीर धीरे-धीरे कमजोर हो रहा था और डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि अब सिर्फ किडनी ट्रांसप्लांट ही उनका जीवन बचा सकता है. हालांकि, समस्या यह थी कि उन्हें उपयुक्त डोनर नहीं मिल रहा था. उनके परिवार में भी कोई ऐसा सदस्य नहीं था जो उनकी किडनी से मैच करता हो.
डॉक्टरों ने बताया कि किडनी ट्रांसप्लांट के लिए युवा और स्वस्थ डोनर की जरूरत होती है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ शरीर की सहनशक्ति कम हो जाती है. लेकिन इसी मुश्किल समय में एक मां का निस्वार्थ प्रेम सामने आया.
मां ने फिर साबित किया अपना त्याग
जब कोई और डोनर नहीं मिला, तो दार्शना जैन ने फैसला किया कि वह अपनी एक किडनी अपने बेटे को दान करेंगी. यह फैसला किसी के लिए भी आसान नहीं था, खासकर उनके लिए जो खुद 80 वर्ष की उम्र पार कर चुकी थीं.
उनका यह फैसला जानकर परिवार और डॉक्टर दोनों ही हैरान थे. सबसे पहले उनकी मेडिकल जांच की गई ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह ऑर्गन डोनेशन के लिए फिट हैं.
जांच में सामने आया कि उनका शरीर पूरी तरह स्वस्थ है और उनकी किडनी ट्रांसप्लांट के लिए उपयुक्त है. यह देखकर डॉक्टर भी हैरान रह गए.
आधुनिक चिकित्सा का करिश्मा
बीएलके-मैक्स सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के यूरोलॉजी और किडनी ट्रांसप्लांट विभाग के सीनियर डायरेक्टर और एचओडी, डॉक्टर एच.एस. भाट्याल के नेतृत्व में मल्टीडिसिप्लिनरी टीम ने इस जटिल सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया. डॉक्टर एच.एस. भाट्याल ने बताया, "यह मामला सिर्फ एक किडनी ट्रांसप्लांट नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि मां का प्रेम किसी भी उम्र में अपने बच्चे के लिए सबसे ऊपर होता है. आमतौर पर इस उम्र के लोगों को ऑर्गन डोनेशन के लिए सही नहीं माना जाता, लेकिन अगर व्यक्ति स्वस्थ हो और सभी मानदंडों को पूरा करता हो, तो उम्र कोई बाधा नहीं बनती."
डॉक्टरों की टीम ने सफलतापूर्वक सर्जरी की और दोनों मरीजों की हालत स्थिर रही. दार्शना जैन को चार दिन बाद अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, जबकि उनके बेटे राजेश को छह दिन बाद डिस्चार्ज कर दिया गया.
दार्शना जैन ने यह साबित कर दिया कि मां का प्यार कभी उम्र का मोहताज नहीं होता. उनका यह बलिदान न केवल उनके बेटे राजेश के लिए एक नया जीवन लेकर आया, बल्कि यह अनगिनत परिवारों को प्रेरणा देगा कि सच्चा प्यार और बलिदान किसी सीमा में नहीं बंधता.