15 सितंबर को 'वर्ल्ड लिम्फ़ोमा डे' मनाया जाता है. ये एक तरह का ब्लड कैंसर है. ब्लड कैंसर के दो सामान्य रूप लिम्फोमा और ल्यूकेमिया हैं. लिंफोमा और ल्यूकेमिया के बीच अंतर करना काफी मुश्किल है. दोनों ही ब्लड कैंसर के रूप हैं. ये दोनों ब्लड और इम्यून सिस्टम को प्रभावित करते हैं.
मियामी यूनिवर्सिटी के मिलर स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं के मुताबिक ल्यूकेमिया और लिम्फोमा का सर्वाइवल रेट एक दूसरे से काफी अलग है. हाई माइलॉयड ल्यूकेमिया में सर्वाइवल रेट 27.4% है, जबकि हॉजकिन लिंफोमा में ये 86.6% है.
लिंफोमा क्या है?
लिंफोमा एक तरह का ब्लड कैंसर है जो हमारे शरीर के ज्यादातर लिम्फ नोड्स को प्रभावित करता है. लिम्फ नोड्स हमारे शरीर के lymphatic system बनाते हैं जोकि इम्यून सिस्टम का जरूरी हिस्सा हैं. लिम्फोमा व्हाइट ब्लड सेल्स को प्रभावित करता है जिसे लिम्फोसाइट्स कहा जाता है जो शरीर को संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मदद करता है.
लिंफोमा के लक्षण
लिंफोमा के रोगियों के लिम्फ नोड्स में सूजन हो जाती है, जो लिम्फनोड्स या दूसरे लिम्फैटिक टिशूज में ट्यूमर बनने के कारण होती है. ये ट्यूमर शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैल सकते हैं, जिससे मरीज को बुखार, वजन कम होना या रात में जरूरत से ज्यादा पसीना आना जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. इसके लक्षण सामान्यत: टीबी की तरह होते हैं.
ल्यूकेमिया को समझिए...
ल्यूकेमिया भी एक तरह का ब्लड कैंसर है जो हमारे बोन मैरो में खून बनाने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करता है. यह मुख्य रूप से वाइट ब्लड सेल्स को प्रभावित करता है. कई बार ये रेड ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स को भी प्रभावित कर सकता है. ल्यूकेमिया हमारे शरीर की बोन मैरो को जरूरत से ज्यादा ब्लड सेल्स बनाने के लिए प्रेरित करता है, जिससे बोन मैरो में हेल्दी सेल्स बाहर हो जाते हैं.
ल्यूकेमिया के लक्षण
ल्यूकेमिया बोन मैरो में ब्लड बनाने वाली कोशिकाओं को प्रभावित करता है. ल्यूकेमिया के रोगियों को एनीमिया, थकान, संक्रमण से लड़ने में असमर्थता, बुखार और रात को बहुत तेज पसीना आना, बेवजह वजन कम होना और चोट से अत्यधिक रक्तस्राव जैसे लक्षण दिखाई देते हैं.
ल्यूकेमिया और लिंफोमा का इलाज
ज्यादातर मामलों में लिंफोमा और ल्यूकेमिया की पहचान के लिए आमतौर पर इमेजिंग टेस्ट, बायोप्सी और ब्लड टेस्ट किया जाता है. दोनों ब्लड कैंसर के उपचार में आमतौर पर कीमोथेरेपी, रेडिएशन थैरेपी, टारगेटेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी शामिल हैं. दोनों कैंसरों के इलाज के लिए कीमोथेरेपी सबसे कॉमन तरीका है. इसमें कैंसर रोधी दवाओं को इंजेक्शन के माध्यम से या फिर ओरल तरीके से रोगी को दिया जाता है.
ब्लड कैंसर के रोगी को कुछ मामलों में पहले कीमोथेरेपी और फिर स्टेम सेल ट्रांसप्लाटेशन से गुजरना पड़ सकता है. ल्यूकेमिया के मामले में बोन मैरो बायोप्सी भी करानी पड़ती है. जोकि लोगों के लिए दर्दनाक हो सकती है क्योंकि बोन मैरो के लिए रीढ़ की हड्डी में एक मोटी सुई डाली जाती है. ल्यूकेमिया में लिंफोमा की तुलना में ज्यादा कीमोथेरेपी की जरूरत होती है. लिंफोमा से पीड़ित बहुत से लोग पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं और सामान्य जीवन जी सकते हैं लेकिन ल्यूकेमिया आक्रामक हो सकता है.