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World Mental Health Day कब और क्यों मनाया जाता है, क्या है इस साल की थीम, जानें मानसिक रोग के लक्षण और बचाव के उपाय

World Mental Health Day 2023: आज के समय में मेंटल हेल्थ एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. इससे जुड़ी समस्याएं जैसे स्ट्रेस, एंग्जायटी और डिप्रेशन के मामले बढ़ते जा रहे हैं. मानसिक बीमारी किसी व्यक्ति में लंबे समय तक भी रह सकती है. इसलिए परिजनों को धैर्य रखने की जरूरत होती है.

World Mental Health Day 2023 World Mental Health Day 2023
हाइलाइट्स
  • पहली बार 10 अक्टूबर 1992 को मनाया गया था वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे 

  • मानसिक रोग है एक तरह का मानसिक स्वास्थ्य विकार 

हर साल 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे (विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस) मनाया जाता है. इसका उद्देश्य विश्व में मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाना और इसके समर्थन में प्रयास करना है. ऑस्ट्रेलिया और अन्य कई देशों में मानसिक स्वास्थ्य या बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह भी मनाया जाता है. आइए आज जानते हैं इस साल की थीम, मानसिक रोग के लक्षण और बचाव के उपाय. 

वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे का इतिहास
पहली बार वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे 10 अक्टूबर 1992 को विश्व मानसिक स्वास्थ्य महासंघ की वार्षिक गतिविधि के रूप में मनाया गया था. शुरुआत में इस दिन की कोई खास थीम नहीं थी और इसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और प्रासंगिक मुद्दों पर जनता को शिक्षित करना था. अभियान की लोकप्रियता को देखते हुए, 1994 में पहली बार उस दिन के लिए एक थीम 'दुनिया भर में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार.' को चुना गया था.

क्या है थीम 
विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2023 की थीम है, 'मेंटल हेल्थ इज ए यूनिवर्सल ह्यूमन राइट' यानी 'मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है'. इस थीम के साथ जागरूकता बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. साथ ही सार्वभौमिक मानवाधिकार के रूप में सभी के मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने और उसकी रक्षा करने वाले अभियान चलाया जाएगा.

क्या है इस दिवस का महत्व 
बदलती लाइफस्टाइल के बीच मेंटल हेल्थ एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. इससे जुड़ी समस्याएं जैसे स्ट्रेस, एंग्जायटी और डिप्रेशन के मामले बढ़ते जा रहे हैं. इसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि लोग अब भी मेंटल हेल्थ को गंभीरता से नहीं लेते और इस बारे में बात करने में भी हिचकिचाते हैं. लोगों को मेंटल हेल्थ का महत्व समझाने के लिए ही इस दिन की शुरुआत की गई थी. तरह-तरह के कार्यक्रम और सेमिनार का आयोजन कर लोगों को इस ओर जागरूक किया जाता है. इन कार्यक्रमों में मेंटल हेल्थ दुरुस्त रखने की टिप्स दी जाती है, साथ ही मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं से बचने के उपाय भी बताएं जाते हैं.

क्या है मानसिक बीमारी 
मानसिक बीमारी एक तरह का मानसिक स्वास्थ्य विकार है, जिसमें अलग-अलग तरह की मेंटल हेल्थ कंडीशंस शामिल होती है. मेंटल डिसऑर्डर होने पर व्यक्ति की सोच, मनोदशा और व्यवहार में बदलाव आते हैं. ऐसे में व्यक्ति डिप्रेशन, टेंशन, सिजोफ्रेनिया और ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाता है. दुनियाभर में बहुत से मानसिक रोगी अपना इलाज बदनामी की वजह से करवाने से कतराते हैं. उन्हें लगता है कि लोग क्या सोचेंगे? कई बार मानसिक बीमारी को समझने में देरी करने या फिर समय से इलाज नहीं करवाने पर मन में सुसाइड करने तक के विचार आने लगते हैं. इसलिए मानसिक रोगी की पहचान करना और इलाज करवाना जरूरी है.

मानसिक रोग के लक्षण 
1. हर समय उदास महसूस करना.
2. मन से बेचैन होना या ध्यान केंद्रित न कर पाना. 
3. बहुत चिंता या भय होना.
4. अपराध की भावनाएं महसूस करना.
5. मानसिक स्थिति में बहुत बदलाव होना.
6. समाज, परिवार और दोस्तों से दूर रहना.
7. शरीर में थकान और ऊर्जा में कमी.
8. नींद ज्यादा या बहुत कम आना. 
9. भ्रम की स्थिति में रहना. 
10. अपने डेली के काम न कर पाना. 
11. किसी नशा का आदि होना या शराब ज्यादा पीना.
12. खाने की आदतों में बदलाव आना.
13. बहुत गुस्सा या हिंसक व्यवहार दिखाना.
14. सेक्स ड्राइव में बदलाव आना.
15. आत्महत्या करने के विचार आना. 
16. पीठ, सिर या कहीं हर वक्त दर्द रहना.

भारत में 20 में से 1 व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित
भारत ने अपना राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP) 1982 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को विकसित करना था. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण ने वर्ष 2016 में अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. जिसके अनुसार, भारत में 20 में से 1 व्यक्ति मानसिक बीमारी से पीड़ित है. WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 1 अरब लोग मानसिक रोग के शिकार है. जिसमें पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्या ज्यादा है. वहीं बच्चे डेवलपमेंटल डिजॉअर्डर्स से पीड़ित हो रहे हैं.  

भारतीय मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 21(4)-A में प्रावधान है कि मानसिक बीमारियों और शारीरिक बीमारी के बीच कोई भेदभाव नही होगा और प्रत्येक बीमाकर्ता मानसिक बीमारी के इलाज के लिए चिकित्सा बीमा का उसी तरह प्रयोग कर सकेगा जैसे शारीरिक बीमारी के इलाज के लिए करता है. लेकिन ज्यादातर बीमा कंपनियां अपनी पॉलिसी के पूर्ण कवरेज से बड़ी संख्या में मानसिक बीमारियों को बाहर रखती हैं.

मानसिक बीमारी से ऐसे करें बचाव 
1. मानसिक बीमारी को रोकने और पीड़ित व्यक्ति को बचाने का सबसे अच्छा तरीका है कि जल्दी मानसिक रोगी की पहचान की जाए और उसकी काउंसलिंग की जाए. इससे उसे ठीक किया जा सकता है. 
2. पीड़ित व्यक्ति के साथ समय बिताएं. उससे बातें करें और उसकी परेशानी जानने की कोशिश करें. अच्छी डाइट लें, किताबें पढ़ें और अपने मन की बातें लिखें, मनोचिकित्सक की सलाह लें.
3. यदि आपके सोने के घंटे नियमित नहीं हैं तो आपको तुरंत इन्हें ठीक कर लेना चाहिए. सोने के अनियमित घंटों के कारण आपके शरीर का मेटाबॉलिज्म बिगड़ता है, जिससे आप तनाव के शिकार हो सकते हैं. 
4. मानसिक बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति को रोजाना आधा घंटा व्यायाम करना चाहिए. साथ ही दोस्तों के साथ समय बिताएं और संतुलित आहार लें. चिंता कम करें और दूसरों से बातचीत करें. 

परिजनों को रखना होता है धैर्य
मानसिक रोग किसी व्यक्ति में लंबे समय तक भी रह सकता है. इसलिए उसके परिजनों को धैर्य रखने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. कई बार परिजनों का धैर्य भी जवाब देने लगता है. इस कारण वह भी मानसिक रोग के शिकार बन जाते हैं. कई लोगों में मानसिक रोग अनुवांशिक भी होता है. धैर्य रखने वाले परिजनों को भविष्य में सुखद परिणाम भी देखने को मिलते हैं. मानसिक रोग किसी भी आयु में हो सकता है. खासकर 15 से 35 वर्ष के बीच की आयु में मानसिक रोग की शुरुआत होती है.

कब दी जाती है शॉक थेरेपी
मानसिक रोगी को शॉक थेरेपी तब दी जाती है जब मरीज पर दवाइयों का असर न हो रहा हो. अगर कोई अपनी जान लेने पर तुला है और उसे तुरंत काबू में लाना पड़े, तब ही इसकी ज़रूरत पड़ सकती है. मानसिक बीमारियों से ग्रसित गर्भवती महिलाओं को भी शॉक थेरेपी दी जाती है, क्योंकि कुछ दवाइयों के साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं. इससे पता चलता है कि शॉक थेरेपी पूरी तरह सेफ है.

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