टीबी यानी ट्यूबरक्लॉसिस एक गंभीर बीमारी है. हर साल 24 मार्च को इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए इसे मनाया जाता है. यह एक जीवाणु संक्रमण है, जिसका अगर समय पर रहते इलाज ना हो तो ये बीमारी गंभीर रूप ले सकती है.
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, भारत में टीबी से जूझ रहे लोगों की अनुमानित संख्या 2019 में 2.64 मिलियन मामले थे. यह प्रति 100,000 जनसंख्या पर 193 की दर है. फिर भी, रोग कई मिथकों से जुड़ा हुआ है जो अक्सर आवश्यक और प्रभावी उपचार में बाधा डालते हैं.
मिथक: टीबी से पीड़ित हर व्यक्ति संक्रामक होता है
तथ्य: टीबी बालों, दांतों और नाखूनों को छोड़कर शरीर के सभी अंगों को प्रभावित कर सकता है. लेकिन, केवल पल्मोनरी ट्यूबरक्लोसिस संक्रामक होता है और बूंदों के माध्यम से फैल सकता है. पल्मोनरी ट्यूबरकुलोसिस का इलाज शुरू करने वाले मरीज ड्रग सेंसिटिव ट्यूबरकुलोसिस का इलाज शुरू करने के तीन हफ्ते बाद गैर-संक्रामक हो जाते हैं.
मिथकः टीबी जेनेटिक बीमारी है
तथ्यः आज भी कई लोग ऐसा मानते हैं कि टीबी एक जेनेटिक बीमारी है. हालांकि, सच्चाई ये नहीं है. दरअसल, एक ही घर में रहने वाले लोगों को अक्सर यह बीमारी हो जाती है, जिसकी वजह से लोग इसे जेनेटिक बीमारी मानने लगे हैं. लेकिन असल में एक साथ रहने वाले लोगों को यह बीमारी बैक्टीरिया के फैलने से होती है.
मिथक: टीबी घातक और असाध्य है
तथ्य: लोग अक्सर यह भी मानते हैं कि टीबी एक लाइलाज, जानलेवा बीमारी है. लेकिन आपको बता दें कि अगर समय पर इलाज किया जाए तो टीबी का मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकता है. इसमें 6 से 9 महीने के लिए रिफैम्पिसिन, आइसोनियाज़िड, एथमब्यूटोल और पायराज़ीनामाइड जैसी दवाएं दी जाती हैं.
मिथकः टीबी जानलेवा बीमारी है
तथ्यः यह बात पूरी तरह से गलत है. टीबी एक गंभीर बीमारी जरूर है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि यह जानलेवा बीमारी हो. अगर सही तरीके और समय पर इसका इलाज किया जाए, तो इस बीमारी से ठीक हुआ जा सकता है.
मिथक: टीबी छूने से फैलता है
तथ्य: cutaneous tuberculosis या त्वचा की टीबी का अनुपचारित रोगियों में स्पर्श से फैलना दुर्लभ है. यह व्यक्तिगत वस्तुओं, जैसे कि कपड़े, बिस्तर, पीने के गिलास, खाने के बर्तन, हाथ मिलाना, शौचालय के माध्यम से नहीं फैलता.
मिथकः टीबी सिर्फ फेफड़ों को प्रभावित करता है
तथ्यः लोगों का यह मानना है कि टीबी सिर्फ फेफड़ों को ही प्रभावित करती है, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है. टीबी मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन खून के जरिए यह बीमारी आपके शरीर के अन्य अंगों पर भी असर डाल सकती है.