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World Zoonoses Day 2023: क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड जूनोज डे, क्या होती हैं जूनोटिक बीमारियां, जानें इस साल की थीम और इस रोग से बचने के उपाय

पशुओं से इंसानों को होने वाली बीमारियों के अध्ययन और रिसर्च पर जोर देने के लिए पहला विश्व जूनोज दिवस 6 जुलाई 1885 को मनाया गया था. इसके बाद हर साल इस दिन दुनिया भर में जूनोटिक बीमारियों के कारण और बचाव के उपायों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. 

मंकीपॉक्स एक जूनोटिक बीमारी है मंकीपॉक्स एक जूनोटिक बीमारी है
हाइलाइट्स
  • हर साल 6 जुलाई को मनाया जाता है वर्ल्ड जूनोज डे

  • कई बीमारियां मनुष्यों में पशुओं से हैं फैलती

कई गंभीर बीमारियां पशुओं से मनुष्यों में फैलती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जो बीमारियां जानवरों से मनुष्यों में फैलती हैं. उन्हें जूनोटिक रोग कहा जाता है. इन बीमारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 6 जुलाई को वर्ल्ड जूनोज डे मनाया जाता है.

इसलिए मनाया जाता है यह डे
पशुओं से इंसानों को होने वाली बीमारियों के अध्ययन और रिसर्च पर जोर देने के लिए पहला विश्व जूनोज दिवस 6 जुलाई 1885 को मनाया गया था. वर्ल्ड जूनोज डे जीव वैज्ञानिक लुई पाश्चर के रेबीज का टीका खोजने में मिली सफलता की स्मृति में मनाया जाता है. वर्ल्ड जूनोज डे के अवसर पर दुनिया भर में इन बीमारियों के कारण और बचाव के उपायों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जूनोटिक बीमारियों के साथ साथ मानव और जीव-जंतुओं के स्वास्थ्य को बेहतर और सुरक्षित बनाने के कार्यों को बढ़ावा दिया जाता है.

क्या है इस साल की थीम
इस साल वर्ल्ड जूनोज डे की थीम वन वर्ल्ड, वन हेल्थ: प्रीवेंट जूनोज!  स्टॉप द स्प्रेड,  कंट्रोल जूनोज डिजीज! प्रोटेक्ट एनीमल्स, प्रीवेंट जूनोज! (एक दुनिया, एक सेहत : जूनोज से बचाव! फैलने से रोके, जूनोज बीमारियों पर नियंत्रण! पशुओं की सुरक्षा, जूनोज से बचाव) है.

जानवरों से फैल रहीं कई बीमारियां 
दिन-प्रतिदिन जूनोटिक बीमारियों के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लोगों में ज्ञात हर 10 संक्रामक रोगों में से 6 से अधिक बीमारियां जानवरों से फैल सकती हैं. नए अध्ययनों से पता चला है कि लोगों में हर 4 नए या उभरते संक्रामक रोगों में से 3 जानवरों से आए हैं. कीटाणुओं के कारण होने वाली ये बीमारियां हल्के से लेकर गंभीर होती हैं. यहां तक कि ये मौत का कारण भी बन सकती हैं.

कैसे फैलता है यह रोग
यह रोग मुख्य रूप से व्यक्ति के संक्रमित जानवर की लार, रक्त, मूत्र, बलगम, मल या शरीर के अन्य तरल पदार्थों के साथ सीधा संपर्क में आने से होता है. इसके फैलने के अन्य तरीकों में सतही संपर्क से लेकर अप्रत्यक्ष संपर्क हैं, जिसमें वेक्टर जनित, विशेष रूप से टिक, मच्छर या पिस्सू और दूषित पानी-भोजन शामिल हैं. जूनोटिक रोग हवा, संक्रमित पदार्थों, खाद्य पदार्थों के जरिए सीधे मनुष्यों में फैलते हैं. एवियन इंफ्लुएंजा इसका सबसे प्रमुख उदाहरण है, जिसका प्रसार हवा के माध्यम से होता है. यह एक प्रकार का वायरल रोग है जो संक्रमित सतहों के संपर्क में आने से होता है.

इन्हें रहता है ज्यादा जोखिम 
कैंसर रोगी, बुजुर्ग रोगी, गर्भवती रोगी, 5 वर्ष से कम उम्र के रोगियों में जूनोटिक संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है. इसके अलावा जंगली क्षेत्रों के आस-पास या अधिक संख्या में जंगली जानवरों वाले कस्‍बाई इलाकों में रहने वाले लोग इन बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं. खेतीबाड़ी में जुटे लोगों को भी इन बीमारियों का खतरा अधिक है. जूनोटिक रोगों में प्लाक, निपाह वायरस का प्रकोप, इबोला रक्तस्रावी बुखार, जीका वायरस, सार्स रोग, मंकी पॉक्स आदि शामिल हैं. मच्छरों से पनपने वाले कुछ जूनोटिक रोग डेंगू, चिकुनगुनिया, येलो फीवर, वेस्ट नाइल फीवर, जापानी एंसेफलाइटिस आदि शामिल हैं. 

इलाज से बेहतर है बचाव
जूनोटिक रोग को रोकने और नियंत्रित करने के लिए इनकी निगरानी करना महत्वपूर्ण है. इसमें रोग का जल्दी पता लगाना, नियंत्रण रणनीतियां, उचित प्रबंधन और मनुष्यों और जानवरों की रुग्‍णता दर और मृत्यु दर को कम करना शामिल है. इन बीमारियों से बचाव करना सबसे बेहतर है. इसके लिए जरूरी है कि हाइजीन का ध्यान रखें, साफ पानी पीएं और खाना पकाने के लिए सुरक्षित पानी का इस्तेमाल करें. पालतू पशुओं को रेबीज जैसी वैक्सीन लगवाएं. 

यदि कोई जानवर काट ले तो घाव को तुरंत धोएं
बीमार पशुओं के खुले घावों के संपर्क में आने से बचना चाहिए और केवल दस्ताने पहनकर ही उनके संपर्क में आना चाहिए. पोल्ट्री फार्मों में किसी भी बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं तो तुरंत संबंधित अधिकारियों को इस बारे में सूचित करना चाहिए.जानवरों से कटने या उनके पंजों/दांतों आदि से खरोंच लगने से बचना चाहिए. जंगलों में जाएं तो समुचित कपड़ों से अपने शरीर को ढककर जाएं और पशुओं के रहने के ठिकानों के आसपास सचेत रहें. यदि कोई पशु काट ले तो घाव को नल के नीचे पानी और साबुन से तत्काल धोएं.