ओडिशा में मासिक धर्म का अनोखा त्योहार मनाया गया. नारीत्व (womanhood)का जश्न मनाने के लिए यह तीन दिवसीय त्योहार मनाया जाता है. यह मिथुन संक्रांति पर होता है, जहां त्योहार का दूसरा दिन मिथुन के सौर महीने की शुरुआत का प्रतीक है, जिसके बाद बारिश का मौसम शुरू होता है.
हमारे देश में पीरियड्स (मासिक धर्म) पर महिलाएं खुलकर बातचीत नहीं करती हैं, लेकिन ओडिशा में पीरियड्स को हर्षोल्लास के साथ एक त्यौहार के तौर पर मनाया जाता है, जिसे 'रज पर्व या रजो महोत्सव' के नाम से जाना जाता है.
यह तीन दिनों तक चलने वाला अनूठा त्योहार है, जिसमें मानसून की शुरुआत और भू देवी यानी धरती माता की विशेष पूजा की जाती है. ऐसा माना जाता है कि इन तीन दिनों के बीच धरती माता मासिक धर्म से गुजरती हैं और चौथा दिन शुद्धिकरण स्नान का दिन होता. इन तीन दिनों के दौरान लड़कियां नया कपड़ा पहनती हैं और घर का कोई काम नहीं करती हैं.
हर साल 'रजो महोत्सव' 14 जून को शुरू होता है और तीन दिनों तक चलता है. इस पर्व के पहले दिन को पहली रजो, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति, तीसरे दिन को भूदाहा या बासी रजा कहा जाता है. वहीं, चौथे दिन को शुद्धिकरण स्नान के नाम से जाना जाता है.
रजो महोत्सव में लोग साल की पहली बारिश का जश्न मनाकर स्वागत करते हैं. इन दिनों में अच्छी बारिश और खेती के लिए धरती मां की पूजा भी की जाती है. इस पर्व में औरत, बड़े और बच्चे सभी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. रजो पर्व के दौरान खेतीबाड़ी के कामकाज, बुआई-कटाई यानी जमीन से जुड़े कई काम रोक दिए जाते हैं ताकि भूदेवी को खुश रखते हुए आराम दिया जा सके.
ओडिशा में तीनों दिन बालिकाएं और युवितयां नए कपड़े पहनती है. सजती-संवरती हैं, मेहंदी लगाती हैं और झूला भी झूलती हैं. विवाहित महिलाएं भी तीन दिन तक कोई काम नहीं करतीं हैं. यहां तक की रसोई भी पुरुषों के हवाले कर दी जाती है. ग्रामीण इलाकों में तो देसी खेलकूद का माहौल रहता है.