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भारत

विधवा होली: सुलभ इंटरनेशनल की एक पहल ने भरा विधवा महिलाओं के जीवन में रंग, सैकड़ों साल की परंपरा तोड़ अब खेल रही हैं होली

विधवा होली
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ब्रज की होली सबसे निराली होती है. हो भी क्यों न क्योंकि यहां की होली में कोई भेदभाव नहीं है. इसी का जीता जागता नजारा देखने को मिला वृंदावन में, जहां बांकेबिहारी के धाम वृन्दावन में होली पर सैकड़ों साल पुरानी परंपरा की दीवार गिराकर आठ साल पहले एक नई शुरुआत की गई. यहां आश्रय सदनों में रहने वाली विधवा महिलाएं राधा कृष्ण के साथ होली खेलती हैं. जिसने उनके जीवन में एक नई ऊर्जा के साथ रंग भरने का काम किया. (क्रेडिट- मदन गोपाल)

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बता दें, श्रीधाम वृंदावन में वर्तमान में करीब 2000 विधवा महिलाएं हैं. इनके जीवन दुख का सागर बन गया है. ऐसे में इन्हें कुछ नई अनुभूति कराने के लिए सुलभ इंटरनेशनल ने आठ साल पहले नई पहल के साथ कदम बढ़ाया. (क्रेडिट- मदन गोपाल)
 

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इस बार भी संगठन की ओर से गोपीनाथ बाजार स्थित गोपीनाथ मंदिर में फूलों व गुलाल की होली का आयोजन किया गया. जिसमें सभी विधवाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. वहीं उन्होंने होली के दौरान एक दूसरे पर पर रंग-बिरंगे फूल बाबूलाल बरसाकर उन्हें होली रस से सराबोर कर दिया. (क्रेडिट- मदन गोपाल)
 

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सुलभ इंटरनेशनल संस्था के द्वारा विधवाओं के जीवन में होने जा रहे इस बदलाव से वह बेहद खुश हैं. सदियों पुरानी प्रथा को दरकिनार कर वह पिछले 8 साल से होली खेलती हैं. विधवाओं ने होली खेलने की अपनी इच्छा संस्था सुलभ इंटरनेशनल के सामने जाहिर की, तो संस्था के संस्थापक डॉ.बिंदेश्वरी पाठक ने सहमति जता दी. (क्रेडिट- मदन गोपाल) 

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सुलभ इंटरनेशनल की विनीता वर्मा कहती हैं कि वृंदावन में आई माताओं को अछूत माना जाता है. हमारे समाज में ही अपने परिवार और समाज के लोग इन्हें घर से निकाल देते हैं. आवश्यकता यह थी कि इनको दो टाइम का खाना दिया जाए, इनको समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए…लेकिन डॉ बिंदेश्वरी पाठक ने यह कर दिखाया है. विधवा होने के बाद स्त्री सफेद कपड़े पहनती है और घर के किसी शुभ काम में उन्हें हिस्सा नहीं लेने दिया जाता, इस प्रथा को बिंदेश्वरी पाठक ने तोड़ा है. पिछले 8 साल से हम लगातार होली मना रहे हैं. (क्रेडिट- मदन गोपाल)
 

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जो माताएं रंग नहीं पहनती थी, उन्हीं का कहना है कि वे रंगों से होली खेलेंगी. और आज यह होली खेल भी रही हैं. ये सभी महिलाएं आज बहुत बड़े आनंद की अनुभूति कर रही हैं. (क्रेडिट- मदन गोपाल)
 

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पिछले एक दशक से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था आश्रय सदनों की विधवा-वृद्धाओं को बेहतर जिंदगी व्यतीत करने के लिए सुविधाएं प्रदान कर रही हैं. साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है. (क्रेडिट- मदन गोपाल)
 

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ये विधवाएं मंदिरों में जाकर भीख न मांगें, इसके लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं. इसी के तहत इस होली का आयोजन किया गया. कई वर्षों से अपनों का तिरस्कार और समाज की बेरुखी झेल रही इन महिलाओं के जख्म भले ही न भर पाएं, लेकिन इतना जरूर है कि इनके जीवन में नई उर्जा जरूर भर जाएगी.  (क्रेडिट- मदन गोपाल