1959 में चीन से भारत आए 14वें दलाई लामा का आज 6 जुलाई को जन्मदिन है. 31 मार्च, 1959 को दलाई लामा ने भारत की धरती पर पहली बार कदम रखा था. दलाई लामा चीन से अपनी जान बचाने के लिए भारत आए थे. तिब्बत की राजधानी ल्हासा से वह जान बचाने के लिए 15 दिन पहले ही निकले थे, लेकिन भारत तक पहुंचने में उन्हें लगभग पूरा महीना लग गया. अब भारत में उन्हें बहुत सम्मान की नजरों से देखा जाता है. 6 जुलाई को उनके जन्मदिन के मौके पर मैक्लोडगंज और धर्मशाला में कई कार्यक्रम आयोजित हो रहे हैं. इस बार तो चर्चा तो ऐसी भी है कि हिमाचल के सीएम जयराम ठाकुर भी तिब्बती धर्मगुरु के जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल हो सकते हैं. आज उनके जन्मदिन के दिन उनके जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में बताएंगे.
रात में सफर करके छोड़ा था चीन
14वें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो अपने समर्थकों के साथ 17 मार्च 1959 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से पैदल ही निकले थे और हिमालय के पहाड़ों को पार करते हुए भारतीय सीमा में दाखिल हुए थे. ऐसा भी कहा जाता है कि चीनी सेना से बचने के लिए उन्होंने मुश्किल रास्ता चुना और वो केवल रात में ही सफर करते थे. उस समय 15 तक दिनों किसी को भी उनकी खबर नहीं थी तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में उनको लेकर कई तरह की अफवाहें भी आने लगी थी. कुछ लोगों ने तो उन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया था. यहां तक की कुछ का कहना था कि चीन ने उन्हें बंदी बना लिया है. लेकिन वो किसी सुरक्षित भारत की सीमा तक पहुंचे.
जादुई कालीन की कहानियां भी हैं प्रचलित
दलाई लामा के समर्थकों में उन्हें लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित थीं. उनके बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि चीन से उनका बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था. उनके समर्थकों की प्रार्थनाओं की वजह से चमत्कार हुआ था और बादलों की धुंध के बीच दलाई लामा के लिए रास्ता बना और प्रार्थनाओं के पुल पर सवार होकर वो किसी तरह सुरक्षित भारत पहुंचे.
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को लेकर चीन है अडिग
14 वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चयन को लेकर चीन और अमेरिका आमने-सामने है. चीन ने ऐसे संकेत दिए हैं कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन चीन ही करेगा. नहीं चीन की इन चलाकियों को देखते हुए दलाई लामा के करीबीयों का ये भी कहना है कि वो दलाई लामा चुनने की परंपरा को तोड़ कर खुद भी अपना उत्तराधिकारी चुन सकते हैं. साल 2019 में दलाई लामा एक बयान देकर ये भी कहा था, कि उनका उत्तराधिकारी कोई भारतीय भी हो सकता है या फिर कोई महिला भी हो सकती है. हालांकि उस वक्त भी चीन को ये बात पसंद नहीं आई थी, और चीन ने इस पर खास आपत्ति जताई थी.