आज का इतिहास हमारे लिए कई मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि साल 1966 में 19 जनवरी ही वो दिन था जब देश को इंदिरा गांधी के रूप में अपनी पहली महिला प्रधानमंत्री मिली थीं. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद इंदिरा गांधी ने वह कुर्सी संभाली जो स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार उनके पिता जवाहर लाल नेहरू ने संभाली थी. वह 1967 से 1977 और फिर 1980 से 1984 में उनकी मृत्यु तक इस पद पर रहीं.
इंदिरा गांधी देश की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं. इंदिरा गांधी ने कई बड़े फैसले लिए, जिनकी वजह से कई बार तो वह प्रशंसा की पात्र तो कई बार उन्हें कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. 1975 में आपातकाल की घोषणा और 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले उनके जीवन पर भारी पड़े. आपातकाल के बाद जहां उन्हें सत्ता भी गंवानी पड़ी. वहीं स्वर्ण मंदिर में सेना भेजने के फैसले की कीमत उन्हें अपने सिख अंगरक्षकों के हाथों जान देकर चुकानी पड़ी.
इंदिरा गांधी का पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी था. इंदिरा गांधी के घर का नाम इंदु था. उन्होंने साल 1942 में पिता के खिलाफ जाकर फिरोज से शादी की थी. जवाहरलाल नेहरू को इंदिरा और फिरोज के रिश्ते से सख्त ऐतराज था. इंदिरा गांधी उस समय गुजरात के लाल और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को हराकर प्रधानमंत्री बनीं थीं. प्रधानमंत्री बनने के लिए इंदिरा को देश के 16 में से 11 राज्यों का समर्थन प्राप्त था.
इंदिरा की लड़ाई अपने पक्ष के नेता गुलजारीलाल नंदा और मोरारजी देसाई से थी. लेकिन अचानक लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद कार्यकारी प्रधानमंत्री बने गुलजारीलाल ने पीएम पद की रेस से अपना नाम वापस ले लिया. अब इंदिरा के सामने सिर्फ मोराजी देसाई थे. कांग्रेस के 525 सांसदों में से 169 सांसदों ने मोराजी का समर्थन किया लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लिए ये आंकड़ा कम था. इस तरह 9 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं.
इंदिरा गांधी के महत्वपूर्ण फैसले