आज से ठीक 55 साल पहले आज ही के दिन इंदिरा गांधी ने कुछ ऐसा फैसला लिया था जिसका देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर हुआ. बात कर रहे हैं 19 जुलाई 1969 की. इस दिन इंदिरा गांधी ने भारत के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण घोषित कर एक ऐतिहासिक और साहसिक फैसला लिया था. इस फैसले पर इंदिरा गांधी के शब्द थे "अर्थव्यवस्था की कमान संभालने वाली ऊंचाइयों पर नियंत्रण जरूरी है, खासकर एक गरीब देश में जहां विकास के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाना और तमाम समूहों और क्षेत्रों के बीच असमानताओं को कम करना बेहद मुश्किल है."
1947 के बाद भारत को अंग्रेजों से आजादी तो मिल गई थी लेकिन यह देश अब भी अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए संघर्ष कर रहा था. गरीबी से ऊपर उठने के लिए सरकार द्वारा कई तरह के प्रयास किए जा रहे थे लेकिन यह स्थिति इतनी जल्दी कहां ठीक होने वाली थी. इसी बीच 19 जुलाई 1969 में इंदिरा सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लेकर पूरे देश का चौंका दिया. यह वह दिन था जब इंदिरा गांधी ने रातों रात 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का ऐलान कर दिया था जिसकी उम्मीद किसी को भी नहीं थी. सरकार में मौजूद जिसने इस फैसले का विरोध किया उसे अपनी सदस्यता से हाथ धोना पड़ा. आइए जानते है आखिर क्यों यह फैसला इतना अहम था, इसकी जरूरत क्या थी, इस फैसले ने देश की अर्थव्यवस्था पर क्या असर डाला और इसके पीछे का असल मकसद क्या था.
क्या था राष्ट्रीयकरण का यह फैसला ?
उस समय भारत की कमान प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हाथों में थी. श्रीमती गांधी ने 19 जुलाई की रात 8 बजकर 30 मिनट पर भारत के सबसे बड़े 14 निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण का ऐलान कर दिया था. इस घोषणा के तहत राष्ट्रीयकरण किए गए बैंकों में जमा देश का 70 प्रतिशत पैसा राष्ट्र के नाम होना था. आजादी के बाद का यह फैसला देश की इकोनॉमिक पॉलिसी में सबसे अहम फैसला था और भारत की अर्थव्यवस्था के इतिहास में छाप छोड़ने वाला था.
किन बैंकों का हुआ राष्ट्रीयकरण ?
कुल मिलाकर 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया था और इस सूची में कई-बड़े बैंकों के नाम शामिल था. इन बैंकों में इलाहाबाद बैंक, केनरा बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, यूको बैंक, सिंडिकेट बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन बैंक, देना बैंक और यूनियन बैंक का नाम शामिल है.
क्या थी वजह ?
राष्ट्रीयकरण को घोषित करते समय इंदिरा गांधी ने इस फैसले को देशहित का नाम देकर कहा था "अर्थव्यवस्था की कमान संभालने वाली ऊंचाइयों पर नियंत्रण जरूरी है, खासकर एक गरीब देश में जहां विकास के लिए पर्याप्त संसाधन जुटाना और तमाम समूहों और क्षेत्रों के बीच असमानताओं को कम करना बेहद मुश्किल है."उस समय भारत को आर्थिक विकास की जरूरत थी. सन 1962 और 1965 में दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन से युद्ध के बाद भारत के पब्लिक फाइनेंस पर काफी असर पड़ा था. 2 साल से खाने की कमी के कारण भारत अमेरिकन फूड शिपमेंट्स (पीएल 480 प्रोग्राम) पर पूरी तरह से निर्भर हो गया था जिससे देश की सुरक्षा से भी समझौता करना पड़ा था. सन 1960 -70 के बीच जनसंख्या तो बढ़ रही थी लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था की हालत उतनी ही बदतर होती जा रहीं थी. कमर्शियल बैंकों द्वारा दिए गए लोन में कृषि का हिस्सा 2 फीसदी भी नहीं था. इस समय कृषि को आर्थिक निवेश की जरूरत थी. इसी के साथ सामाजिक विकास, निजी एकाधिकार पर काबू, गांव व पिछड़े इलाकों में बैंकिंग को बढ़ाना, शहर और गांव के बीच की दूरी कम करने और लोगों की ज्यादा से ज्यादा बचत जुटाने को भी इस राष्ट्रीयकरण की वजह बताया गया था.
मोरारजी देसाई नहीं थे सहमत
इंदिरा के इस फैसले में वित्त मंत्री मोरारजी देसाई बाधा बन रहे थे और इस बात से सहमत नहीं थे .लगातार विरोध का सामना करने के कारण मोरारजी देसाई और उनके बेटे पर वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगाए गए और तुरंत मंत्रिमंडल को बदलने के आदेश दिए गए. इस बात पर मोरारजी देसाई नहीं माने और कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. इस तरह इंदिरा अपने रास्ते की कांटे को हटाने में कामयाब हो गई और वित्त मंत्री के इस्तीफा देने के तीन दिन बाद इस 19 जुलाई को इस फैसले पर मोहर लगा दी गई.
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से क्या लाभ हुआ ?
राष्ट्रीयकरण से देश के ग्रामीण इलाकों को काफी हद तक सहूलियत मिली. राष्ट्रीयकरण के बाद गांवों में भी बैकिंग सुविधा उपलब्ध होने लगी और आम लोगों का भरोसा मिलने लगा. कृषि वर्ग जैसे छोटे उद्योगों को बढ़ावा मिला और फंड में बढ़ोतरी होने से इकोनॉमिक ग्रोथ में फायदा हुआ. बैंक में जमा की गई राशि में 800 फीसदी तो एडवांस राशि में 11,000 रुपए तक की बढ़त हुई. बड़ी बात यह है की कृषि और छोटे उद्योगों को लोन मिलने के साथ गांव में बैंक की और शाखाएं खोली गई. आखिर में इस फैसले का परिणाम आगामी चुनाव में देखने को मिला जिसने इंदिरा गांधी को राजनीतिक फायदा पहुंचाकर एक बार फिर सरकार बनाने का मौका दिया.
बैंकों से जुड़े कुछ बड़े फैसलों के बारे में भी जान लीजिए
यह पहली बार नहीं था भारत में समय-समय पर बैंकों को लेकर जरूरी कदम उठाए गए हैं. जैसे साल 1955 में गांव और पिछड़े इलाकों में बैंकिंग सुविधाओं और इंपीरियल बैंक ऑफ इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया गया जो आगे चलकर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया(SBI) बना. इसके बाद RBI के प्रमुख एजेंट और राज्य सरकारों के बैंकिंग ट्रांजेक्शन की जिम्मेदारी SBI को मिली. 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण होने के बाद 1980 में नेशनलाइजेशन का दूसरा दौर आया जिसमें 6 और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया.