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200 से ज्यादा जरूरतमंद बच्चों की जिंदगी संवारने का काम कर रही हैं 26 साल की कीर्ति, विदेश से भी इस अभियान में जुड़ रहे हैं लोग

पेशे से तो कीर्ति एक डेंटिस्ट है लेकिन, साथ में बच्चों को भी पढ़ाती हैं. यह वह बच्चे हैं, जो आर्थिक परिस्थितियां ठीक ना होने के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं या फिर उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं.

200 बच्चों को पढ़ाती हैं कीर्ति की टीम 200 बच्चों को पढ़ाती हैं कीर्ति की टीम
हाइलाइट्स
  • 200 बच्चों को पढ़ाती हैं कीर्ति की टीम

कानों से सुनी एक छोटी सी घटना भी समाज में बदलाव की बुनियाद बन सकती है. कब, कैसे, क्या हो जाए? ये सब बातें फिर पलक झपकने सी लगती हैं. ऐसी ही एक घटना हुई करनाल की डा. कीर्ति के साथ, जिसके बाद उन्होंने शिक्षक बन समाज में योगदान करने का फैसला लिया. 

वैसे देखा जाए तो दुनिया में बहुत कम लोग होते हैं, जो खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचते हैं और अपने प्रोफेशन के साथ-साथ पैशन को भी उतनी ही शिद्दत से फॉलो करते हैं. और वे लोग तो और भी कम होते हैं जो समाज सेवा को अपना कर्म और धर्म दोनों मानते हैं और आज हम आपको एक ऐसे ही व्यक्ति से मिलवा रहे हैं जिन्होंने महज 25 साल की उम्र में समाज ही नहीं बल्कि देश के तमाम युवाओं के लिए एक मिसाल कायम की है. 

बच्चों की हेल्थ का भी रखती हैं पूरा ध्यान

पेशे से तो कीर्ति एक डेंटिस्ट है लेकिन, साथ में बच्चों को भी पढ़ाती हैं और यह वह बच्चे हैं, जो आर्थिक परिस्थितियां ठीक ना होने के कारण स्कूल नहीं जा पाते हैं या फिर उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं. डॉक्टर कीर्ति इन बच्चों को तमाम सुविधाएं तो पहुंचाती ही हैं बल्कि इन्हें पढ़ाती भी हैं. डॉक्टर कीर्ति बताती हैं कि अब तक में 200 से ज्यादा बच्चों को पढ़ा चुकी हैं और क्योंकि वह डॉक्टर है इसीलिए उनके हेल्थ चेकअप का भी पूरा ध्यान रखती हैं.

200 बच्चों को पढ़ाती हैं कीर्ति की टीम 

डॉक्टर कीर्ति कहती हैं कि उन्होंने इस मिशन की शुरुआत सिर्फ दो वॉलिंटियर्स और 20 बच्चों के साथ की थी लेकिन कारवां आगे चलता गया और आज उनके साथ 70 लोगों की टीम है, जो करीब 200 बच्चों को पढ़ा रही है. कीर्ति बताती हैं कि बचपन में जब वह अपनी मां सुषमा गुप्ता के साथ बैठकर पढ़ती थीं तो साथ में नौकरानी की बेटी को भी पढ़ाने बैठा लेते थे. उसने भी वहीं पर पढ़ना लिखना शुरू कर दिया. बाद में इस लड़की की शादी बिहार के पटना शहर में हो गई. वहां उन्हें अपना मैरिज सर्टिफिकेट बनवाना था, जहां उन्हें अधिकारी ने अंगूठा लगाने के लिए बोला तो उसने अधिकारी की बात का विरोध करते हुए कहा कि मैं तो पढ़ना-लिखना जानती हूं, साइन करूंगी... और अंग्रेजी में साइन किए.

लड़की ने यही घटना डा. कीर्ति के घर पर बताई कि कैसे अधिकारियों का नजरिया उसके प्रति बदल गया था. इसी सीख से डेंटिस्ट कीर्ति गुप्ता ने सात बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. इस मिशन में कुछ ऐसे बच्चे भी जुड़े हुए हैं जिनके माता-पिता लोगों के घर पर काम करते हैं या फिर बस या ऑटो चलाते हैं या फिर पुताई का काम करते हैं. 

विदेश से भी इस अभियान में जुड़ रहे हैं लोग 

कीर्ति बताती हैं कि अब उनके इस मिशन में देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी लोग जुड़ रहे हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि लोग उन बच्चों को स्पॉन्सर कर रहे हैं या उन बच्चों को पार्शियली अडॉप्ट कर रहे हैं जो पढ़ाई तो करना चाहते हैं लेकिन, उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं है. कई लोग हैं जो अमेरिका और टर्की से बच्चों के साथ जुड़े हुए हैं और उनके लाइफटाइम एजुकेशन की जिम्मेदारी ले चुके हैं. 

गौर करने वाली बात यह है कि पिछले 6 सालों से जो बच्चे यहां पर पढ़ रहे हैं वह भी इतने काबिल बन चुके हैं कि वह खुद भी अब यहां पर पढ़ाने लगे हैं. कीर्ति बताती हैं कि यहां से पढ़े हुए बच्चे कई बड़ी कंपनियों में नौकरी भी कर रहे हैं. उन्हीं को देखकर फिलहाल पढ़ रहे बच्चों को आईएएस, आइपीएस, मेडिकल और साइंस के क्षेत्र में नाम कमाना है. 

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