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ग्राम प्रधान हो तो ऐसी ! दिल्ली से आईं प्रियंका बन रही लोगों के लिए मिसाल, 29 साल की उम्र में गांव को बना रहीं प्लास्टिक मुक्त

ग्राम प्रधान होने के नाते 29 वर्षीय प्रियंका तिवारी ने अपना एजेंडा तय किया. उन्होंने गांव को प्लास्टिक से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया. उन्हें उम्मीद है कि अगले दो सालों में प्लास्टिक के इस्तेमाल को 95 प्रतिशत कम कर दिया जाएगा.

दिल्ली से आईं प्रियंका बन रही लोगों के लिए मिसाल दिल्ली से आईं प्रियंका बन रही लोगों के लिए मिसाल
हाइलाइट्स
  • प्रियंका ने 2021 में ग्रहण किया था ग्राम प्रधान का पदभार

  • जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहीं प्रियंका

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के राजपुर गांव की 29 वर्षीय ग्राम प्रधान यहां नया कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं. यह ग्राम प्रधानों को लेकर उन सभी धारणाओं का खंडन कर रही हैं, जो लोगों के जहन में है. राजस्थान में जन्मी और दिल्ली में पली-बड़ी 29 वर्षीय प्रियंका तिवारी अपने गांव के लोगों को एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन को लेकर जागरूक कर रही हैं.

प्रियंका तिवारी ने 2021 में ग्राम प्रधान का पदभार ग्रहण किया था. वह शादी के बाद राजपुर गांव शिफ्ट हो गई थीं. गांव वाले भले ही गांव के जीवन(सुविधाओं की कमी, कचरे के टीले, जर्जर सड़कों, खुली नालियों)के आदी हो गए हों लेकिन, प्रियंका ने मन बना लिया था कि उन्हें यहां कि तस्वीर बदलनी है और गांव वालों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम करना है. 

गांव को प्लास्टिक मुक्त कराने का बीड़ा उठाया

ग्राम प्रधान होने के नाते उन्होंने अपना एजेंडा तय किया. उन्होंने गांव को प्लास्टिक से मुक्त कराने का बीड़ा उठाया. प्रियंका बताती हैं कि पहले यहां प्लास्टिक के उपयोग को रोकना संभव नहीं लगता था. उन्हें पता था कि यह एक लंबी लड़ाई होगी. इसलिए अपनी योजना को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए, प्रियंका ने मुख्य रूप से दुकानदारों, सड़क किनारे विक्रेताओं और घरों में कपड़े के थैले बांटे.

प्लास्टिक पर प्रतिबंध का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना 

इसके बाद उनकी पंचायत ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध का पहली बार उल्लंघन करने वालों के लिए 500 रुपये का जुर्माना लगाने का फैसला किया, दूसरी बार उल्लंघन करने वालों के लिए 1,000 रुपये और तीसरी बार दोहराने पर उल्लंघन करने वाली दुकान का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा. 

बच्चों के लिए जागरुकता क्लास चलानी शुरू की 

साथ ही प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुकता क्लास भी लगाई गईं. जबकि उनकी योजना हमारे दैनिक जीवन में प्लास्टिक से होने वाले खतरों के बारे में लोगों में जागरूकता और भय पैदा करने की थी, उन्होंने महसूस किया कि बच्चे आमतौर पर स्नैक पैकेट और चॉकलेट रैपर के रूप में प्लास्टिक के कूड़े को फैलाने वालों में से एक हैं. उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए उन्हें लुभाने के लिए एक नया विचार सोचा.
 
उन्हें इसे इकट्ठा करने और 2 रुपये प्रति किलो कमाने के लिए प्रोत्साहित किया गया. साथ ही स्कूलों में जागरूकता क्लास भी लगाई गईं. फिल्मों और डिजिटल मैसेजिंग के अन्य रूपों के माध्यम से ग्रामीणों को जागरूक किया गया. इसके बाद गांव में प्लास्टिक का 70-75 प्रतिशत उपयोग कम हो गया था. 

यूपी सरकार भी हुई प्रियंका के काम से प्रेरित 

प्रियंका को उम्मीद है कि अगले दो सालों में प्लास्टिक के उपयोग को 95 प्रतिशत कम कर दिया जाएगा. उन्होंने इसके लिए गांव में जगह-जगह 'प्लास्टिक बैंक' लगाए हैं. उन्हें देख आस-पास के गांवों ने भी उसी पैटर्न का पालन करना शुरू कर दिया. इतना ही नहीं प्रियंका से प्रेरित होकर यूपी सरकार ने प्रखंड स्तर पर प्लास्टिक कलेक्शन सेंटर शुरू किया. 

हमें खुद लेना होगा संकल्प 

दरअसल, प्लास्टिक हर तरह से पर्यावरण के लिए खतरनाक है. यह करीब एक हजार सालों तक नष्ट नहीं होती. वहीं, इसके बढ़ते इस्तेमाल और खतरों को देखते हुए कोर्ट ने इस पर रोक लगा रखी है, लेकिन लोग इसका पालन नहीं करते हैं. ऐसे में जरूरी है कि हम अपने-अपने स्तर पर इसका इस्तेमाल कम करना शुरू करें. 

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