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On This Day in 1857: Mangal Pandey ने अंग्रेज अफसर पर चलाई थी गोली, 400 भारतीय सैनिकों ने नहीं की थी अंग्रेजों की मदद

Rebellion of 1857: 29 मार्च 1857 को बंगाल के बैरकपुर छावनी में 34 नेटिव इंफेंट्री के सिपाही मंगल पांडेय ने अंग्रेज अफसरों पर हमला कर दिया था. इस दौरान मौके पर मौजूद करीब 400 भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज अफसरों को बचाने की कोशिश नहीं की. हालांकि बाद में मंगल पांडेय ने खुद को गोली मार ली और जख्मी हो गए. इसके बाद अस्पताल में उनका इलाज किया गया और उसके बाद फांसी पर लटका दिया गया.

29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने अंग्रेज अफसर पर गोली चलाई थी 29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने अंग्रेज अफसर पर गोली चलाई थी

आज के दिन यानी 29 मार्च 1857 को मंगल पांडेय ने अंग्रेजों को हिलाकर रख दिया था. मंगल पांडेय की बंदूक से निकली एक गोली से लंदन हिल गया था. इस क्रांति के बाद ब्रिटिश राज ने भारत के शासन की जिम्मेदारी सीधे अपने हाथों में ले ली थी. 29 मार्च के दिन ही मंगल पांडेय ने विद्रोह की पहली गोली चलाई थी. जिसके बाद अंग्रेजी सेना में भगदड़ मच गई थी. चलिए आपको बताते हैं कि 29 मार्च 1857 को क्या हुआ था, जिसके बाद भारत को लेकर ब्रिटिश राज को अपना नियम बदलना पड़ा था.

29 मार्च 1857 को क्या हुआ था-
29 मार्च 1857 को रविवार का दिन था. शाम 5 बजकर 10 मिनट पर मंगल पांडेय ने हंगामा खड़ा कर दिया. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक इतिहासकार रुद्रांशु मुखर्जी की किताब 'डेटलाइन 1857 रिवोल्ट अगेंस्ट द राज' में लिखते हैं कि उस समय मंगल पांडेय अपनी रेजिमेंट का कोट तो पहन रखा था, लेकिन पतलून की जगह उन्होंनें धोती पहनी हुई थी. वो नंगे पैर थे और उनके पास एक भरी हुई बंदूक थी. उन्होंने चिल्लाकर सैनिकों से कहा कि फिरंगी यहां पर हैं, तुम तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? इन गोलियों को काटने भर से हम धर्मभ्रष्ट हो जाएंगे. धर्म के खातिर उठ खड़े हो. तुमने मुझे ये सब करने के लिए उकसा तो दिया, लेकिन अब तुम मेरा साथ नहीं दे रहे हो.

मंगल पांडेय ने चलाई थी गोली-
मंगल पांडेय के इस हंगामे के दौरान लेफ्टिनेंट बीएच बो परेड ग्राउंड पर पहुंच गए. मंगल पांडेय ने इस अंग्रेज अधिकारी को देखते ही उसपर गोली चला दी. गोली घोड़े के पैर में लगी और घोड़ा गिर गया. इसके बाद बो ने मंगल पांडेय पर गोली चलाई. लेकिन वो इस गोली से बच गए. बो के साथ सार्जेंट मेजर हिउसन भी आ गए. पीजीओ टेलर ने इस घटना का जिक्र अपनी किताब 'वाट रियली हैपेंड ड्यूरिंग द म्यूनिटी' में किया है. उनके मुताबिक जब बो और सॉर्जेंट ने देखा कि हालात खराब हो  रहे हैं तो उन दोनों ने अपनी तलवार निकाल ली. इसी दौरान मंगल पांडेय ने दोनों पर अपनी तलवार से हमला कर दिया. इस दौरान भारी संख्या में भारतीय सैनिक इकट्ठे हो गए थे. लेकिन एक शेख पलटू को छोड़कर किसी ने अंग्रेजों की मदद नहीं की. शेख पलटू ने मंगल पांडेय को पीछे से पकड़ लिया. इसका फायदा उठाकर दोनों अंग्रेज अधिकारी भागने में कामयाब रहे.

मंगल पांडेय ने खुद को मारी गोली-
इस दौरान 34 नेटिव इंफेंट्री के कमांडिंग अफसर कर्नल एसजी वेलर भी  घटनाक्रम  पर पहुंच गए थे. वेलर ने भारतीय सैनिकों से मंगल पांडेय को गिरफ्तार करने को कहा. लेकिन सैनिकों ने ऐसा नहीं किया. रुद्रांशु मुखर्जी की किताब के मुताबिक बाद में कर्नल एसजी वेलर ने कोर्ट में इस घटनाक्रम को लेकर गवाही दी थी. उन्होंने गवाही दी थी कि भारतीय सैनिकों ने आदेश मानने से इनकार कर दिया था. उसी समय डिवीजन के कमांडिंग अफसर मेजर जनरल हियरसे अपने दोनों बेटों के साथ  मौके पर पहुंच गए. हियरसे अपनी पिस्तौल लहराकर आदेश दिया कि मेरी बात सुनो, अगर मेरे आदेश पर किसी सैनिक ने मार्च नहीं किया तो मैं उसे गोली से उड़ा दूंगा. इसके बाद उनके आदेश का उल्लंघन नहीं हुआ. जब सैनिक मंगल पांडेय की तरफ बढ़ने लगे तो उन्होंने अपनी बंदूक की नाल अपने सीने की तरफ कर पैर की उंगली से बंदूक का घोड़ा दबा दिया. गोली मंगल पांडेय के सीने, कंधे और गर्दन को घायल करते हुए निकल गई. मंगल पांडेय नीचे गिर गए. इसके बाद उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया. कोर्ट मार्शल में मंगल पांडेय ने स्वीकार किया कि इस पूरे मामले में उनके साथ कोई नहीं था.

मंगल पांडेय को दी गई फांसी-
सिपाही नंबर 1446 मंगल पांडेय को मौत की सजा सुनाई गई. 8 अप्रैल 1857 को सुबह साढ़े 5 बजे मंगल पांडेय को फांसी दे दी गई. उस दौरान मौके पर भारतीय सैनिक भी मौजूद थे. मंगल पांडेय को 18 अप्रैल को फांसी देने की तारीख तय की गई थी. लेकिन भय के चलते अंग्रेजों ने 10 दिन पहली ही फांसी पर लटका दिया.

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