कर्नाटक विधानसभा की सभी 224 सीटों के चुनाव परिणाम आ चुके हैं. 135 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन गई है. आइए जानते हैं कांग्रेस की जीत के प्रमुख कारण क्या रहे?
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा
राहुल गांधी ने कन्याकुमारी से जम्मू-कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी. इस यात्रा का सबसे ज्यादा समय कर्नाटक में ही बीता. 21 दिनों तक पैदल चलकर उन्होंने इस प्रदेश में 500 किलोमीटर से ज्यादा पदयात्रा की. इस दौरान उन्हें जनता का भारी समर्थन मिला. इस यात्रा के जरिए राहुल ने कर्नाटक में कांग्रेस को मजबूत किया. अंदरूनी लड़ाइयों को खत्म किया. सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को एकसाथ लेकर आए और इसका फायदा कर्नाटक में जीत का आधार बना.
भ्रष्टाचार का उठाया मुद्दा
कांग्रेस ने चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी सरकार में हुए भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी का मुद्दा उठाया. जिसे जनता ने स्वीकारा और बीजेपी बैकफुट पर रही. कांग्रेस ने बीजेपी की बोम्मई सरकार पर आरोप लगाया कि हर कॉन्ट्रेक्ट में वो 40 प्रतिशत कमीशन ले रही है. करप्शन के मुद्दे पर ही एस ईश्वरप्पा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो एक बीजेपी विधायक को जेल भी जाना पड़ा. बीजेपी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी.
आरक्षण देने का वादा
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में आरक्षण देने का वादा भी एक बड़ा कारण रहा. कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया. पार्टी को इससे फायदे की उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त में कांग्रेस ने बड़ा पासा फेंक दिया. कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का ऐलान कर दिया. आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को बड़ा फायदा पहुंचाया. लिंगायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने कांग्रेस का साथ दिया. इतना ही नहीं कांग्रेस ने ये भी वादा कर दिया कि जो चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण भाजपा ने खत्म किया है, उसे फिर से शुरू कर दिया जाएगा. इसके चलते एक तरफ जहां कांग्रेस को मुसलमानों का साथ मिला, वहीं 75 प्रतिशत आरक्षण के वादे ने लिंगायत, दलित और ओबीसी वोटर्स को भी कांग्रेस से जोड़ दिया.
बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई का मिला फायदा
विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी की अंदरूनी लड़ाई भी खुलकर जनता के सामने आ गई थी. बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद से ही भाजपा में अंदरूनी कलह शुरू हो गई थी. पार्टी के अंदर ही कई गुट बन गए थे. पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी का बीजेपी ने टिकट काटा तो दोनों ही नेता कांग्रेस का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर गए. येदियुरप्पा, शेट्टार, सावदी तीनों ही लिंगायत समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं जिन्हें नजर अंदाज करना बीजेपी को महंगा पड़ गया. इसका फायदा चुनाव में कांग्रेस को मिला. साथ ही कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी के तौर पर एकजुट दिखी और सभी मतभेदों को दूर कर जनता के सामने नेता सकारात्मक दिखे.
धार्मिक ध्रुवीकरण में भी बीजेपी को छोड़ा पीछे
कर्नाटक में कांग्रेस ने भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या फिर ध्रुवीकरण का भाजपा को पीछे छोड़ दिया. कांग्रेस ने बजरंग दल पर बैन की बात करके मुस्लिम वोटों को अपने पाले में कर लिया. कर्नाटक में एक साल से बीजेपी के नेता हलाला, हिजाब से लेकर अजान तक के मुद्दे उठाते रहे. ऐन चुनाव के समय बजरंगबली की की भी एंट्री हो गई लेकिन धार्मिक ध्रुवीकरण की ये कोशिशें बीजेपी के काम नहीं आईं. कांग्रेस ने बजरंग दल को बैन करने का वादा किया तो बीजेपी ने बजरंग दल को सीधे बजरंग बली से जोड़ दिया और पूरा मुद्दा भगवान के अपमान का बना दिया. बीजेपी ने जमकर हिंदुत्व कार्ड खेला लेकिन यह दांव भी काम नहीं आ सका.
सत्ता विरोधी लहर का उठाया लाभ
किसी भी राज्य में जिस भी पार्टी की सरकार रहती है, उसके खिलाफ जनता में कुछ न कुछ नाराजगी रहती है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ भी सत्ता विरोधी लहर हावी रही. इसको मात देने में भाजपा सफल नहीं रही. जिसका फायदा कांग्रेस ने उठाया.
सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार जैसे मजबूत चेहरे
कर्नाटक में बीजेपी की हार की एक वजह चुनाव में मजबूत चेहरे का न होना भी रहा. येदियुरप्पा की जगह बसवराज बोम्मई को बीजेपी ने भले ही मुख्यमंत्री बना दिया, लेकिन सीएम की कुर्सी पर रहते हुए भी बोम्मई का कोई खास प्रभाव नहीं नजर आया. बोम्मई को आगे कर चुनावी मैदान में उतरना बीजेपी को महंगा पड़ा. उधर, कांग्रेस के पास डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया जैसे मजबूत चेहरे थे. इसका लाभ कांग्रेस को मिला.
चुनाव से पहले मल्लिकार्जुन खरगे का अध्यक्ष बनना
मल्लिकार्जुन खरगे दलित हैं और कर्नाटक राज्य से ही आते हैं. ऐसे में चुनाव से ऐन पहले खरगे को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाना भी जनता को कांग्रेस के प्रति भावनात्मक रूप से जोड़ दिया. दलित वोटरों के साथ ही कर्नाटक की अन्य वर्ग की जनता के बीच भी खरगे को लेकर अपनापन का भाव दिखा और पूरे राज्य में इसको लेकर अच्छा संदेश गया. खरगे ने चुनावी रैलियों में इसका जिक्र किया.