“अगर आप उड़ नहीं सकते, तो दौड़ें. अगर दौड़ नहीं सकते, तो चलें. अगर आप चल भी नहीं सकते तो रेंगते हुए जाएं. लेकिन आगे बढ़ते रहें”- मार्टिन लूथर किंग के इस विचार को चंडीगढ़ के नरेंद्र लूथरा अपनी जिंदगी में उतार चुके हैं. 23 मार्च को वे फ्रांस में हो रहे एबिलिम्पिक्स में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं. 45 साल के नरेंद्र पैरों से विकलांग हैं और वे वर्ड प्रोसेसिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. बता दें, नरेंद्र 80% तक चलने में अक्षम हैं. और इस वक्त वे पंजाब यूनिवर्सिटी में सेक्शन ऑफिसर हैं. लेकिन विकलांगता भी उन्हें उनकी इच्छाअनुसार जीवन जीने से नहीं रोक पाई. ठीक ऐसे ही उनके साथ 12 और दिव्यांगजन भारत के लिए मैडल लाने निकल पड़े हैं.
23 से 26 मार्च, 2023 को मेट्ज, फ्रांस में विकलांग व्यक्तियों के लिए वैश्विक कौशल प्रतियोगिता, 10वां अंतर्राष्ट्रीय एबिलिम्पिक्स (10th International Abilympics) आयोजित होने जा रहा हैं. इसमें भारत के 13 लोग 12 स्किल केटेगरी में हिस्सा ले रहे हैं. एबिलिम्पिक्स में दुनिया भर से लगभग 1500 प्रतिभागी हिस्सा लेने वाले हैं. दरअसल, एबिलिम्पिक्स में स्किल से जुड़ी प्रतियोगिताएं शामिल होती हैं. ये विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों (PwD)के लिए डिजाइन की गई हैं. इसमें आईटी, कला और शिल्प, हॉस्पिटैलिटी जैसी केटेगरी शामिल होती हैं.
35 से 40 स्किल्स में भाग लेंगे प्रतिभागी
सार्थक एजुकेशनल ट्रस्ट (Sarthak Educational trust) के संस्थापक सीईओ और एनएएआई (National Abilympics Association of India) के सेक्रेटरी जनरल डॉ जितेन्द्र अग्रवाल ने बताया कि वे पहले डेंटिस्ट थे, लेकिन 2004 में उनकी आंखों की रोशनी चली गई. तब तीन साल में उन्हें समझ आया कि ऐसे लोगों के लिए कितना मुश्किल है. तो सबकी मदद करने के लिए उन्होंने 2008 में सार्थक शुरू किया. वहीं नेशनल एबिलिम्पिक्स ऑफ इंडिया के बारे में बात करते हुए उन्होंने GNT डिजिटल को बताया, “इसमें सिलेक्शन के लिए हम पहले दिव्यांग बच्चों के छोटे लेवल पर रीजनल प्रतियोगिता करवाते हैं. इनमें हर श्रेणी के दिव्यांग भाग लेते हैं. इसमें 35 से 40 स्किल्स हैं, जिसमें एम्बरॉइडरी से लेकर कंप्यूटर और लाइफ स्किल्स शामिल हैं. इसमें चुनने के बाद, नेशनल कॉम्पिटिशन होता है. तब जाकर आखिर में इंटरनेशनल खेलने के लिए प्लेयर चुने जाते हैं.”
बताते चलें कि साल 2016 से, नेशनल एबिलिम्पिक एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NAAI) और सार्थक एजुकेशनल ट्रस्ट मिलकर ग्रामीण और शहरी सरकारी एजेंसियों, कॉर्पोरेट बॉडीज, सिविल सोसाइटी और पीडब्ल्यूडी के साथ मिलकर दिव्यांगजनों के लिए काम कर रहे हैं.
इंडोर फोटोग्राफी से लेकर आउटडोर फोटोग्राफी में लोग ले रहे हैं भाग
चेन्नई, तमिलनाडु के रहने वाले पी. साईं कृष्णन फोटोग्राफी (आउटडोर) में भाग ले रहे हैं. पी. साई कृष्णन 80% लोकोमोटर विकलांग (Locomotor disability) हैं. लेकिन बचपन से ही, उनके दृढ़ संकल्प और सीखने की ललक ने उन्हें होने सपनों की ओर बढ़ने में मदद की. फोटोग्राफी ने उन्हें हमेशा आकर्षित किया है. पी. साई कृष्णन बताते हैं कि वे इस वक्त एचसीएल में काम करते हैं और बी.एससी और एमसीपीएस इंजीनियर की पढ़ाई कर चुके हैं. साथ ही वे अकेले ऐसे प्रतिभागी हैं जो चौथी बार भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं.
ठीक ऐसे ही गुजरात के सूरत के मनहर चौहान स्किल-फोटोग्राफी (स्टूडियो) की केटेगरी में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. मनहर चौहान 75% लोकोमोटर डिसेबल पर्सन हैं. वे कहते हैं, “भारत में जब पहली बार इंटरेनशनल एबिलिम्पिक्स हुए थे. तब मैंने इसमें भाग लिया था. उस वक्त मैं बच्चों को फोटोग्राफी सिखाता था. ऐसे में विकलांग कल्याण ट्रस्ट सूरत ने मुझे इसके बारे में बताया. दिल्ली में जब 2003 में इंटरनेशनल एबिलिम्पिक्स हुए तब मैंने भारत को इसमें ब्रॉन्ज मेडल दिलवाया था. इसबार भी गोल्ड की उम्मीद के साथ मैं जा रहा हूं.”
विजयवाड़ा, आंध्र प्रदेश के मोहित मजेटी भी देश के लिए मेडल लाने निकले हैं. वे फोटोग्राफी (आउटडोर) में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. मोहित 45% लोकोमोटर डिसेबल हैं. वे जीवन में कभी भी हार न मानने का एक जीता-जागता उदाहरण हैं. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, मोहित ने IIT, खड़गपुर से B.Tech करने का फैसला किया, जहां उन्हें आउटडोर फोटोग्राफी में सीखने का मन हुआ.
देश के कोने कोने से जा रहे हैं लोग
सार्थक के फाउंडर जीतेन्द्र ने बताया कि सभी प्लेयर्स को तैयार करने के लिए वे देशभर में बूटकैंप आयोजित करते हैं जिसमें इनकी तैयारी चलती है. अलग-अलग प्रतियोगिताएं होती हैं और फिर बाद में प्लेयर्स के आने जाने का खर्चा सरकार की ओर से दिया जाता है. इंटरनेशनल एबिलिम्पिक्स में देश के कोने कोने से प्रतिभागी चुने गए हैं. बिहार के मो. शमीम आलम टेलरिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. शमीम का जन्म लोकोमोटर विकलांगता के साथ हुआ था, जिससे उनके 48% पैर प्रभावित थे. इसके बावजूद, उनके पिता ने उनकी पढ़ाई के माध्यम से उनका मार्गदर्शन और समर्थन किया. उन्होंने 10वीं तक स्कूली शिक्षा पूरी की, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इसके बाद उन्होंने घर में सिलाई के काम में अपने पिता की मदद करनी शुरू कर दी.
वहीं मध्य प्रदेश के जबलपुर से रजनीश अग्रवाल वेब डिजाइनिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और उनकी डिसेबिलिटी लोकोमोटर डिसेबिलिटी है. 90% लोकोमोटर डिसेबिलिटी होने के बावजूद, रजनीश ने अपने सपनों का पीछा करना नहीं छोड़ा. उन्होंने कंप्यूटर टेक में ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी की है. आज वे एक वेब डिजाइनर और कोडर बन गए हैं.
सुन और बोल नहीं सकते फिर भी सपनों का पीछा नहीं छोड़ा
मुंबई, महाराष्ट्र के चेतन पाशिलकर स्किल कैटेगरी - पेंटिंग और डेकोरेशन में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. चेतन पाशिलकर जन्म से ही सुन नहीं सकते हैं. बचपन से ही उन्हें स्केच बनाने की आदत थी. उन्होंने इस स्किल को और सुधारा और फिर फाइन आर्ट्स में मास्टर्स की पढ़ाई पूरी की. ठीक ऐसे ही मुंबई, महाराष्ट्र की प्रियंका दाबड़े कढ़ाई में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. प्रियंका जब पांच साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता को खो दिया था. लेकिन अपनी मां के सपोर्ट से, उन्होंने ड्राइंग और पेंटिंग स्किल सीखी. 22 साल की उम्र में, उन्होंने फैशन डिजाइन में डिप्लोमा और कढ़ाई में डिग्री भी पूरी कर ली है.
पुणे, महाराष्ट्र की भाग्यश्री नदीमेटला स्किल श्रेणी - ड्रेस मेकिंग (बेसिक) में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. वे भी सुन नहीं सकती हैं. एक स्वस्थ बच्चे के रूप में जन्मी भाग्यश्री ने अपने दूसरे जन्मदिन पर एक दुर्घटना के कारण अचानक अपनी सुनने की शक्ति खो दी थी. जैसे-जैसे वह बड़ी हुई, उन्होंने कला और कढ़ाई में अपनी रुचि और प्रतिभा विकसित की. उन्हें सबसे पहले सार्थक के बारे में बाल कल्याण संस्था के बारे में पता चला था. उन्होंने बताया कि 2019 में वे सार्थक और नाइ के साथ जुड़ीं. नेशनल में भाग्यश्री को सिल्वर मेडल मिला था. बड़ी बहन के साथ उन्होंने ये स्किल सीखी और अब वे इसी के जरिए भारत को मेडल दिलाने में जी जान लगा रही हैं.
पुणे के ओंकार देवरुखर पोस्टर डिजाइनिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वे हियरिंग इम्पेयरमेंट हैं. लेकिन उन्होंने इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. ऐसे ही भावनगर, गुजरात के फारुख शेख रेस्तरां सर्विस में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. खराब आर्थिक स्थिति के कारण, उन्होंने 10वीं पास करने के बाद उन्होंने काम करना शुरू कर दिया था. इसमें उनके मैनेजर्स और होटल के ट्रेनिंग डिपार्टमेंट ने काफी सपोर्ट किया.
अभी भी एबिलिम्पिक्स को देश के गांव-गांव तक पहुंचाने की जरूरत है
हालांकि, एबिलिम्पिक्स के बारे में अभी भी बहुत कम लोग जानते हैं. इसे लेकर सार्थक के सीईओ जीतेन्द्र कहते हैं, "ऐसे में प्रतिभागियों को कई चैलेंजेज भी फेस करने पड़ते हैं. इसलिए आज की जरूरत है कि इस एबिलंपिक मूवमेंट को गांव-गांव तक ले जाया जा सके. ताकि सभी को इसका फायदा मिल सके. हमारे छोटे शहरों और कस्बों, गांव में काफी सारा टैलेंट है जो अभी वेस्ट हो रहा है, ऐसे में सभी को मौका मिलना चाहिए. साथ ही दिव्यांगजनों के माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों का पूरा सपोर्ट करें."
कर्नाटक के अविनाश केएस इंटरनेशनल एबिलिम्पिक्स में ज्वैलरी मेकिंग में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. अविनाश बचपन से ही अपने हियरिंग एड का उपयोग कर रहे हैं. स्कूल के बाद, उन्होंने मैसूर के जेएसएस कॉलेज में ज्वैलरी डिजाइन और टेक्नोलॉजी कोर्स में दाखिला लिया और अपना डिप्लोमा पूरा किया. वहीं, मुंबई (महाराष्ट्र) के काशिफ खान पैटिसरी और कन्फेक्शनरी में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. काशिफ को जन्म से ही 99% बधिर हैं. लेकिन इस दौरान उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दिया. बड़े होकर उन्होंने सेंट रेजिस होटल, मुमवाई के बेकरी विभाग में काम करना शुरू किया और बचपन से ही कई समस्याओं का सामना करने के बावजूद उन्होंने हमेशा अपने सपनों को पूरा करने की ओर कदम बढ़ाया.
अब तक हजारों दिव्यांगरजनों को रोजगार मिल चुका है
गौरतलब है कि 2008 से सार्थक दिव्यांगजनों को हायर करने और उनको रोजगार दिलाने पर काम कर रहा है. इसे लेकर जीतेन्द्र बताते हैं कि ये एक दिन या एक साल में नहीं हुआ है. बल्कि इसमें काफी समय लगा है. कई कंपनियों के साथ बैठकें की गईं. वे कहते हैं, “100 से ज्यादा रोजगार मेले हुए देशभर में, 3000 से ज्यादा लोगों को नौकरियां मिलीं. लेकिन 2014 के बाद हमने दिव्यांगों को स्किल सिखाने पर काम किया जिसके लिए स्किल सेंटर खोले गए. पिछले 14 साल में 52 हजार लोगों को रोजगार मिल गया है. 2000 कंपनियां बच्चों को हायर करने के लिए तैयार है.”
जीतेन्द्र कहते हैं कि दिव्यांगजनों को सपोर्ट करने और उन्हें एक उचित प्लेटफॉर्म देने के लिए अब कई एप्स भी लॉन्च किए जा चुके हैं. जैसे डिजिटल प्रजेंस के रूप में काफी काम किया गया है. कैप सारथि ऐप, रोजगार सारथि और ज्ञान सारथि जैसे एप्स हैं जिनकी मदद से दिव्यांग साथी स्किल्स और नौकरी पा सकते हैं.
(स्पेशल थैंक्स: जो प्रतिभागी सुन और बोल नहीं सकते हैं उनसे विजुअल इंटरप्रेटर सोमिया के जरिए बात की गई है. सोमिया 24 साल की हैं और बेहद कम उम्र में उन्होंने सांकेतिक भाषा (Sign Language) सीख ली थी. वर्तमान में, सोमिया 'सार्थक' के साथ काम कर रही हैं और वह भी टीम इंडिया के साथ फ्रांस गई हैं.)
ALL THE BEST TEAM INDIA!!