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India Today Conclave 2025: कैसे हुई बिहार म्यूजियम और धर्म संघ विश्वविद्यालय की शुरुआत, क्यों आया रजिया शेख को नक्सली इलाके में बस्तर फूड्स खोलने का ख्याल, यहां जानिए आप  

India Today Conclave 2025 में अशोक कुमार सिन्हा ने जहां बिहार म्यूजियम की कहानी बताई तो वहीं रजिया शेख ने बताया कि कैसे उन्होंने नक्सलियों के गढ़ में बिजनेस शुरू किया. राजीव मर्दा ने बताया कि कैसे उनके घर के आंगन में गुरुकुल की शुरुआत हुई थी. 

Raziya Shaikh, Ashok Kumar Sinha and Rajiv Marda (India Today Conclave) Raziya Shaikh, Ashok Kumar Sinha and Rajiv Marda (India Today Conclave)

इंडिया टुडे कॉनक्लेव 2025 (India Today Conclave 2025) के मंच पर बिहार संग्रहालय पटना के अपर निदेशक अशोक कुमार सिन्हा, बस्तर फूड्स की संस्थापक रजिया शेख और धर्म संघ विश्वविद्यालय शर्मार्थ न्यास चूरू के बोर्ड सदस्य राजीव मर्दा पहुंचे. तीनों ने कई मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त की. अशोक कुमार सिन्हा ने जहां बिहार म्यूजियम की कहानी बताई तो वहीं रजिया ने बताया कि कैसे उन्होंने नक्सलियों के गढ़ में बिजनेस शुरू किया. राजीव मर्दा ने बताया कि कैसे उनके घर के आंगन में गुरुकुल की शुरुआत हुई थी. 

ऐसी है बिहार म्यूजियम की कहानी
दुनिया के सबसे भव्य म्यूजियम में से एक बिहार म्यूजियम की अशोक कुमार सिन्हा ने कहानी बताई. पटना के बेली रोड स्थित बिहार म्यूजियम जितना खास है, उतना ही वर्ल्ड क्लास यहां की लाइब्रेरी है. आपको मालूम हो कि इस म्यूजियम में पुस्तकों का विशाल भंडार है. इस संग्राहलय में कई हजार दुर्लभ किताबें हैं. यहां चित्रमय राम कथा, मत्स्य पुराण और विभिन्न धार्मिक मान्यताओं से संबंधित पुस्तकें भी हैं. अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि यहां धर्म संस्कृति के विकास और भाषा के विकास के साथ-साथ कई ऐसी पुस्तक हैं, जिसे पढ़कर बिहार को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. 

800 करोड़ की लागत से बना है  म्यूजियम
बिहार म्यूजियम के एडिशनल डायरेक्टर अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि बिहार म्यूजियम से पहले से ही पटना संग्रहालय था लेकिन वह छोटा पड़ रहा था. इसके चलते एक अलग म्यूजियम की जरूरत पड़ी. इस तरह से साल 2015 में बिहार म्यूजियम शुरू हुआ. बिहार संग्रहालय 800 करोड़ रुपए की लागत से बना है और यह 14 एकड़ में फैला हुआ है. उन्होंने बताया कि जापान में मिथिला म्यूजियम बना हुआ है. वहां कलाकार बिहार से जाते थे लेकिन उनकी बनाई कलाकृति देखने के लिए जापान जाना पड़ता था, इस बात का अफसोस भी था.

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इन सभी दिक्कतों को देखते हुए यह बिहार म्यूजियम की जरूत पड़ी. बिहार म्यूजियम के एडिशनल डायरेक्टर अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि देश के सभी म्यूजियम या तो राजा महाराजाओं के वक्त के हैं या फिर अंग्रेजी हुकूमत के दौरान बनाए गए हैं. बिहार म्यूजियम को बनाने में जापान की मदद भी ली गई है और आर्किटेक्ट वहां का ही है जबकि कॉन्सेप्ट डिजायन कनाडा की संस्था ने किया है. लार्सन एंड टूब्रो (L&T) ने पटना में बिहार म्यूजियम का निर्माण किया है. बिहार म्यूजियम में आने के लिए 100 रुपए फीस रखी गई है. इसके बावजूद हर दिन दो हजार से ज्यादा विजिटर आते हैं जो कि वीकेंड में पांच हजार तक भी पहुंच जाते हैं.

ऐसे आया बस्तर फूड्स बनाने का ख्याल
बस्तर फूड्स की संस्थापक रजिया शेख ने बस्तर फूड्स का कैसे बनाने का ख्याल आया, उसके बारे में बताया. उन्होंने बताया कि मैंने अपने करियर की शुरुआत नक्सली इलाके बीजापुर से की थी. उन्होंने बताया कि इस नक्सली इलाके के एक बच्चे ने उन्हें बताया कि यहां इतनी गरीबी है कि हमें लगता है कि हम नक्सली बन जाते तो हर महीने के 20 हजार रुपए मिलते. रजिया शेख ने बताया कि यहां के कई बच्चों को नक्सली बनने का रास्ता पता था लेकिन उन्हें स्वरोजगार या स्टार्टअप के बारे में कुछ नहीं पता था.

उस बच्चे के सवाल के बाद ही मैंने सोचा कि हम सरकार से क्यों कुछ मांगे, खुद भी तो कुछ शुरू किया जा सकता है. इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए पहले हमने बच्चों की फूड ट्रेनिंग शुरू की और फिर बस्तर फूड्स आया. रजिया शेख ने बताया कि आज बस्तर फूड्स से 700 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं. रजिया शेख ने बस्तर फूड्स को शुरू करने से पहले जो चुनौतियां आईं उसके बारे में भी बताया. उन्होंने बताया कि कैसे बैंक लोन नहीं दे रहे थे. बिजनेस शुरू करने के लिए मेरे पास पैसे नहीं थे. इसके बाद मैंने अपनी शादी के लिए पापा द्वारा जमा पैसों को लेकर बिजनेस में लगाया. आज हमारी कंपनी करोड़ों का व्यवसाय कर रही है. आज बैंक भी लोन देने के लिए तैयार हैं. 

घर के आंगन में गुरुकुल के रूप में हुई थी इस विश्वविद्यालय शुरुआत
चूरू स्थित धर्म संघ विश्वविद्यालय के बोर्ड सदस्य राजीव मर्दा ने बताया कि कैसे काशी से आए स्वामी शिवानंद सरस्वती की प्रेरणा से मेरे घर के आंगन में इस गुरुकुल की शुरुआत हुई थी. इसके बाद मेरे दादाजी ने गुरुकुल के लिए जमीन खरीदकर दान में दी थी. उसी जमीन पर धर्म संघ विश्वविद्यालय की नींव पड़ी.

उन्होंने बाताय कि इस विश्वविद्यालय का अब विस्तार हो गया है. 52 साल पुरानी विश्वविद्यालय की इमारत की जगह 10 हजार स्क्वायर फीट एरिया में एक डबल स्टोरी बिल्डिंग ने ले ली है. यहां पर क्लास रूम से लेकर लाइब्रेरी, कम्प्यूटर लैब सहित तमाम आधुनिक सुविधाएं हैं. यहां यज्ञशाला भी है. इस विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए गरीब तबके से बच्चे आते हैं. इन बच्चों की हम पढ़ाई फीस तक नहीं लेते हैं. यहां पर बच्चों का रहना-खाना सब कुछ ट्रस्ट और हमारे डोनर्स के पैसों से होता है. उन्होंने बताया यहां से बच्चे 8 साल के कोर्स के बाद शास्त्री बन जाते हैं. उन्हें वेद-पुराणों का ज्ञान होता है. शास्त्री तक की शिक्षा लेने के बाद बच्चे अपना जीवन यापन अच्छी तरह से कर सकते हैं. यहां के कई बच्चे अमेरिका और लंदन में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं.